Book Title: Chetna ka Urdhvarohana
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 191
________________ १६ स्वतंत्र या परतंत्र ? • हम कर्म करने में स्वतंत्र या परतंत्र ? • चैतन्य का सतत अनुभव करते हैं तो हम स्वतंत्र • चैतन्य का अनुभव जब विस्मृत होता है, तब हम परतंत्र हैं । • मनुष्य अपने कर्तृत्व में स्वतंत्र, परिणाम भोगने में परतंत्र । • स्वतंत्रता का स्वयंभू प्रमाण हमारे चैतन्य का विकास, हमारे आनन्द का विकास । हमारी शक्ति का विकास, हमारा पूर्ण जागरण । • उपादान को उत्पन्न करने की शक्ति किसी में नहीं । • कर्म आत्मा के उपादानभूत स्वभावों को पैदा नहीं कर सकते । • आत्मा के उपादानभूत स्वभाव -- अनंत चैतन्य, अनंत आनन्द, अनंत शक्ति, अनंत जागरण । - द्रव्य का अपना-अपना स्वभाव होता है । स्वभाव कभी भी निर्मूल नहीं होता, उसे कभी निरस्त नहीं किया जा सकता। विभाव स्वभाव को कुछ विकृत भी कर सकता है, आवृत भी कर सकता है, किन्तु निरस्त नहीं कर सकता, शून्य नहीं कर सकता ! आवेग चैतन्य का स्वभाव नहीं है । वह चैतन्य के साथ उत्पन्न मूढ़ता है । वह मोह है, विकृति है किन्तु स्वभाव नहीं है । इसीलिए यह संभावना शेष रहती है कि आवेग को निरस्त किया जा सकता है । उस योग को दूर किया जा सकता है। स्वतंत्र या परतंत्र ? : १७७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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