Book Title: Bhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Author(s): Muniratnasuri, Vijaykumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala

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Page 216
________________ श्रीअमम // 496 // तनूजाद् ब्रह्मचारिणः॥४५॥ देवि ! देवाधिपः स्वर्गात्वत्सूनोदशाहतः। अहं स्नात्रमहं कर्तुमागामिति स जल्पिता // 46 // शक्रो- जिनेशमात्रिकवन्मातुर्दत्वाऽवस्खापनी ततः / प्रभोर्मूर्त्यन्तरं पार्श्वे विमोक्ता तन्मनो मुदे // 47 // कर्ताऽस्मि भक्ति ते स्वामिन् ! पञ्चस्वप्यु- | चरित्रम् / त्सवेषु ते। विज्ञिप्सुखि देवेन्द्रः पश्चरूपो भविष्यति // 48 // मैत्री प्रभोमहिनैव नीतो लाञ्छनशूकरे / तत्रैकेन सुरङ्गेण कुरङ्गत्वजु- मेरौ स्नात्र | पापि सः॥४९॥ आदास्यते प्रभुं पाणिपुटाभ्यां स्वर्णपद्मवत् / स्फुरदेहप्रभापुञ्जपिञ्जराभ्यां समन्ततः // 50 // युग्मम् // द्वाभ्यां | महोत्सव इन्द्राणाम् वक्राब्जहंसथि स धर्ता चामरद्वयम् / तुर्येण मूनि छत्रं च मित्रं तन्महसामिव // 51 // सोऽर्हद्वके सरसीव लावण्याम्भः स्वदृक्पुटैः / मुहुः पिबन् बलदीवं गन्ताग्रेऽन्येन वलगकृत् // 52 // इत्यादाय प्रभुं निःखो निधानमिव हृत्पुरः / वासवो वेगया गत्या में | देवाद्रिं वायुवद्गमी // 53 // मरुचारुध्वनद्वंशं रसालबहुतालभृत् / धत्ते यो नन्दनं वनं गानं च सुरयोषिताम् // 54 // नित्यैश्चैत्यैः पवित्रोऽयं जिनानामिति भक्तितः / इन्द्रैरपि नमद्भिर्यो दत्तौनत्यादिवौन्नतः // 55 // भूतभावीभवत्तीर्थकृत्स्नात्रघुमृणाम्बुभिः / मन्ये *पिङ्ग विभय॑ङ्गं यत्शृङ्ग कनकच्छलात् // 56 // तत्रान्तः पाण्डकवने शिलां सिंहासनोज्वलाम् / अतिपाण्डुकम्बलाख्यामारोक्ष्यति दिव| स्पतिः / / 17 / / च० क०॥ अर्द्धचन्द्राकृतिः पञ्चशतयोजनविस्तृतिः। खकान्त्याऽर्हद्यशांसीव नित्यान्यऽद्यापि वक्ति या // 58 // प्राच्ये सिंहासने तस्यां प्राङ्मुखोऽङ्कस्थतीर्थकृत् / निवेक्ष्यते सुराधीशः स्वरुपैरुक्तभक्तिकृत् // 59 // शङ्के शेषः शिलावेपस्तदा सेवि- सर्ग-१७ | प्यते जिनम् / तेनैव क्ष्माभरोद्धारकीर्ति लब्धा स वास्तवीम् // 60 // कल्पेशा द्वादश चान्द्रार्को विंशतिर्भवनाधिपाः। द्वात्रिंशद् द्विगुणा इन्द्रा व्यन्तरप्रभुभिः सह // 61 / / जैनजन्माऽऽसनकम्पाद् ज्ञात्वाऽन्येप्युक्तया दिशा / इन्द्रास्त्रिषष्टिरेष्यन्ति तत्र स्वा // 496 // स्वयानगाः॥६२॥ युग्मम् / / मृत्तिकारूप्यकनकरत्नैरेकैर्विमिश्रितः / घटितैः कलशैर्वक्रे योजनप्रमितनवैः // 63 // चन्दनाद्येश्चित्रि

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