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आवेग - चिकित्सा
• पहला साधन है -- स्वरूप का संधान, भेदज्ञान की प्राप्ति । • दूसरा साधन है -- विपाक प्रेक्षा, परिणाम प्रेक्षा ।
• विपाक की निमित्त- सापेक्षता ।
• विपाक के पांच निमित्त -- द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और भव । • विपाक में परिवर्तन किया जा सकता है ।
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• विपाक - परिवर्तन के दो उपाय --
• वीतराग चेतना का विकास ।
• तितिक्षा-चेतना का विकास ।
• इष्ट और अनिष्ट -- दोनों प्रकार के कर्म विपाकों में पदार्थों का योग ।
कुशल चिकित्सक वह होता है जो रोग, रोग के हेतु, आरोग्य और आरोग्य के हेतु — इन चारों को जानकर रोग की चिकित्सा करता है । कुशल साधक वह होता है जो कर्म, कर्म के बीज, कर्म- मुक्ति और कर्म - मुक्ति के हेतु को जानता है । कुशल साधक वह होता है जो बंध, बंध के हेतु, बंध-मुक्ति और बंध-मुक्ति के हेतु जानता है । जो इन सबको भली-भांति जानकर कर्म की चिकित्सा करता है, वह कुशल साधक होता है ।
कर्म को जानना उसके लिए इसलिए ज़रूरी है कि उसको जाने बिना आध्यात्मिक विकास नहीं होता । उसकी आध्यात्मिक चेतना के विकास में जो
१६६ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण
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