Book Title: Bhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Author(s): Muniratnasuri, Vijaykumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala
View full book text ________________ श्रीअमम जिनेशचरित्रम् / पुष्पसार मुनिपरीक्षा देवकृता ||526 // * // 41 // वासु तं बहिर्यान्तं ददर्शाऽथ परीक्षितुम् / चक्रेऽग्रे पथि मण्डूकीर्मक्षिकाभ्योऽप्यणीयसीः / 42 // पृष्ठतश्च व्यधान्मत्तमाप तन्तमनेकपम् / न विभेद गतिं साधुम्बीर्यासमितितत्परः // 43 // त्रि० वि०॥ प्राप्तेन हस्तिना हस्तेनो मुक्षिप्य भृतले / पात्यमानोऽपि कृपया मिथ्यादुःकृतमुगिरन् // 44 // खं निनिन्देति मयका धिग् धिग् जीवाः प्रजनिरे। तद्भाव प्रेक्ष्य देवोऽपि श्रद्दधे | शक्रवर्णनाम् // 45 // वैरिभिश्चान्यदाऽवेष्टि श्रीपुरं शरदागमे / तद्राजा जीववदर्भ मध्ये संकुच्य तस्थिवान् // 46 // कोट्टे स्थिताः श्रीपुरेशारविन्दनृपतेर्भटाः। बहिर्भटः समं काण्डखेलिकां चक्रिरेऽनिशम् // 47 // दुर्ग ग्रहीतुं नो बायैः प्रवीरप्यशक्यत। राज्यागमत एवोक्तं दुर्ग स्वस्वामिरक्षणात् // 48 // मध्ये धान्येन्धनस्नेहवारितृण्यादिसञ्चये। क्षीयमाणे नागराणां कष्टं स्पष्टं व्यज़म्भत , // 49 / / भक्षं भेक्षभुजां मध्येपुरमासीसुदुर्लभम् / पुण्यसारयतिस्तस्मात् कात्तिकीप्रतिपदिने // 50 // निगत्य गुरुणा सार्द्ध बहिः कटकमीयिवान् / तस्थौ तदन्तर्भव्यस्यावासे नन्दवणिक्पतेः // 51 // युग्मम् / / अत्रान्तरे च देवेन स परीक्षाकृते पुनः। कटकारक्षिकीभूय मुनिम्यिन्नपृच्छथत / / 12 / / आगान्मुने भवान्मध्यात् तद्वार्ता शंस काश्चन / हस्त्यश्वं रथपादातं कियच्छ्रीपुरभूपतेः॥५३॥ सञ्चयस्तृणधान्यादेरपि भावी कियञ्चिरम् / पौराः पुरावरोधाच निविनाः किमु ? वा नहि / / 14 / पुष्पसारमुनिर्भाषासमितिप्रवणः सदा / तमूचे न वयं विद्मः किश्चित्स्वाध्यायलालसाः / / 55|| अवादीकैतवनरः पुरान्तः भ्रमतां न किम् ? / अदृश्यताऽश्रूयत वा * त्वया किमपि कथ्यताम् // 56 // प्रत्यूचे मुनिरप्येवमपश्यान् पश्यतोऽपि नः / अशृण्वतश्च शृण्वानानपि जानीहि भो यतीन् // 27 // | तस्येत्थं भापासमिती दृढं तं मुनिपुंगवम् / दृष्ट्वा सुरस्य देवेन्द्रवचसि प्रत्ययोऽजनि // 58 // अरविन्दनृपो दण्डं दत्वा शत्रून्न्यवर्तयत् / पुष्पसारान्मुनेनैव व्यावर्तत सुरः पुनः॥५९॥ सोऽन्यदा गुरुणा सार्द्ध मुनिर्जयपुरं ययौ / एषणासमितो मासपारणे तत्र चाऽभ्रमत्
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