Book Title: Chetna ka Urdhvarohana
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 193
________________ खिसकने लग जाते हैं, दूर होने लग जाते हैं। उस समय हमारा अस्तित्व उजागर होता है। बहुत बार ये प्रश्न सामने आते हैं कि हम स्वतंत्र हैं या परतंत्र ? हम कर्म करने में स्वतंत्र हैं या परतंत्र? हम कर्म का फल भोगने में स्वतंत्र हैं या परतंत्र? स्वतंत्रता और परतंत्रता का निश्चित उत्तर नहीं दिया जा सकता। दोनों सापेक्ष कथन हैं। हम स्वतंत भी हैं और परतंत्र भी हैं । हम चैतन्यवान् हैं । हमारा स्वभाव सभी द्रव्यों से विलक्षण है। किसी भी द्रव्य का स्वभाव चैतन्य नहीं है, हमारा स्वभाव चैतन्य है, इसलिए हम स्वतंत्र हैं । किन्तु चैतन्य का अनुभव जबजब विस्मृत होता है, इस चैतन्य की आग पर जब-जब कोई राख आ जाती है, जब-जब यह जलती हुई आग उस राख से ढक जाती है तब-तब हम परतंत्र हो जाते हैं। स्वतंत्रता और परपंत्रता का उत्तर सापेक्षदृष्टि से ही दिया जा सकता है। इनका निरपेक्ष उत्तर नहीं हो सकता। हमने कोई क्रिया की, कर्म किया। निश्चित है कि क्रिया की प्रतिक्रिया होगी। ऐसी एक भी क्रिया नहीं है जिसकी प्रतिक्रिया न हो। हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। क्रिया करने में आदमी स्वतंत्र है, किन्तु प्रतिक्रिया में वह परतंत्र है। 'कडेण मूढो पुणोतं करेई'-जो किया है उससे मोह पैदा होता है। व्यक्ति मूढ़ हो जाता है और वह फिर उसे दोहराता है। एक बार आदमी कोई काम कर लेता है । दूसरी बार उस काम को दोहराना ज़रूरी हो जाता है क्योंकि उसका संस्कार बन जाता है। उस संस्कार के आधार पर दूसरी बार वैसी परिस्थिति आने पर वैसा करने की प्रेरणा मिलती है। वह हमारी मानसिक आदत बन जाती है। फिर उसको दोहराने का मन होता है। व्यक्ति मूढ़ बनकर उस क्रिया को दोहराता जाता है, करता जाता है। तब हम परतंत्र हो गये। हमने कुछ किया, एक संस्कार निर्मित हो गया, एक आदत बन गयी, फिर वह करना ही पड़ेगा। यह परतंत्रता की बात है। हम परतंत्र हैं, पर स्वतंत्र भी हैं। हमारी चैतन्य-शक्ति, हमारी संकल्प-शक्ति इतनी प्रबल है कि वह यदि जाग जाये कि यह काम करना ही नहीं है, इतना दृढ़ संकल्प हो जाए तो फिर संस्कार कितना ही प्रबल हो, हम उसे एक झटके में ही तोड़ डाल सकते हैं। ___स्वतंत्रता और परतंत्रता--दोनों को सापेक्षदृष्टि से ही समझा जा सकता है। एक आदमी नारियल, खजूर या ताड़ के वृक्ष पर चढ़ गया। चढ़ने में वह स्वतंत्र है। वह अपनी इच्छा से ऊपर चढ़ गया। अब उतरने में वह स्वतंत्र नहीं है। क्यों? चढ़ने की एक क्रिया है। अब चढ़ गया तो उतरना भी पड़ेगा। चढ़ने में वह स्वतंत्र है, पर उतरने में परतंत्र है। अब उसे उतरना इसलिए पड़ेगा कि वह चढ़ गया। चढ़ने का परिणाम है उतरना। उतरना कोई स्वतंत्र क्रिया नहीं है। स्वतंत्र या परतंत्र? १७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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