Book Title: Bhakti Kartavya
Author(s): Pratapkumar J Toliiya
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram
View full book text
________________
कोटि वर्षनु स्वप्न पण, जाग्रत थतां समाय; तेम विभाव अनादिनो, ज्ञान थतां दूर थाय. ११४ छूटे देहाध्यास तो, नहि कर्त्ता तु कम नहि भोक्ता तु तेहनो, अ ज धर्म नो मर्म. ११५ अज धर्म थी मोक्ष छे, तुछो मोक्षस्वरूप; अनंत दर्शन ज्ञान तु, अव्याबाध स्वरूप. ११६ शुद्ध बुद्ध चैतन्यधन, स्वयंज्योति सुखधाम; बीजु कहिये केटलु, कर विचार तो पाम.
११७ निश्चय सर्वे ज्ञानीनो, आवी अत्र शमाय; धरि मौनता अम कहि, सहजसमाधिमांय. ११८
शिष्य बोध बीज प्राप्ति
सद्गुरूना उददेशथी, आव्यु अपूर्व भान; निजपद निजमांही लां, दूर थयु अज्ञान. ११९ भास्युनिजस्वरूप ते, शुद्ध चेतना रूप; अजर अमर अविनाशी ने, देहातीत स्वरूप. १२० कर्ता भोक्ता कर्म नो, विभाव वर्ते ज्यांय; वृत्ति वही निजभावमां, थयो अकर्ती त्यांय. १२१ अथवा निज परिणाम जे, शुद्ध चेतनारूप; कर्ता भोक्ता तेहनों, निर्विकल्प स्वरुप. १२२
35
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128