Book Title: Bhakti Kartavya
Author(s): Pratapkumar J Toliiya
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 76
________________ बांध्या बिन भुगते नहीं, बिन भुगत्यां'न छुटाय; आप ही करता भोगता, आप ही दूर कराय, २६ पथ कुपथ घटवध करी, रोग हानि वृद्धि थाय; पुण्य पाप किरिया करी, सुख दुःख जग में पाय. २७ सुख दीधे सुख होत है, दुःख दीधा दुःख होय; आप हणे नहि अवरकुं, (तो) अपने हणे न कोय. २८ ज्ञान गरीबी गुरुवचन, नरम वचन निर्दोष ; इनकु कभी न छांडिये, श्रद्धा शील संतोष. २९ सत् मत छोडो हो! नरा, लक्ष्मी चौगुनी होय ; सुख दुःख रेखा कर्म की, टाली टले न कोय. ३० गोधन गजधन रतनधन, कंचन खान सुखान; जब आवे संतोषधन, सब धन धूल समान. शील रतन मोहटो रतन, सब रतनां की खान; तीन लोककी संपदा, रही शील में आन'. शीले सर्प न आभडे, शीले शीतल आग ; शीले अरि करि केसरी, भय जावे सब भाग. ३३ शील रतन के पारखं, मीठा बोले बैन; सब जगसे ऊंचा रहे', नीचा राखे नैन. तनकर मनकर वचनकर, देत न काहु दुःख ; कर्म रोग पातिक जरे, देखन वाका मुख. ३५ ३२ • १ भोगव्या बिना २ आवीने ३ अथडाय ४ उदासीन 45 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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