Book Title: Bhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Author(s): Muniratnasuri, Vijaykumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala

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Page 256
________________ श्रीअमम जिनेशचरित्रम् / सुन्दरबाहोरुत्तरम् // 536 // नतैव बालखोद्भवा चापलकारिणी // 42 // अथो सुन्दरबाहुस्तं वक्ता मत्रिन्निदं त्वया। स्वामिभक्त्याऽखिलं तातं प्रत्यार्यत्वेन चौच्यत // 43 // वीरभोग्या वसुमतीत्येतत्सत्यं मृषाऽथवा / सत्यं चेन्न मया वज्रजङ्घस्याच्छेदि किश्चन // 44 // ग्रहीष्ये पश्यतोऽप्यस्य सर्ववीराग्रणीरहम् / सर्वां वसुमती तत्त्वं याचसे प्राभृतं मुधा // 45 // कर्ता प्रत्युत ते स्वामी स्वराज्यं प्राभृतं मम / आयासस्तद् | वृथैवाऽयमस्थाने ते धियांनिधे ! // 46 // हत्वा त्वत्स्वामिना गोपान् बहूनाऽतिमदस्पृशा / गवेन्द्रेणाददे गोमण्डलं भोः सकलं बलात् | // 47 // अहं तु सुभटव्याघ्रस्तमेकोऽपि हठाबूथे / निहत्येतत्स्वसात्कृत्य त्रास्ये पश्य कुतूहलम् // 48 // युग्मम् / / त्रिखण्डभरतस्वाम्यं | तेनाप्तं स्वबलेन चेत् / अस्तु तद्वन्ममाप्येतत्क्रमस्तद्दर्शितो ह्ययम् // 49 // स्वरीत्या वर्तमानान्नः सहते चेत्स तद्वरम् / अथ नो तत्स|मायातु द्रष्टुमुत्कोऽस्मि तं भृशम् // 50 // धर्मस्यो| जयः ख्यातस्तत्साहाय्यान्ममापि च / युद्धे तदावयोः को वा सोढा दोर्दण्डचण्डताम् // 51 // इति तायध्वजस्योक्त्या युगपद्विस्मयं भियम् / हियं च लम्भितो मत्री सदसो निर्गमिष्यति // 52 // तेजोऽद्भूतं मनुष्येषूदियाय कथमीदृशम् / न तावदेतन्निरभिसन्धि मे प्रतिभासते // 53 // ध्यालेति वेगानिर्गत्य समेत्यानन्दपत्तने / तत्सर्व वज्रजङ्घाय स मत्री कथयिष्यति // 54 // युग्मम् / / वाचा दुःसहया तस्य क्रुद्धो मत्तेभवत्क्षणात् / प्रस्थास्यते वज्रजङ्घो न्यश्चयन् |क्ष्मां चमूभरैः // 55 // | इतः पित्रा बलदेवेनापि भ्रात्रान्वितः स्वयम् / सिंहोदर्या इव पुर्याश्चलिता तायकेतनः // 56 // जगद्भयंकरौ तौ च क्षये पूर्वापराब्धिवत् / मिलिष्यतः क्रमाद्वीरजयन्तीगजिंदुर्द्धरौ // 57 // भावी तत्सैन्यवीचिनामभ्यामर्दः परस्परम् / हस्त्यश्वरथपादातनक्रविक्रमभीषणः // 58 // ततः पूरयिता पाश्चजन्यं सुन्दरबाहुकः। द्विषद् बलाभिचारायाऽथर्वाणमिव वेदवित् // 59 // नादेन तेन श सग-१९ // 536 //

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