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भट्टारक संप्रदाय
किया जा चुका है। प्रतिष्ठा उत्सव के समय अक्सर दूर दूर से भजन या कीर्तन के लिए गायक बुलाए जाते थे। इस के अलावा अन्य समय भी हफ्ते में एकबार मन्दिरों में सामुदायिक भजन करने की प्रथा थी। भजनों के लिए भट्टारकों द्वारा रने गए कई पद उपलब्ध होते हैं।
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मूर्ति यन्त्र और मन्दिरों की निर्मिति से भट्टारकों द्वारा शिल्पकला संरक्षण में महत्त्वपूर्ण योगदान मिला है । कई स्थानों पर मन्दिरों में पाषाण या लकडी के स्तम्भों या छतों पर जिनेन्द्र जन्माभिषेक, सम्मेदशिखर आदि तीर्थक्षेत्र और अन्यान्य कथाओं की प्रतिकृतियां प्राप्त होती हैं। सूरत के गोपीपुरा मन्दिर की एक मेरुमूर्ति पर चार भङ्कारकों की मूर्तियां निर्मित हैं। जिन्तूर के निकट नेमगिरी पर नेमिनाथ की विशाल मूर्ति के पादपीठ पर उस क्षेत्र के संस्थापक वीर संघपति और उनके कुटुंबियों की सुंदर मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । इसी प्रकार अनेक स्थानों पर मन्दिरों के सामने विशाल मानस्तम्भों का निर्माण हुआ है जिन पर समवसरणादि विविध दृश्य अंकित मिलते हैं। भट्टारकों के समाधिस्थानों पर निर्माण किये गए स्मारक भी कई स्थानों पर दर्शनीय बने हैं ।
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हस्तलिखितों की प्रतिमां कराते वक्त कई भट्टारकों ने अपने चित्रकलाप्रेम का परिचय दिया है । जिनसागर विरचित सुगन्धदशमी कथा की एक प्रति ७३ चित्रों से विभूषित है जो नागपुर के सेनगणमन्दिर में उपलब्ध हुई है । अंजनगांव के बलात्कारगण मन्दिर में चौवीस तीर्थकरों के शास्त्रोक्त आसन, यक्ष, यश्चिणियाँ, वर्ण आदि से युक्त सुन्दर चित्र प्राप्त हुए हैं। नागपुर के त्रैलोक्यदीपक नामक हस्तलिखित में बड़े प्रमाण पर मानचित्रों का अंकन हुआ है । काष्ठासंघ माथुरगच्छ के भ. क्षेमकीर्ति के उपदेश से वैराट नगर के जिनमन्दिर को विविध चित्रों से अलंकृत किया गया था। कई सुन्दर प्रतियों का लेखन सुवर्णाक्षरों द्वारा हुआ है । पूजा के लिए जो मण्डल बनाये जाते थे उन में भी कई बार चित्रकला के अच्छे नमूने प्राप्त होते हैं ।
मध्ययुग में अन्य कलाओं की अपेक्षा नृत्य कला कुछ हीन लोगों की कला मानी जाती थी । फिर भी विविध धार्मिक उत्सवों के अवसर पर परियों के खेल को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। खास कर विजयादशमी और पद्मावती की रथयात्रा के अवसर पर नियमपूर्वक इस का प्रयोग होता था ।
इन सब कलाओं के केन्द्रित होने के कारण ही मध्ययुग में मन्दिरों को समाज जीवन के केन्द्रों का स्थान मिल सका । इस से इन कलाओं का अस्तित्व
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