Book Title: Bhakti Kartavya
Author(s): Pratapkumar J Toliiya
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 21
________________ (xiii) "संत कबीर और संत श्रीमद् राजचन्द्र के साहित्य के अध्ययनअनुशीलन से स्व-पर उपकार तो अवश्यंभावी है ही। इसके अतिरिक्त श्रीमद् का साहित्य संत कबीर की भाँति गुर्जरसीमा को लांघ करके हिन्दी-भाषी विस्तारों में महकने लगे यह भी वांछनीय है । यद्यपि हिन्दी में उनका साहित्य - आलेखन बेशक हुआ है, परन्तु उसका प्रचार जैसा होना चाहिए वैसा नहीं हुआ । महात्मा गांधीजी के उस अहिंसक शिक्षक को गांधीजी की भाँति जगत के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए, कि जिससे जगत शांति की खोज में सही मार्गदर्शन प्राप्त कर सके | इतना होते हुए भी, हम लोगों की यह कोई सामान्य करामात नहीं है कि हम लोगों ने उनको (श्रीमद् को) भारत के एक कोने में ही छिपाकर रखा है- क्योंकि मतपंथबादल की घटा में सूरज को ऐसा दबाये रखा है कि शायद ही कोई उनके दर्शन कर सकें ! ॐ " ( पत्र दिनांक १४-१२-६९) और इस हेतु उन्होंने इस अल्प योग्यता वाली आत्मा की कलम की ओर दृष्टि लगाई थी, इतना ही नहीं, उनके अल्प किन्तु बहुमूल्य सत्ससमागम के अंतर्गत उन्होंने श्रीमद् राजचंद्रजी के "आत्मसिद्धि शास्त्र" का समुचित हिन्दी अनुवाद करने की प्रेरणा देकर उसका प्रारंभ करवाया था और प्रायः आधा अनुवाद स्वयं जाँच -सुधार भी गए थे । किन्तु इसी बीच हुए उनके देहविलय के प्रमुख कारण से यह कार्य आगे स्थगित हो गया । अब शायद उनके ही अनुग्रह और योगबल से श्रीमद्जी के एवं उनके स्वयं के साहित्य को संपादित, अनूदित कर हिन्दी, अंग्रेजी में प्रस्तुत करने का समय समीप आ गया है । श्रीमद् राजचंद्र आश्रम की अधिष्ठात्री पूज्या माताजी इसके लिए बारबार प्रेरणा दे रहीं हैं । गुजराती नहीं जानने वाले आत्मार्थीजनों के उपयोग के हेतु मूल भाषा में परन्तु देवनागरी लिपि में स्वतंत्र रूप से यह पुस्तक इस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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