Book Title: Bhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Author(s): Muniratnasuri, Vijaykumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala

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Page 233
________________ 4 // 513 // कस्ततः / इत्युच्चैर्वाचयामास स्वस्ति लक्ष्मीपुरादतः // 96 // महाराजाधिराजः श्रीलक्ष्मसेनो जयोदयी / श्रीरत्नसश्चयापुर्यां श्रीसूरनृपमादराव // 97 / / आदिशत्यचिराद् बौद्धधर्मोपासकता स्वयम् / आइत्या निजदेशान्तर्वासिलोकः समं त्वया // 98 // कर्त्ता त्वमेन धमनश्चमादेशं चेत्तदा कासिमण्डलम् / दास्यामि तेऽन्यथाऽऽदास्ये मौलिना सह मण्डलम् / / 99 / / महाक्षपटलाध्यक्षे वाचयित्वेति तस्थुषि / ल्यात्सूररा| विमृश्य तस्य तात्पर्य पर्यालोच्य च मंत्रिणा // 20 // / इति प्रत्यूचिवांश्चण्डवेगं सूरनृपस्तदा। निशाम्य सौम्य ! मद्वाचं शान्तो भूत्वा क्षण हृदि // 1 / / धर्मो हि क्रियते मुक्त्यै स च के कथिता नीतिः | केनापि कीदृशः / स्वबोधात्परबोधाद्वा निश्चित्याङ्गीकृतो हृदि // 2 // अत्रार्थेऽग्रेपि केनापि देवेन च नृपेण च / चक्रे नैव बलात्कारः * कारकेषु जनेष्विह // 3 // पृथग्दर्शनिनो देवास्तेषां चात्र नियामकाः / न चैक्यमेषां भवति भूतं वा भावि वा क्वचित् // 4 // यथा | पुरादौ नैकेन संचरन्तेऽध्वना जनाः / रुचिवैचित्र्यतो मुक्तावपि नूनं तथैव भोः / / 5 / / एवं प्रभिन्ने प्रस्थाने पथ्यस्तथ्यस्त्वसाविति / | वणिग्भिरिब हट्टस्थैर्दर्शनस्थजडो जनः / / 6 / / प्रतार्यते बलान्नैव व्रजन्नान्यत्र वार्यते / न चावस्थाप्यते स्वसिन् किन्तु भ्राम्यन्नितस्ततः | // 7 // वरप्रत्ययतो मृढो गतानुगतिकत्वतः / कोऽपि क्वापि कुतोऽप्यर्थात् क्रव्यार्थीवात्र रज्यति // 8 // त्रि०वि०॥ नचैवं मोक्षमा-15 | णोऽपि नानोपायैजनः क्वचित् / प्रामोति मोक्षमुक्षेत्र जीवः प्रत्युत बध्यते // 9 // वीतरागेण मनसा सम्यक् साम्यात्मकं यदा / || | मार्गमाप्तात्स्वतो वापि शुद्धधीलक्षयिष्यति // 10 // तदा देवं गुरुं धर्म तत्त्वं चात्मपरीक्षया। वीतरागं परिज्ञाय क्षीणकर्माशु | मोक्ष्यति // 11 // युग्मम् // एवं स्थिते धर्मतत्त्वे किमस्थाने तब प्रभोः / आग्रहोऽयं बालवृद्धजडोन्मत्तपिशाचवत् // 12 // न सन्ति | // 513 // | मंत्रिणः किंवा तद्राज्ये केऽपि तद्धिताः / तृतीयं लोचनं ते हि मदान्धस्य महीपतेः / / 13 / / गतानुगतिकत्वेन बलात्कारेण वा नच।।

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