Book Title: Bhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Author(s): Muniratnasuri, Vijaykumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala

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Page 245
________________ // 525 // पुष्पसारदीक्षास्वरूपम् | लोकाग्रं क्लेशवजितम् // 22 // पौनःपुन्यादयं कुर्वन्न व्यरंसीद् यदाग्रहम् / तदा पितृभ्यामुबाष्पनेत्राभ्यामन्वमन्यत // 23 // त्यक्त्वा राज्यस्य देशस्य मोहमन्तःपुरस्य च / तत्रैव देवतादत्तोपधिनिरुपधिक्रमः // 24 // प्रवर्द्धमानसंवेगसारः संसारपारदाम् / दीक्षा कुमारः श्रीपुष्पसारः सूरेस्तदाददे ॥२५|युग्म // साम्यमत्रे श्रुतिपथं प्राप्तेऽप्याः सद्गुरोर्मुखात् / मेने कुमारः ख लोकातिवर्तिपदसंश्रितम् // 26 // अथ क्षेमंकरो भक्तिचन्द्रिकाप्रसरादिव / इत्यूचे मौलिमुकुलत्करपंकजकोरकः / / 27 / / यद्यस्ति भगवन्मेऽपि सर्व | साम्यस्य योग्यता / आशु तद्दीयतां दीक्षा क्व ? वीक्षा सद्गुरोः पुनः // 28 // श्रीमान सरप्रभः सरित्विा ज्ञानोपयोगतः। तस्य | भोगफलं कर्म देशसाम्यमुपादिशत् / / 29 / / स देशसाम्यलाभेऽपि सर्वसाम्यैकबद्धधीः। प्रतिवेशिनमात्मानं मेने मुक्तिश्रियस्तदा। | // 30 // विजहार ततोऽन्यत्राऽप्रतिबद्धः समीरवत् / मुनिना पुष्पसारेणाऽन्वितो गणधराग्रणीः // 31 // हारे प्रहारे खजनेऽरिजने | पत्तने बने / नवपिनिर्विशेषोऽपि विशेषज्ञाग्रणीरभूत् // 32 // स्वमानसान्मोहजालं धीवरस्याऽस्य कर्पतः / मन्ये त्रासात्पीड्यमानमीनो मीनध्वजो ययौ // 33 // परीषहचमू निनन्नुपसर्गाश्च हेलया / स जज्ञे यत् क्षमानाथस्तच्चित्रायाऽस्य चातुरी // 34 // तपांसि तप्यमानश्च द्वादशांगधरः क्रमात् / पुष्पसारो मुनिर्नव्योऽप्यभूच्चित्रं पुरातनः // 35|| रक्षितः पञ्चसमितिबलैगुप्तित्रये स्थितः। गुणैश्चित्रं स बद्धाक्षोप्युद्यमे मुक्तयेऽधिकम् // 36 // तथ्यं पथ्यं चेदऽवादी सिद्धं शुद्धमभुक्त चेत् / चेदऽयासीदिने पश्यन् स सिद्धान्तानुर|क्तधीः // 37 // स जडाशयदूरस्थोऽप्याश्चित्रं प्रतिमा व्यधात् / द्वादश द्वादशविधां मूर्ति विभ्रत्तपोमयीम् // 38 // द्रढिम्ना समिति वस्य तपसां महसापि च / रञ्जितेन स्तुतिश्चक्रे शक्रेणेति दिवि स्वयम् // 39 // पुष्पसारो मुनिर्नाम्ना वज्रसारस्तु तेजसा। शक्यश्चलयितुं देवैरपि नात्मव्रतस्थितेः // 40 // श्रुत्वेत्यऽश्रद्दधन्मिथ्यादृष्टिरेकः मुरस्ततः। प्राप्तः क्षमामपि प्राप्तोऽक्षमा श्रीपुरवर्तिनम् / / // 525 //

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