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सत्पुरूषो, तेना चरणारविंद सदाय हृदय विषे स्थापन रहो !
जे छ पदथी सिद्ध छे एवु आत्मस्वरूप ते जेना वचने अंगीकार कर्ये सहजमां प्रगटे छे, जे आत्मस्वरूप प्रगटवाथी सर्व काल जीव संपूर्ण आनंदने प्राप्त थई निर्भय थाय छे, ते वचनना कहेनार एवा सत्पुरूषना गुणनी व्याख्या करवाने अशक्ति छ, केम के जेनो प्रत्युपकार न थई शके एवो परमात्मभाव ते जेणे कई पण ईच्छा विना मात्र निष्कारण करूणाशीलताथी आप्यो, एम छतां पण जेणे अन्य जीवने विषे आ मारो शिष्य छ, अथवा भक्तिनो कर्ता छे, माटे मारो छे, एम कदी जोयु नथी, एवा जे सत्पुरूष तेने अत्यंत भक्तिए फरी फरी नमस्कार हो !
__ जे सत्पुरूषोए सद्गुरूनी भक्ति निरूपण करी छे, ते भक्ति मात्र शिष्यना कल्याणने अर्थे कही छे, जे भक्तिने प्राप्त थवाथी सद्गुरूना आत्मानी चेष्टाने विषे वृति रहे, अपूर्व गुण दृष्टिगोचर थई अन्य स्वच्छंद मटे, अने सहजे आत्मबोध थाय एम जाणीने जे भक्तिनु निरूपण कयु छे, ते भक्तिने अने ते सत्पुरूषने फरी फरी त्रिकाल नमस्कार हो !
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