Book Title: Bhakti Kartavya
Author(s): Pratapkumar J Toliiya
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 38
________________ कैवल्य बीज शु? त्रोटक छंद यम नियम संयम आप कियो, पुनि त्याग-विराग अथाग लह्यो, बनवास लियो मुख मौन रह्यो, दृढ आसन पद्म लगाय दियो ।।१।। मन पौन निरोध स्व-बोध कियो, हठ जोग प्रयोग सु तार भयो, जप भेद जपे तप त्यौंहि तपे. उरसेंहि उदासी लही सबपें ॥२॥ सब शास्त्रन के नय धारि हिये, मतमंडन - खंडन भेद लिये, वह साधन बार अनंत कियो तदपि कछु हाथ हजु न पर्यो।।३।। अब क्यों न बिचारत है मनसें कछु और रहा उन साधन से ? बिन सद्गुरू कोय न भेद लहे. मुख आगल हैं कह बात कहे? ॥४॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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