Book Title: Bhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Author(s): Muniratnasuri, Vijaykumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala
View full book text ________________ // 485 // H ARR820 उत्सर्पिणीप्रथमारक स्वरूपम् म्बुदाश्च क्षाराम्लविषाग्न्यशनिसंज्ञकाः। वषिष्यन्ति क्षितौ वारि खनामसदृशं भृशम् // 62 // भगन्दरज्वरश्वासकासशूलशिरोर्तयः / रोगाः कुष्ठादयोऽन्येपि मानां तेन भाविनः // 63 / / स्थास्यन्ति दुःखं पशवस्वस्ताः क्रूरा जलात्ततः। भावी क्षेत्रवनोद्यानवल्लीवृक्षतणक्षयः // 64 // गिरिगर्त्तापगाप्रायं समं भावि ततः क्षितौ / वैताढ्यमृषभकूटं गंगासिन्धू विनाऽखिलम् / / 65 / / तदा कदाचिदंगारमयीभूभस्ममय्यपि / कदाचिद्वारिबहुला भाविनी पंकिलाऽपि च // 66 // हस्तोचा निष्ठुरगिरो दुर्बलाः कर्कशांगकाः। स्तब्धग्रीवाः क्षुद्रनाशाः सरोगाः क्रोधदुस्तराः॥६७।। भविष्यन्ति नरा नायर्यो निवपाश्चीवरोज्झिताः। विंशत्यब्दी नृणामायुः पोडशाब्दी तु योषिताम् // 68 // युग्मम् / / पवर्षा महिला गर्भ धर्ता दुःखप्रसस्तदा / पोडशाब्दा भृरिनतपौत्रा वृद्धा तु भाविनी // 69 // वैताढ्याद्रेनद्युभयतटक्ष्मास्थविलेषु च / द्वासप्ततौ निवत्स्यन्ति नरा नार्यश्च बीजवत् // 70 / / तटे तटे तटिनीनां भविष्यन्ति तथैव च / बिलानि तेषु स्थास्यन्ति तिर्यश्चो बीजमात्रवत् // 71 // मांसाहाररताः पापाः क्रूरा नरकगामिनः / हहा मनुष्यास्तियश्चस्तदा सर्वेऽपि भाविनः // 72 // तदा गंगासिन्धुनद्योः श्रोतो रथपथोन्मितम् / वक्ष्यत्युद्यद्भरिमत्स्यकच्छपैराकुलं जलम् // 73 // तत्रैत्य रात्रौ मत्स्यादीन | कृष्ट्या मोक्ष्यन्ति ते स्थले / खादिष्यन्त्यति चण्डांशुतापपक्वान् पुनर्निशि // 74 // भोक्ष्यन्ते ते सदैवेत्थं घृताद्यासीन यत्तदा / न शय्यासनगेहादि नान्नपुष्पफलादि च // 75 // स्याद् भरतैखतेषु दुःषमैवं दशस्वपि / एकान्तदुःपमाप्येकविंशत्यब्दसहस्रमा // 76 // दुःपमातिदुःषमारावेतावेवोक्तरूपिणौ / आद्यद्वितीयौ वैलोम्यादुत्सर्पिण्यां भविष्यतः // 77|| एकान्तदुःषमारे चोत्सर्पिण्याः प्रथमे* गते / मेघाः पञ्च भविष्यन्ति पृथक् सप्ताहवृष्टयः // 78 // कस्तितापां वसुधां प्रथमस्तत्र पुष्करः / क्षीरमेघो द्वितीयस्तु शस्यानि जनिष्यति // 79 // तार्तीयीको घृतमेघः स्नेहमुत्पादयिष्यति / औपध्याद्यऽमृतमेघश्चतुर्थस्तु विधास्यति // 80 // रसमेघो रसं स्रष्टा HER-2403PRAB // 485 //
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