Book Title: Bhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Author(s): Muniratnasuri, Vijaykumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala

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Page 247
________________ // 527|| केवलं लब्ध्वा मुक्तिगमनम् | // 60 // अनेषणां पुरश्चक्रे प्रतिवेश्म सुराधमः / तामलंपिष्ट न मुनिः स्पर्द्धा काप्युभयोरहो // 6 // कृत्वा सञ्चातिरेकेण सुरं तमव | कीणिनम् / स मुनिः पारणं चक्रे तद्वहिःसन्निवेशने // 62 / / भूयोऽप्यकारणद्वेषी सुरस्तं मुनिमन्वगात् / लुम्पेदादाननिक्षिपोत्स- | वेष क्रुधा खिति // 63 / / मुनिस्त्वाश्रयमागत्य विधिनालोचयेद् गुरोः। प्रमृज्य पात्राद्यादत्त दण्डकं चामुचन्मृदु // 64 // इत्थं चतु-15 र्थसमितेः पारं प्राप्ते मुनौ सुरः / चकार श्लेष्माद्युत्सर्गस्थण्डिलं कीटिकाकुलम् // 65 // उत्सर्गसमितिज्ञोऽथ सजीवं स्थण्डिलं त्यजन् / श्ल माधुत्सर्गमातेने शुद्ध तत्र मुनीश्वरः // 66 // इष्टानिष्टषु भावेषु रागद्वेषकहेतुषु / दर्शितेष्वपि देवेन नात्मारामः स तौ व्यधात | // 67 / / ग्राम्यीभूय सुरे मिथ्याजल्पं तन्वति नो मुनिः। चकार क्वापि वाग्वृत्तिसंवृतिप्रवणः सदा // 68 / / आतापनापरस्याऽन्हि | रात्रौ तूर्वासनस्थितः / नोपसगैरपि सुरः साधोः कायमकम्पयत् / / 69 / / इत्थं तत्क्रियया तुष्टः साक्षाद्भूय मुनि सुरः / इन्द्रप्रशंसामाख्यायाऽस्तावीदऽक्षमयच्च तम् // 70 // नत्वा गते यथास्थानं देवेऽथ मुनिकुञ्जरः। प्रसन्नया स्वयुयापि न लेभे मदमद्धृतम् // 71 // पञ्चप्रकारमाचारमतीचारपराङ्मुखः। आराधयन्नयं मूलाद् घातिकर्माणि जनिवान् / / 72 / / केवलश्रियमर्जित्वा दुविधानुपकृत्य सः / क्रमानिर्विग्रहो भेजे मुक्तिवेश्याभुजंगताम् // 73 // इतः क्षेमकरः पुष्पसारस्य सुहृदित्यथ / श्रीपुष्पकेतुना राज्ञा सप्रसादमदृश्यत / / 74|| राजसेवारसज्ञेन कुमुदेनेव सम्पदम् / प्रा|प्तुं तेन निजस्वामिमानसे विदधे स्थितिः // 75 // स द्वादशव्रती भंगकैरंगीकृतामपि / अप्राप्तभंगामाश्चर्य यावजीवमपालयत् // 76 // श्रावकप्रतिमा चैकादश चान्द्रीः कला इव / शंकरो निःकलंकास्ताः स क्रमान्निरवाहयत् / / 77 / / विभ्रचतुर्विधां बुद्धि विद्यां नीति च भूपतेः / मृत्तिमर्हन्निवाभ्यर्थ्यः सोऽभूद्विश्वप्रियंकरः // 78 // निजराज्यधुरां वोढुमशक्यां जीर्णमत्रिभिः / वृद्धोक्षैरिव विज्ञाय पुष्प // 527 //

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