Book Title: Bhakti Kartavya
Author(s): Pratapkumar J Toliiya
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 65
________________ कर्मबंध क्रोधादि थी, हणे क्षमादिक तेह; प्रत्यक्ष अनुभव सर्वने, अमां शो संदेह? १०४ छोडी मत दर्शन तणो; आग्रह तेम विकल्प'; . कह्यो मार्ग आ साधशे, जन्म तेहना अल्प. १०५. षट्पदनां षट्प्रश्न ते, पूछयां करी विचार ; ते पदनी सर्वांगता, मोक्षमार्ग निर्धार. १०६ जाति, वेषनो भेद नहि; कह्यो मार्ग जो होय; साधे ते मुक्ति लहे, अमां भेद न कोय १०७ कषायनी उपशांतता, मात्र मोक्ष अभिलाष ; भवे खेद, अंतर दया, ते कहिये जिज्ञास. १०८ ते जिज्ञासु जीवने. थाय सद्गुरू बोध : तो पामे समकितने, वर्ते अंतर शोध ; मत दर्शन आग्रह तजी, वर्ते सद्गुरू लक्ष ; लहे शुद्ध समकित ते, जेमां भेद न पक्ष. ११० वर्ते निज स्वभावनो, अनुभव लक्ष प्रतीत ; वृत्ति वहे निजभावमां, परमार्थे समकित. १११ वर्धमान समकित थई, टाळे मिथ्याभास; उदय थाय चरित्रनो, वीतराग पद वास. ११२ केवळ निजस्वभावनु, अखंड वर्ते ज्ञान; कहिये केवळ ज्ञान ते, देह छतां निर्वाण. ११३ १०९ 34 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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