Book Title: Bhakti Kartavya
Author(s): Pratapkumar J Toliiya
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 115
________________ शरीराकार रही शरीर न थाउं, रत्न दीप जेम स्व-पर- प्रकाशक, लवण जेम जणाउं सही ; अग्नि जेम उपयोग चीपीओ, स्वयं ज्योति छं प्रगट अहिं हुं ५. पकडावुं कोई सज्जनथी; प्रयोगथी विजळी माखण जेम, Jain Education International सहजानन्दघन अनुभवथी हुं ६. ६. पद चेतावनी: जया ! तू चेत सके तो चेत, सिर पर काल झपाटा देत .. दुर्योधन, दुःशासन बन्दे ! कीन्हो छल भरपेट ; देख ! देख ! ! अभिमानी कौरव, दल बल मटियामेट जीया १ , गर्वी रावण से लम्पट भी गये रसातल खेट ; मान्धाता सरिखे नृसिंह केई, हारे मरघट लेट जीया २. डूब मरे सुभूम से लोभी, निधि रिद्धि सैन्य समेत ; शकी चक्री, अर्धचकी यहाँ, सबकी होत फजेत , जीया ३. 84 .. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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