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नहीं पाता । वह कितना ही चाहे कर नहीं सकता। जिस व्यक्ति में लब्धिवीर्य है, किन्तु करणवीर्य नहीं है, क्रियात्मक क्षमता नहीं है तो शक्ति की उपलब्धि होने पर भी वह कुछ नहीं कर पाता। जिसमें दोनों हैं, वही व्यक्ति कुछ कर पाता है । कर्मशास्त्र के इस महत्त्वपूर्ण बिन्दु को समझने के लिए हमें आत्मा और शरीर, मन और शरीर — दोनों के योग को ठीक से समझना होगा। मन का शरीर पर प्रभाव होता है और शरीर का मन पर प्रभाव होता है। आत्मा का शरीर पर प्रभाव होता है और शरीर का आत्मा पर प्रभाव होता है । केवल आत्मा या केवल शरीर से वे सारे कार्य नहीं हो सकते जो हमारे व्यक्तित्व की व्याख्या करने वाले होते हैं । केवल आत्मा से वे ही कार्य निष्पन्न होते हैं जो आत्मा के मूलभूत कार्य हैं । वे हैं - चैतन्य का पूर्ण विकास, आनन्द का पूर्ण विकास, शक्ति का पूर्ण विकास अर्थात् अनन्त चैतन्य, अनन्त आनन्द और अनन्त शक्ति की प्राप्ति । वह चैतन्य जिसका एक कण भी आवृत नहीं होता, वह आनन्द जिसमें कभी विकार नहीं आता, जिसमें कभी शोक की लहर नहीं आती, वह अखण्ड आनन्द, अव्याबाध्य आनन्द, वह शक्ति जिसमें कोई बाधा नहीं होती, कोई स्खलना नहीं होती, कोई रुकावट नहीं होती । यह केवल आत्मा में ही हो सकता हैं । किन्तु जहां शरीर है और शरीर के द्वारा जो चैतन्य प्रकट हो रहा है । वह अखंड नहीं होगा । शरीर के माध्यम से प्रकट होने वाला आनन्द भी अव्याबाध नहीं होगा । शरीर के माध्यम से प्रकट होने वाली शक्ति भी अव्याहत नहीं होगी। माध्यम के द्वारा जो भी प्रकट होता है, वह कभी पूर्ण नहीं होता । माध्यम का अर्थ होता है— बेसाखी। अपने पैरों से चलने वाला व्यक्ति जिस शक्ति का अनुभव करता है, बसाखी के सहारे चलने वाला व्यक्ति वैसी शक्ति का कभी अनुभव नहीं कर सकता । बैसाखी का सहारा तभी लेना पड़ता है, जब पैरों में शक्ति की कमी होती है । यदि पैरों में शक्ति पूरी हो तो बैसाखी निरर्थक है । मनुष्य माध्यम का सहारा तब लेता है जबकि पूरक की ज़रूरत होती है। आंखों की शक्ति न्यून होती है, तब चश्मा लगाना पड़ता है। वह शक्ति का पूरक होता है । देखने की शक्ति न्यून न हो तो चश्मा आवश्यक नहीं होता, माध्यम की आवश्यकता नहीं होती ।
आत्मा की अभिव्यक्ति का माध्यम है शरीर । शरीर के माध्यम से ही आत्मा की शक्तियां अभिव्यक्त होती हैं । चैतन्य की अभिव्यक्ति, आनन्द की अभिव्यक्ति, शक्ति की अभिव्यक्ति — ये सारी अभिव्यक्तियां शरीर के माध्यम से होती हैं ।
चैतन्य की अभिव्यक्ति के साधन हैं— इन्द्रियां, मन और बुद्धि । आनन्द की अभिव्यक्ति का माध्यम है—अनुभूति । शक्ति की अभिव्यक्ति का माध्यम हैशरीर। हाथ, पैर आदि सारे अवयव शक्ति की अभिव्यक्ति के माध्यम हैं । इन्द्रियां भी शक्ति की अभिव्यक्ति के मार्ग हैं। शक्ति के बिना कुछ भी नहीं होता । चैतन्य की अभिव्यक्ति भी शक्ति के बिना नहीं हो सकती । आनन्द की
१४६ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण
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