Book Title: Bhakti Kartavya
Author(s): Pratapkumar J Toliiya
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram
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उघाड न्याय-नेत्र ने निहाळ रे ! निहाळ तु; निवृत्ति शीघ्रमेव धारी ते प्रवृत्ति बाळ तु
उपसंहार
ज्ञान, ध्यान, वैराग्यमय, उत्तम जहां विचार; ए भावे शुभ भावना, ते उतरे भव पार ।
दोहरा
ज्ञानी के अज्ञानी जन, सुख दुःख रहित न कोय; ज्ञानी वेदे धैर्यथी, अज्ञानी वेदे रोय.
मंत्र, तंत्र, औषध नहीं, जेथी पाप पलाय;
वीतराग वाणी विना, अवर न कोई उपाय. जन्म, जरा ने मृत्यु,. मुख्य दुःखना हेतु ;
कारण तेनां बेकह्यां, राग द्वेष अणहेतु. वचनामृत वीतरागनां परम शांतरस मूल;
औषध जे भवरोगनां, कायरने प्रतिकूल. नथी धर्यो देह विषय वधारवा,
नथी धर्मो देह परिग्रह धारवा
देह धर्यो छे कर्मो खपाववा,
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देह धर्यो छे भक्ति कमाववा ।।
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