________________ संसार एवं स्वप्न संसार एवं स्वप्न . राजगृही मानो आज तो ऐतिहासिक-संस्मरण का एक अंग सदृश बन कर रह गयी है। किन्तु प्राचीन काल में यह नगर वैभव और सम्पन्नता में चरमोत्कर्ष के सौपानों पर आरूढ था, जिसकी तुलना आधुनिक युग के सर्वश्रेष्ठ नगरों में से किसी के साथ करना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है। जंबूदीप के अन्तर्गत भरत क्षेत्र में मगध नामक एक सर्व शक्तिमान देश था। देश अर्थात् आज की परिभाषा प्रभुता-सम्पन्न एक राष्ट्र नहीं, अपितु एक प्रदेश। जैसे भारत वर्ष में आज एक महाराष्ट्र है, ठीक उसी भाँति मगध भी एक राज्य था। राजगृही उसी मगध की राजधानी थी। राजधानी अर्थात् उसकी कल्पना करना दिन में तारा दर्शन करने जैसा है। विशाल... विराट और मीलों तक फैला एक नगर था। इसकी रचना असंख्य विदेशियों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करने के लिये पर्याप्त थी। देश-प्रदेश के कई पर्यटक नगर दर्शन के लिये प्रायः यहाँ आते, ठहरते और जी भर कर घूमने का आनन्द लूट कर जाते समय इस नगरी की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए तनिक भी अघाते नहीं थे। यहाँ के राजपथ और मार्ग विशाल थे। एक साथ पाँच-पाँच मदोन्मत्त गजराजों की पंक्ति आसानी से गुजर सकें, इतने चौड़े और प्रशस्त यहाँ के मार्ग थे। मार्ग के दोनों ओर अशोक वृक्ष तथा आकाश से बातें करते विभिन्न विटपों की हारमालाएँ बिछी हुई थी। जिसकी शीतल छाया में ग्रीष्म की भरी दुपहरी में भी नगर जन और भूलेभटके पथिक आराम के साथ फिर सकते थे। क्लान्त यात्री यहाँ आकर अपनी थकान भूल जाता था। . मार्ग की गलियों और मुहल्ले भी समान्तर, समचौरस बिछे हुए थे, जो किसी न किसी मार्ग को परस्पर जोड़ते थे, मिलाते थे। मार्ग पर विविध प्रकार की वस्तु विक्रय की और माल-बिक्री की दूकाने लगी हुई थीं। प्रत्येक दूकान में विक्री योग्य माल या वस्तुएँ करीने से सजायी हुयी थी। इमारतों की रचना इस प्रकार की गयी थीं कि नीचे दूकान और ऊपर आवास। साथ ही उक्त आवासों का प्रवेश द्वार प्रायः गली के भीतर पड़ता था। गली-मुहल्ले भी इतने चौड़े अवश्य थे कि तीन अश्वारोही एक साथ आसानी से गुजर सकते थे। प्रशस्त राजमार्ग और गली-मुहल्ले साफ़ सुथरे और सुन्दर थे। भूलकर भी कभी वहाँ कूड़े-करकट या गंदगी के दर्शन नहीं होते थे। नगर के मध्य भाग में रहे विशाल उद्यान और खिल खिलाते कुंज-निकुंज अनायास ही हर किसी का मन मोह लेते थे। इसी तरह नगर के विभिन्न स्थानों में छोटे छोटे बाग-बगीचे भी थे। यहाँ पर्याप्त मात्रा में सरोवर, नाट्यगृह, चित्र शालाएँ, संगीत केन्द्र, नृत्यशालाएँ, विश्रामगृह और क्रीड़ागृह थे। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust