Book Title: Bhakti Kartavya
Author(s): Pratapkumar J Toliiya
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 122
________________ अने वीतराग पुरूषना मूळ धर्मनी, उपासना ज अखंड. प्रभु उपासना० (२) जाग्रत रहो उर म्हारे ! भव-पर्यन्त स्हारे, ___ छूटो विषयानंद...... ॐ ....... ५. आप कने हे नाथ ! अटलु हुं मागुं ते, सफळ थाओ अभिलाष, मुज सफळ० (२) हुँ सेवक तुं स्वामी, पुष्ट निमित्त अनुगामी, सहजानन्द विलास...... ॐ ....... ६. मंगल दीपक रहस्य जगमग जगमग जगमग दीया, प्रगटाया प्रभु मांगलिक दीया, अपने घट किया मांगलिक दिया, अहम्मम गालक अर्थ-प्रक्रिया...१. केवलदर्शन-ज्ञान स्वकीया, द्विविध चेतना निज रस प्रिया, भ्रम तम विध्न विनाशक क्रिया, . अनंत वीर्य अरि अंत करी; या...२. अनंत-चतुष्टय स्वाधीन जीया, मंग-स्व सहजानन्द-पद लीया; मंगल दीप-रहस्य सुधीया! - अन्तरंग विधि अनुभवनीया .३. 91 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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