Book Title: Bhakti Kartavya
Author(s): Pratapkumar J Toliiya
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 57
________________ आवे ज्यां मेवी दशा, सद्गुरू बोध सुहाय ; ते बोधे सुविचारणा, त्यां प्रगटे सुखदाय. ज्यां प्रगटे सुविचारणा, त्यां प्रगटे निजज्ञान'; जे ज्ञाने क्षय मोह थई, पामे पद निर्वाण.. उपजे ते सुविचारणा, मोक्षमार्ग समजाय ; गुरू शिष्य संवाद थी, भांखुषट्पद आंहि. ४२ षट्पदनामकथन 'आत्मा छ,' 'ते नित्य छे,' 'छे कर्ता निजकर्म ;' 'छे भोक्ता' वली 'मोक्ष छे,' 'मोक्ष उपाय सुधर्म.' ४३ षट् स्थानक संक्षेपमा, षट् दर्शन पण तेह; समजावा परमार्थने कह्यां ज्ञानी) अह. ४४ शंका - शिष्य उवाच ४५ नथी दृष्टिमा आवतो, नथी जणातु रूप ; बीजो पण अनुभव नहीं, तेथी न जीवस्वरूप. अथवा देह ज आत्मा, अथवा इंद्रिय प्राण; मिथ्या जुदो मानवो; नहीं जुदु अंधाण. 26 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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