Book Title: Bhakti Kartavya
Author(s): Pratapkumar J Toliiya
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 102
________________ ते प्राप्त करवा वचन कोनुं सत्य केवळ मानवुं, निर्दोष नरनु कथन मानो 'तेह' जेणे अनुभब्यु' । रे ! आत्म तारो! आत्म तारो ! शीघ्र एने ओळखो, सर्वात्ममां समदृष्टि द्यो आ वचनने हृदये लखो ५ अनित्यादि वैराग्य भावनाएँ अनित्य भावना विद्युत् लक्ष्मी प्रभुता पतंग, पुरंदरी चाप अनंग रंग, आयुष्य ते तो जळना तरंग, शुं राची त्यां क्षणनो प्रसंग ! Jain Education International अशरण भावना सर्वज्ञनो धर्म सुशण जाणी, आराध्य आराध्य प्रभाव आणी ; अनाथ एकांत सनाथ थाशे, एना विना कोई न बांह्य सहाशे । एकत्व भावना शरीरमां व्याधि प्रत्यक्ष थाय, ते कोई अन्ये लई ना शकाय ; 71 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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