Book Title: Bhakti Kartavya
Author(s): Pratapkumar J Toliiya
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 124
________________ प्रणिपात स्तुति हे परमकृपाळु देव ! जन्म, जरा मरणादिक सर्व दुःखोनो अत्यन्त क्षय करनारो अवो वीतराग पुरूषनो मूळ मार्ग आप श्रीमदे अनंत कृपा करी मने आप्यो, ते अनंत उपकारनो प्रतिउपकार वाळवा हुं सर्वथा असमर्थ छु. वळी आप श्रीमद् कंई पण लेवाने सर्वथा निस्पृह छो, जेथी हुं मन, वचन, कायानी अकाग्रताथी आपना चरणारविंदमां नमस्कार करूंछं. आपनी परम भक्ति अने वीतराग पुरूषना मूल धर्मनी उपासना मारा हृदयने विषे भवपर्यन्त अखंड जागृत रहो अटलुं हुं मागु छु ते सफल थाओ.! .. ॐ शांतिः शांतिः शांतिः 93 . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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