Book Title: Bhakti Kartavya
Author(s): Pratapkumar J Toliiya
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

View full book text
Previous | Next

Page 53
________________ २ वर्तमान आ कालमां, मोक्षमार्ग बहु लोप; विचारवा आत्मार्थीने, भाख्यो अत्र अगोप्य. कोई क्रिया-जड थई रह्या, शूष्क ज्ञानमां कोई; माने मारग मोक्षनो, करूणा उपजे जोई. .. बाह्य क्रियामां राचतां, अंतर्भेद न कांई.; ज्ञानमार्ग निषेधतां, तेह क्रियाजड आंही. बंध मोक्ष छे कल्पना, भाखे वाणी मांही; वर्ते मोहावेशमां, शूष्क ज्ञानी ते आंही. वैराग्यादि सफल तो, जो सह आत्मज्ञान.; तेमज आत्मज्ञाननी, प्राप्तितणां निदान. त्याग-विराग न चित्तमां, थाय न तेने ज्ञान ; अटके त्याग विरागमां, तो भूले निज भान. ज्यां ज्यां जे जे योग्य छ, तहां समझq तेह ; त्यां त्यां ते ते आचरे, आत्मार्थी जन अह. सेवे सद्गुरूचरणने, त्यागी दई निजपक्ष ; पामे ते परमार्थने, निजपदनो ले लक्ष. आत्मज्ञान समर्शिता, विचरे उदय प्रयोग; अपूर्व वाणी परमश्रुत, सद्गुरू लक्षण योग्य. प्रत्यक्षसद्गुरू सम नहीं, परोक्ष जिन उपकार ; अवो लक्ष थया विना, उगे न आत्मविचार ११. 22 Jain Education Interrational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128