Book Title: Chatvar Karmgranth
Author(s): Chandraguptasuri
Publisher: Jain Atmanand Sabha
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________________ देवेन्द्रसूरिविरचितखोपज्ञटीकोपेतः [गाथा 'इंदिय कसाय अवय, किरिया पण चउर पंच पणवीसा / जोगतिगं बायाला, आसवभेया इमा किरिया // 13 // काइय 1 अहिगरणीयार, पाउसिया 3 पारितावणी किरिया / पाणइवाया५ऽऽरंभिय६, परिगहिया 7 मायवती य 8 // 14 // मिच्छादसणवत्ती 9, अप्पचक्खाण 10 दिट्टि 11 पुट्टी य१२ / पाडुच्चिय 13 सामंतोवणीय 14 नेसत्थि 15 साहत्थी 16 // 15 // आणवणि 17 वियारणिया 18, अणभोगा 19 अणवकंखपच्चइया 20 / अन्नापओग 21 समुदाण२२, पिज२३दोसे२४रियावहिया२५ // 16 // आश्रवतत्त्वम् // भावण चरण परीसह, समिई जइधम्म गुत्ति बारस उ / पंच दुवीसा पण दस, तिय संवरभेय सगवन्ना // 17 // संवरतत्त्वम् // बारसविहं तवो निज्जरा उ अहवा अकामसक्कामा / / पयइठिईअणुभागप्पएसभेया चउह बंधो // 18 // निर्जराबन्धतत्त्वे // संतपयपरूवणया१, दवपमाणं च 2 खित्त 3 फुसणा य 4 / कालो 5 अंतर 6 भागा 7, भाव ८ऽप्पबहू 9 नवह मुक्खो // 19 // जिण१अजिणरतित्थ३तित्था४, गिह५अन्नक्षसलिंग थीटनर९नपुंसा१०। पत्तेय११संयबुद्धा१२, वि बुद्धबोहि १३क१४ऽणिक्का य१५॥ 20 // इति मोक्षतत्त्वम् // इत्युक्तं सझेपतो नवतत्त्वखरूपम् , विस्तरतस्तु श्रीधर्मरत्नटीकातोऽवसेयम् / तदेवं येन कर्मणाऽमूनि नव तत्त्वानि श्रद्दधाति तत् सम्यक्त्वम्, किंविशिष्टं ? "खइयाइबहुभेयं" ति क्षायिकमादौ येषां ते क्षायिकादयः, क्षायिकादयो बहवो भेदाः प्रकारा यस्य तत् क्षायिकादिबहुभेदम् / इहादिशब्दावेदकौपशमिकसाखादनक्षायोपशमिकग्रहणम् / एतयाख्यानगाथा 1 इन्द्रियाणि कषायाः अव्रतानि कियाः पञ्च चलारः पञ्च पञ्चविंशतिः। योगत्रिकं द्वाचवारिंशदाश्रवमेदा इमाः क्रियाः // 13 // कायित्यधिकरणिकी प्रादेषिकी पारितापनिकी क्रिया / प्राणातिपातिक्यारम्भिकी पारिग्र. हिकी मायाप्रत्ययिकी च // 14 // मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी अप्रत्याख्यानिकी दृष्टिकी स्पृष्टिकी च / प्रातित्यकी . सामन्तोपनिपातिकी नैःश त्रिकी खाहस्तिकी // 15 // आनयनिकी विदारणिकाऽनाभोगिकी अनवकालाप्रत्ययिकी / अन्यप्रायोगिकी समुदानिकी प्रेमिकी दैषिकी ऐर्यापथिकी // 16 // भावनाः चरणानि परीषहाः समितयः यतिधर्माः गुप्तयः द्वादश तु / पञ्च द्वाविंशतिः पञ्च दश त्रिकं संवरमेदाः सप्तपञ्चाशत् // 17 // द्वादश विधं तपो निर्जरा तु अथवा अकामसकामा। प्रकृतिस्थितिअनुभागप्रदेशभेदाच्चतुर्धा बन्धः // 18 // सत्पदप्ररूपणता द्रव्यप्रमाणं च क्षेत्रं स्पर्शना च / कालोऽन्तरभागौ भावाल्पबहुत्वे नवधा मोक्षः // 19 // जिनाजिनतीर्थातीर्थी गृहान्यखलिंगस्त्रीनरनपुंसकाः। प्रत्येकवयंवुद्धा अपि बुद्धबोधितकानेके (सिद्धाः) च // 20 //

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