Book Title: Bhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Author(s): Muniratnasuri, Vijaykumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala

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Page 235
________________ // 515 // जोऽपिता चन्द्रभागा कलीयपानामालक्ष्मसेनामा विद्यानां / दूतद्वारा सूरराजस्य लक्ष्मसेनं प्रति हितोपदेशः | अभिमानधनः सिंह इत्र व्याववृते नहि // 33 / / स स्थिखा बहिरावासेष्वशेषानपि पार्थिवान् / मीलयिखा निदाघेऽपि सूरं प्रत्यभ्य|पेणयत् // 34 // चलच्चञ्चलतत्सैन्याश्चीयोत्खाते रजोभरैः। सूर्योऽधात्सोमतां दन्तिदानोल्लासश्च राहुताम् // 35 // भीष्मग्रीष्मे तदा मार्गाः पंकशेषजलाशयाः / दवाग्निदग्धतृण्याश्च सैन्येः कृच्छाल्ललंधिरे // 36 / ' लूकातृष्णादिकष्टोत्थै रोगैः सैन्यजनो घनः / व्यने| शत्पथ्यऽनेशचाऽकालयात्रा सुखाय किम् ? // 37 // स्वचरैः सूरराजोऽपि तं ज्ञात्वा यान्तमु सुरुम् / रहः क्रमागतान् वृद्धमत्रिणो- | ऽमंत्रयत्तदा // 38 // तमूचुस्तेऽपि संनह्य स्वसैन्योजीविनी नदीम् / पृष्ठे कृत्वा चन्द्रभागां खावासान्देहि मा स्म भैः // 39 // सुमु. हृत सुशकुनैः सूरराजोऽपि तैः समम् / एत्य सर्वाभिसारेण तथाचक्रेऽतिविक्रमी // 40 // हास्तिकाश्वीयपादातैर्भुज्यमाना निजेच्छया। | पण्यस्त्रीव चन्द्रभागा नागात्कलुपतां क्वचित् // 41 // स्कन्धाबारेऽस्य नैरुज्यराज्यप्रमुदितो जनः / न गीष्माल्लक्ष्मसेनाद्वा कोऽप्या तंकलयं दधौ // 42 // सूरराजो लक्ष्मसेनं चरैत्विान्तिकागतम् / भट्टैईत्तस्वर्णपट्टैरवोचदिति वाचिकम् // 43 // चतुर्दशानां विद्यानां | पारदृश्वाऽपि किं नृप!। अविचारकतामेव स्वयमादृतवानसि ? // 44 // ज्ञातयोगरहस्योऽपि किं ? विवेकमपाकृथाः। ख्यातिहिं प्राप्यते तेन विना यत्नं कदाचन // 45 // अथाऽधिपत्यमचलं श्रितो लध्वीक्षसे जगत् / भ्रान्तोऽसि यच्चलत्वेन खं तेनापीक्ष्यसे लघुः॥४६॥ तद् व्यवाय इवाऽपायहेतुर्गीष्मे नरेन्द्र ! ते / युज्यतेऽयमारम्भसंरंभः क्षयकारणम् / / 47|| नष्टं न किञ्चिदद्यापि तद् व्यावर्तस्व मा मुहः / लाभच्छेदौ दीर्घदर्शी भृत्वा स्वस्य विचारय // 48 // कृपाधीबोंधिसत्यो व्याघ्राय स्खं वपुर्ददौ / तद्ध्यातुरु| चितस्तत्तेऽन्यम्म द्रोहो हृदापि न // 49 // सुदूरमीयुषोऽप्यस्मात् स्थानात्ते चलतः स्वयम् / मर्यादा स्मरतो वा रिवोद्वेलस्य का पा ? // 50 // लक्ष्मसेनोऽवदत् वीरः कीरवत् भवतां प्रभुः। वाचाटः पाटवं वाचि नाटयन्न विरंस्यति // 51 // तावत् यावदयं / / 515 //

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