Book Title: Bhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Author(s): Muniratnasuri, Vijaykumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 220
________________ * श्रीअमम *** // 50 // जिनेशचरित्रम् / प्रभोर्ज्ञानमहिमा यौवने राजकन्यापाणिग्रहणं कर्ता मातुःप्राच्या इवोत्थायोत्संगरङ्गात्स वालकः / गुरुणा भूभृता दत्तावलम्बो भानुमानिव // 21 // पादान् भूमितले न्यस्य॑स्ते| जोद्योतितदिङ्मुखः / खेलं चलिष्यत्युन्नादि स्वर्णधर्धरकद्विजः // 22 // युग्मम् / / एकएव ज्ञाननिधिरागर्भावासतोऽप्ययम् / इतीव. | मूर्द्धा वक्ताऽस्य लोलच्चूलापदेशतः // 23 // चिन्तामणिरनश्मेवाऽजिह्वालेह्यमिवामृतम् / अद्यावाभृमिजन्मेवाऽनल्पकल्पमहीरुहः / | निधेनवातिग इव त्रयोदश इवांशुमान् / पित्राऽन्यैश्च मन्यमानः स्वामी वर्धिष्यते सुखम् // 25 // नवस्येवाऽस्य शशिनश्चित्रं बाल्या| त्यये सति / स्वतः प्रकाशं लप्स्यन्ते युगपत्सकलाः कलाः // 26 / / द्वासप्ततिकलाविज्ञास्तस्याप्यज्ञानिवत्पुरः। शिष्यतां विभ्रतः प्रेक्ष्य | पिता विस्मयमेष्यति // 27 // छद्मस्थस्याप्यहो दीपस्येवाभ्रकगृहस्थितेः। यस्य ज्ञानं तेज इव तमस्तोमहतिक्षमम् // 28 // विभोस्तस्य * पुरः कीटमणिवत्ते कलाविदः / गर्वाद् विडम्बयिष्यन्ति निजतेजोलवं पुनः // 29 / / युग्मम् // शृङ्गारदेवतागारं त्रिजगन्नेत्रकामणम् / | कामक्रीडावनं स्वामी यौवनं प्राप्स्यति कमात् // 30 // चतुरस्राकृतिर्वज्रर्षभनाराचदेहभृत् / पष्टिधन्वोन्नतिः कर्ता सोऽन्यस्वर्णाचलभ्रमम् // 31 // निश्छद्मपद्मन्यत्कारभयात्पादपद्मयोः / नखरत्नच्छलाल्लग्नः सकुटुम्ब इवोडुपः // 32 // यतिश्राद्धधर्मभूमी धर्तु भोगीश्वरः श्रितः / द्विमृतिय भुजव्याजान्नखरत्नांगुलिफणः / / 33 / / प्रभोः करांविनेत्राद्यैः साम्यं लब्धा मिथः सुखम् / हुन्नाभीवदनायैस्तु दुःखेन मणिदर्पणे // 34 // परमानन्दशमेव रुपं लोकोत्तरं प्रभोः / औपम्याभावतोर्चाचां वाचां भावि न गोचरः // 35 // न परं धारयिष्यन्ति हृदि मृर्द्धनि च प्रभुम् / जनकस्पर्द्धया हारमौलिबिम्बमिपान्नृपाः // 36 / / शूरं च सुकुमारं च वजाब्जेरिख तं कृतम् / उाः करं ग्राहयितुमेष्टा वध्वाश्च भूपतिः // 37 // तमुद्यद्यौवनं न्यायशीलसौरभ्यपावनम् / श्रीसम्मतिर्महीपालो यौवराज्ये निधास्यति // 30 // तस्मिन्निजगुणैरेव नियम्य वशयत्यरीन् / महाराजः स्वयं कर्ताऽऽराधनं धर्मकामयोः // 39 // श्रुत्वा तस्य गुणान् | सर्ग-१७ // 50 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272