Book Title: Bhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Author(s): Muniratnasuri, Vijaykumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala
View full book text ________________ श्रीअमम // 542 // अदत्त तुष्ट्या परया श्रद्धासत्कारपूर्वकम् // 35 // युग्मम् // मयाऽपि मिथ्यादृष्टित्वादुर्द्धरक्रोधवह्निना। अदाहि दुर्वाक्ज्वालाभिः | जिनेश| करालाभिरसौ भृशम् / / 36 // ततः साऽनशनं कृत्वा मृत्वा सद्वंशजा तव / पद्मश्रीरभवत्कान्ताऽपराप्यन्ते स्वगर्हणात् // 37 // ते | चरित्रम् / उभेऽपि मत्कान्ते जाते मृत्वा तव प्रिये। प्राचीनजन्मसंस्कारानुवर्तितगुणान्विते / / 38 // अहमप्यात्मपाण्डित्याभिमानग्रस्तमानसः। पद्मश्रीबुद्धि श्रीस्वरुपम् मृत्वाऽभूवं सारमेयस्तबामेयगुणौकमि // 39 // ततः प्राक्तन एवायं रागः पद्मश्रियो मयि / बुद्धिश्रियस्तु विद्वषो विशेषोपचितोऽजनि 40 // पद्मश्रीस्वमुखप्राप्तनमस्कारप्रसादतः / क्लीवेनापि मया देवश्रीरियं भुज्यतेऽद्भुतम् // 41 // एतां प्रत्युपकर्तुं चागच्छंस्त्वां पोतग धन ! / वार्डावदर्श देवानां चामोघं दर्शन ततः // 42 // इदं गृहाण तिलकचतुर्दशममूल्यकम् / दिव्यमाभरणं पद्मश्रियोऽपि | * |च समर्पयेः // 43 / / मम शंसेः प्रणाम चेत्युक्त्वा देवस्तिरोदधे / वेलाकूले धनोऽप्येत्योजयिन्यामाययौ क्रमात् // 44 // त्रि. वि०॥ गृहे प्राप्तः कृतातिथ्यक्रियां पद्मश्रियं प्रियाम् / भुक्त्वाऽपृच्छद्धनो गेहे कालकः किं ? न दृश्यते // 45 // पद्मश्रीः कथयामास मृतः प्राणेश ! कालकः / कथं न्विति धनेनोक्त साऽभ्यधानिजकर्मणा // 46 // धनोऽभाणीद् गृहसे किं ? जानेऽहं स यथामृतः / कथं ?* विति तयोक्तोऽसाविति वृत्तान्तमाख्यत // 47 // त्वत्प्रदत्तनमस्कारप्रभावात्कालको दिवि / देवोऽभृद्वाद्धिमध्ये च प्राक्प्रीत्याऽऽगत्य | मेऽमिलत् // 48 // प्रणामपूर्व तेनेदं चाप्यताऽऽभरणं मया / तब प्रिये ! नमस्कारोपकारं स्मरताधिकम् // 49 / / पद्मश्रिया गृहीत्वा तत्सुदिने च शुभे च भे / सर्वाङ्गीणं पर्यधायि दिव्यं विश्वकमोहनम् // 50 // अलङ्कारेण तेनैपा भूचरी सुरीव व्यभात् / पश्यन् | | सर्ग-२० |लोकोऽपि तां देव इवानिमिषलोचनः / / 51 / / लोकोक्तिपंक्तिपङ्कत्या च तदाभरणकौतुकम् / राज्ञो राझ्याश्च कर्णान्तमागाद्रागातिवृद्धि // 542 / / कृत् // 52 // अन्यदा तन्महादेव्या प्रेष्य दासीमयाच्यत / पद्मश्रियाऽपि सा नोचे दिव्यमाभरणं बदः // 53 / / मत्तोऽन्या परिधातुं
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