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विश्लेषण, मन की सूक्ष्मतम प्रक्रियाओं का अध्ययन और उसके व्यवहार का बोध आता है।
कर्मशास्त्र मन की गहनतम अवस्थाओं के अध्ययन का शास्त्र है। कर्मशास्त्र को छोड़कर हम मानसशास्त्र को ठीक व्याख्यायित नहीं कर सकते, मानसशास्त्र में जो आज अबूझ-गूढ़ पहेलियां हैं उन्हें समाहित नहीं कर सकते और न अध्यात्म की गहराइयों में जा सकते हैं। कर्मशास्त्र के गंभीर अध्ययन का मतलब हैअध्यात्म की गहराइयों में जाने का एक गहरा प्रयत्न । जो केवल अध्यात्म का अनुशीलन करना चाहते हैं किंतु कर्मशास्त्र पर ध्यान देना नहीं चाहते, वे न अध्यात्म की गहराइयों को ही समझ सकते हैं और न वहां तक पहुंच ही सकते हैं। इसलिए कर्मशास्त्र और योगशास्त्र तथा वर्तमान मानसशास्त्र-तीनों का समन्वित अध्ययन होने पर ही हम अध्यात्म के सही रूप को समझ सकते हैं और उसका उचित मूल्यांकन कर सकते हैं। ___अध्यात्म को समझने के लिए कर्मशास्त्र को समझना आवश्यक है। यह इसलिए आवश्यक है कि कर्मशास्त्र में हमारे आचरणों की कार्य-कारणात्मक मीमांसा है। हम जो भी आचरण करते हैं उसके दो कारण होते हैं। एक है बाहरी कारण और दूसरा है भीतरी कारण। बाहरी कारण बहुत स्पष्ट होते हैं।
एक आदमी चला जा रहा है। रास्ते में आग जल रही है। आग के निकट आते ही वह अपना पैर खींच लेता है। उसने अपना पैर क्यों खींचा, इसे हम स्पष्टता से समझ सकते हैं। कारण स्पष्ट है। रास्ते में आग थी। पैर नहीं खींचता तो पैर जल जाता। यह बाहरी कारण है। हमारी समझ में आ सकता है। कोई कठिनाई नहीं है।
एक आदमी बीमार है । दवा ले रहा है । बीमार होने के कारण अस्वाभाविक प्रवृत्ति भी कर रहा है। उदास है, खिन्न है। और भी दूसरे-दूसरे आचरण कर रहा है। बीमारी के पीछे जो कारण है वह बाहरी कारण नहीं है। वह आंखों से दिखायी देने वाला कारण नहीं है। वह भीतरी कारण है । उस कारण की खोज करनी होगी। ... ____ एक बीमार आदमी अस्वाभाविक आचरण कर रहा है, उसके पीछे कारण क्या है ? रोग है। रोग का कारण क्या है ? वह भीतरी कारण है । उस आन्तरिक कारण को खोजने की जरूरत है। जहां आन्तरिक कारण होता है वहां खोज का प्रश्न आता है और साथ-साथ विभिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत होते हैं।
बीमार चिकित्सक के पास जाता है। बीमार को देखकर विभिन्न चिकित्सक भिन्न-भिन्न बातें कहते हैं
६२ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण
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