Book Title: Bhagwati Sutram
Author(s): N V Vaidya
Publisher: Godiji Jain Temple and Charities

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Page 45
________________ पन्नरसमं सयं 39 " विमलवाहणे विमलवाहणे' त्ति । तए णं तस्स देवसेणस्स रन्नो तच्चे विनामधेज्जे ' विमलवाहणे' त्ति ॥ ४३. तर णं से विमलवाहणे राया अन्नया कयाइ समणेहिं निम्गंथेहिं मिच्छं विप्पडिवज्जिहिइ, अव्येगइए आउसेहिइ, अप्पेगइए अवहसिहिइ अप्पेगइए निच्छोडेाहेइ, अप्पेगइए निब्भत्थे (च्छे ) हिइ, 5 अप्पेगइए बंधेहिइ, अप्पेगइए निरुंभेहि अप्पेगइयाणं छविच्छेदं करेहिइ, अप्पेगइए पमारेहिइ अप्पेगइयाणं उद्दवेहिइ, अप्पेग इयागं वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं आछिंदिहिइ विच्छिदिहिइ भिदिहि अवहरिहिइ, अप्पेगइयाणं भत्तपाणं वोच्छिदिहिइ, अप्पेगइए निन्नगरे करेहिइ, अप्पेगइए निव्विसए करेहिइ । तए णं सयदुवारे नगरे बहवे 10 राईसर जाव वइहिंति - एवं खलु देवाणुप्पिया, विमलवाहणे राया समगेहिं निग्गंथेहिं मिच्छं विष्पडिवन्ने अप्पेगइए आउस्सइ जाव निव्विसए करेइ । तं नो खलु देवाणुप्पिया, एयं अम्हं सेयं, नो खलु एयं विमलवाहणस्स रन्नो सेयं, नो खलु एयं रज्जस्स वा रटुल्स वा बलस्स वा वाहणस्स वा पुरस्स वा अंते उरस्स वा जणवयस्स वा सेयं, 15 जं णं विमलवाहणे राया समणेहिं निग्गंथेहिं मिच्छं विप्पाडवन्ने, तं सेयं खलु देवाणुनिया, अम्हं विमलवाहणं रायं एयमङ्कं विन्नवित्तए ' त्ति कट्टु अन्नमन्नस्स अंतियं एयमहं पडिसुर्णेति, २ जेणेव विमलवाहणे राया तेणेव उवागच्छंांति, २ करयलपरिग्गहियं विमलवाहणं रायं जरणं विजएणं वद्धावेंति, २ एवं वहिंति - ' एवं खलु देवाणु - 20 प्पिया समणेहिं निग्गंयेहिं मिच्छं विप्पडिवन्ना, अप्पेगइए आउस्संति जाव अप्पेगइए निव्विसए करेंति । तं नो खलु एयं देवाणुप्पियाणं सेयं, नो खलु एयं अम्हं सेयं, नो खलु एयं रज्जस्स वा जाव जण वयस्स वा सेयं जं णं देवाणुप्पिया, समणेहिं निग्गंथेहिं मिच्छं विप्पडिवन्ना। तं विरमंतुणं देवाणुपिया एयस्स अट्ठस्स अकर गयाँए ॥ 25

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