Book Title: Bhakti Kartavya
Author(s): Pratapkumar J Toliiya
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 32
________________ सद्गुरू - महिमा अहो सत्पुरुष के वचनों ! अहो मुद्रा अहो सत्संग !! जगावें सुप्त चेतन को, स्खलित वृत्तियाँ करें उत्तुंग ॥ १ ॥ जो दर्शन मात्र से निर्दोष अपूर्व स्वभाव प्रेरक हैं; स्वरूप-प्रतीति संयम-अप्रमत्त, समाधि पुष्ट करें ||२|| चढ़ाकर क्षपक श्रेणि पर, धरावें ध्यान शुक्ल अनन्य ; पूर्ण वीतराग निर्विकल्प, आप स्वभाव दायक धन्य ॥ ३ ॥ अयोगी भाव से प्रान्ते, स्व-अव्याबाध - सिद्ध अनन्तस्थिति दाता अहो गुरूराज ! वर्तो कालतय जयवन्त॥४॥ . अहो गुरूराज की करूणा ! अनन्त संसार जड़ जारे; जो सहजानन्द-पद देकर, अनादिय रंकता टारे ।। ५ ।। Jain Education International - श्री सहजानन्दघन 1 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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