Book Title: Bhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Author(s): Muniratnasuri, Vijaykumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala

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Page 241
________________ // 521 // * सेनासमन्वितम् / / 46 // सूरमर्द्धासनेऽध्यास्य वजी प्राह स सौम्य ! ते / प्रियं करोमि किं ? भृयः शाधि साधितदुर्मत ! // 47 // *सरोऽपि प्राञ्जलिः प्रोचे धर्मबाधानिवारणात् / त्वया तत्कृतमेवाऽतः किं ? प्रियं मे यदर्थये // 48 // तथापि जैनधर्मस्योन्नत्या | नित्यापितश्रिया / वं देवराज ! निर्व्याजं स्वसम्यक्त्वमलंक्रियाः॥४९।। धर्मोपरि / अस्तुंकारस्तद्वचसः स्वप्रश्नालापपूर्वकम् / जगाम धाम सेनान्या सहितः खं दिवस्पतिः // 50 // सूरराजोऽपि विजयी क्रमेणैत्य राजसुत मत्रिपुत्र| निजां पुरीम् / प्रविश्य नागरैः क्लुप्तोत्सवो राज्यमशाच्चिरम् // 51 // श्राद्धधर्म यतिधर्म क्रमादाराध्य साध्यकृत् / स क्षीणकर्मा संजा दृष्टान्तो |तकेवलो मोक्षमासदत् // 52 / / कथयित्वेति सम्यक्त्वकथां पुण्यप्रथां प्रभुः / दुःकर्मसूदनं धर्म यथावत् कथयिष्यति 53 // स्फूत्तिः स म्यक्त्वमन्त्रस्य कस्य स्याद् गोचरे गिराम् / दुर्विधोऽपि यया धर्मराज्या) जायते जनः॥५४॥ परिग्रहादऽनगारागारिणोरधिकारिणोः / | धर्मराज्यं द्विधा सर्वदेशतंयमनामतः॥५५॥ तत्राऽस्पृहः स्वदेहेऽपि निर्ममः खजनादिषु / भक्तिकारिण्यभक्ते च जने तुल्यमन:स्थितिः // 56 // मैत्र्यादिभिर्भावनाभिर्भावितात्मा निरन्तरम् / परीषहोपसर्गेभ्यो निभयः स्थिरसंश्रवः // 57 / / गुणैर्जात्यादिभिर्युक्तो | विनयी च क्षमी दमी / अनुशिष्टौ गुरोस्तुष्टोऽगारदारपराङ्मुखः॥५८॥ सर्वसंयमराज्यस्याधिकारी कथितो जिनः / देशसंयमराज्य| स्यागारीत्वे तद्विलक्षणः // 59 / / च०क०। तयोर्यथोक्तया नीत्या खस्वराज्यानुपालनात् / फलं मुख्य मुक्तिसौख्यं गौणं स्वर्मय॑शर्म |तु // 60 // यथाशक्ति द्वयेऽप्यस्मिन् यतते कोऽपि पुण्यवान् / राज्ञः पुत्रश्च मन्त्री च द्वावप्यत्र निदर्शनम् // 61 // यथाऽस्ति भरत-12 | स्याङ्गभूमेमोलिविभूषणम् / आमोदमन्दिरं पुष्पपुरं पुष्पावतंसवत् // 62 // श्रीपुष्पकेतुरित्यासीत् पुष्पकेतुरिवापरः / तत्र भर्ता भुवः | || प्रीतिरत्योजनका दधत् // 63 // अपूर्वा पुष्पमालेव पुष्पमालेति वल्लभा / चित्रैर्गुणैर्युक्ता सा जज्ञेऽस्याऽलिपराङ्मुखी // 64 // तयोः // 521 //

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