Book Title: Bhakti Kartavya
Author(s): Pratapkumar J Toliiya
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 25
________________ (xvii) चलने का प्रयत्न करेंगे तो आप निश्चय ही उस सही दिशा में प्रस्थान कर सकेंगे, जहाँ से हमें पूर्ण शांति, आत्म शांति रूपी गंतव्य को पहुंचना है। परमकृपालु ज्ञानावतार युगपुरुष श्रीमद् राजचन्द्रजी ने कहा है कि इस काल में ज्ञानियों का होना दुर्लभ हैं। अगर वे हों भी तो उनको पहचानना बहुत कठिन हैं। और यदि पहचान भी लें तो ऐसे ज्ञानी इस क्षेत्र में अधिक रह नहीं पाते हैं। कृपालु देव की यह आर्षवाणी बिलकुल सत्य है । स्वयं परमकृपालु देव श्रीमद् राजचन्द्रजी एवं पूज्य श्री. सहजानंदघनजी महाराज इस काल में अवतरित हुए, किन्तु उनकी उपस्थिति में कुछ ही लोग उनके संपर्क में आये और उनको सही रूप में पहचान पाये। आज तो उनकी अमृत-वाणी जो भी पत्रों, ग्रथों द्वारा लिखित है या टेइपरिकार्डिंगों द्वारा ध्वनि-मुद्रित है उसी से हमें संतोष मानना पड़ता हैं - समाधान ढूढ़ना पड़ता है । इस काल में ज्ञानियों की उपस्थिति होते हुए भी हम लोग उन महापुरुषों के सम्पर्क में आ नहीं पाये, यह बड़ी खेद और पश्चात्ताप की बात है। हमारे अल्प पुण्य का ही यह प्रभाव है। पूज्य योगीराज श्री. सहजानंदघनजी की वाणी कोई भी अध्यात्म प्रेमी जिज्ञासु यदि सरलता एवं निखालस भाव से पढ़े और मनन करे तो उनको यह समझ में आये बिना नहीं रहेगा कि ऐसे महापुरुषों ने जो रास्ता बतलाया है वही अध्यात्म का सच्चा रास्ता है । परम पूज्य योगीराज श्री. सहजानन्दघनजी महाराज संवत् १९७० में अर्थात् आज से प्रायः ७० वर्ष पूर्व गुजरात के कच्छ प्रदेश के "ड्डमरा" नामक गाँव में जन्मे । आपने एक अद्भुत अंतर अनुभव के बाद २१ वर्ष की युवावस्था में दीक्षा ली। दीक्षागुरु ने आपका नाम श्री. भद्रमुनि रक्खा था। १२ वर्ष तक गुरुकुलवास में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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