Book Title: Bhakti Kartavya
Author(s): Pratapkumar J Toliiya
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 78
________________ जीव हिंसा करतां थकां, लागे मिष्ट अज्ञान' ; ज्ञानी इम जाने सही, विष मिलियो पकवान. ३ काम भोग प्यारा लगे, फल किंपाक' समान; मीठी खाज खुजावतां, पीछे दुःख की खान. ४ जप तप संयम दोहिलो, औषध कडवी जान ; सुखकारक पीछे घनो, निश्चय पद निरवान. डाभ अणी जल बिंदुओ, सुख विषयन को चाव; भवसागर दुःखजलभर्यो, यह संसारस्वभाव. ६ चढ उत्तंग जहांसे पतन, शिखर नहीं वो कूप; जिस सुख अंदर दुःख बसे, सो सुख भी दुःख रूप. ७ जब लग जिनके पुण्य का, पहोंचे नहि करार' ; तब लग उसको माफ है, अवगुन करे हजार. ८ पुण्य खीन जब होत है, उदय होत है पाप; दाजे वनकी लाकरी, प्रजले आपोआप. पाप छिपायां ना छिपे, छीपे तो महाभाग; दाबी डूबी ना रहे, रूई लपेटी आग. बहु वीती थोडी रही, अब तो सुरत संभार ; परभव निश्चय चालनो, वृथा जन्म मत हार. ११ १० . १अज्ञानीने २ झेरीझाडनु नाम ३ मुदत पूरी थई नथी ४ लक्ष 47 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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