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SHRI VIJAYADEVSUR SANGH
SERIES : No. 9
श्रीमद्भगवती सूत्रम् (पञ्चदशं गोशालकाख्यं शतकम् )
श्रीमदभयदेवमूरिवर्यविहितविवरणयुतम् ।।
EDITED BY
Prof. N. V. VAIDYA, M. A. Fergusson College, Poona 4.
Published by : The Managing Trustees of The Godiji Jain Temple and Charities,
Pydhonie, Bombay 3.
1954
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Published by : Shri Mangaldas L. Ghadiali
For The Managing Trustees of Shri VIJAYADEVSUR SANGH GNAN SAMITI The Godiji Jain Temple and Charities,
Pydhoni, Bombay 3.
The Trustees of (Shri Vijayadevsur Sangh )
The Godiji Jain Temple & Charities
(1) Sheth Gokuldas Lallubhai. (2) Sheth Panachand Rupchand. (3) Sheth Laxmichand Durlabhji. (4) Sheth Bhaichandbhai Naginbhai Jhaveri.
(5.). Sheth Keshavlal Bulak hidas. ***6) Sheth Mohanlal Maganlal.
(7) Sheth Mohanlal Tarachand, J. P. (8) Sheth Laxmichand Raichand Sarvaiya. (9) Sheth Ratanchand Choonilal Dalia. (10) Sheth Mulchand Vadilal. (11) Sheth Fulchand Naginbhai Jhaveri. (12) Sheth Ranchhoddas Chhotalal.
Printed by: K. G. SHARANGPANI
Aryabhushan Press, 915/1 Shivajinagar, Poona 4.
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SHRI VIJAYADEVSUR SANGH
SERIES :
श्रीमद्भग व ती सूत्रम्
(पञ्चदशं गोशालकाख्यं शतकम् )
श्रीमदभयदेवमूरिवर्यविहितविवरणयुतम् ॥
EDITED BY Prof. N. V. VAIDYN, 18, A Fergusson College, Podhale
Published by : The Managing Trustees of The Godiji Jain Temple and Charities, • Pydhonie, Bombay 3,
Rs 2-8-8
1954
Page #4
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Page #5
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Prefacea The University of Bombay has prescribed the Fifteenth Sataka from the Bhagatati Sūtra ( Gosāla Mata-) for the M. A. examination f&t the years 1954 and 1955. It was edited by Dr. P. L. Vaidya as an Appendix to his edition of Uvāsagadasão. But that edition is now out of print and the students, therefore, are finding it difficult to procure the copies of the text. Many students wrote to me requesting me to undertake the publication but I was hesitating—for obvious reasons. I then requested my friend Shri Popatlal Shah, M.L, A., to do something in the matter, and I am glad to state that he immediately promised to defray the entire publication costs and asked me to proceed with the work immediately. It was a very generous gesture on his part and I am indeed very grateful to him for the same.
In the meantime, I had also written to the Trustees of the Shri Godīji Maharaj Jain Temple and charities regarding the difficulty experienced by the students, and the Trustees, though none of them knew me personally, very kindly and generously agreed to publish the text, as well as the commentary, on behalf of their series, viz. The Vijayadevsur Sangh Series. I am indeed grateful to the enlightened Trustees of the above-mentioned charities for their very generous & spontaneous response to my request. I have no doubt that the students of the M, A. class would also be equally grateful to the Trustees for this Dnyāna-Dāna.
I am indebted to my student-friend Shri P. N. Mulay, B. A., B. T., for preparing the Press-copy of the commentary.
18-12-54 Fergusson College,
Poona 4.
N. V. VAIDYA
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श्री गोडी पार्श्वनाथाय नमः ।
PUBLISHERS'
NOTE
We, the members of Shree Vijayadevsur Sangh Gnan Samiti are glad to publish this " GOŚĀLA-MATA", the Fifteenth chapter of Shree Bhagavati Sūtra- as the 9th Volume of Vijayadevsur Sangh Series. We are very much grateful to Professor N. V. Vaidya, M. A, for advising us to take up the publication work and for his taking so much interest to give facilities to the student world. All honour goes to Shri N. V. Vaidya for editing this work and giving his valuable time without any expectations.
We will feel ourselves doubly rewarded if more and more students come forward to take up the study of Ardha-Magadhi Language.
Members Of
Vijayadevsur Sangh Gnan Samiti. (1) Sheth Keshavlal Bulakhidas.
(2) Sheth Ratanchand Chunilal Dalia.
(3) Sheth Panachand Rupchand.
(4) Sheth Laxmichand Raichand Saravaiya. (5) Sheth Fattehchand Zaverbhai.
(6) Narottamdas Bhagvandas Shah. (7) Mohanlal Dipchand Choksi. (8) Chhotalal Girdharbhai. (9) Mangaldas Lallubhai Ghadiali.
OUR PUBLICATIONS
(१) श्री सूचकताङ्गसूत्रम् भाग १
भाग २
29
""
(2) (३) श्री पंच प्रतिक्रमणसूत्र सार्थ (गुजराती) विवेचनसहित पृष्ठ ६४०
(४) नामांकित नागरिक, शेठ मोतीशाह (गुजराती)
(5)
JAINISM IN GUJARAT
(1100 A. D. to 1600 A. D.)
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२-८-०
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॥ श्रीमद्भगवतीसूत्रम् ॥ पन्नरसमं सयं ॥ (सूत्राणि ५३९-५६०)
नमो सुयदेवयाए भगवईए॥ १. तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नाम नयरी होत्था। वण्णओ। तीसे णं सावत्थीए नयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए 5 तत्थ णं को?ए नामं चेइए होत्था वण्णओ। तत्थ णं सावत्थीए नयरीए हालाहला नामं कुंभकारी आजीविओवासिया परिवसइ अड्डा जाव अपरिभूया, आजीवियसमयंसि लट्ठा गहियट्टा पुच्छियट्ठा विणिच्छियट्ठा अट्टिमिंजपेम्माणुरागरत्ता, अयमाउसो आजीवियसमए अटे, अयं परम?, सेसे अणट्टे त्ति आजीवियसमएणं अप्पाणं 10 भावेमाणी विहरह॥
२. तेणं कालेणं तेणं समएणं गोसाले मंखलिपुत्ते चउव्वीसवासपरियाए हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकरावणंसि आजीवियसंघसंपरिखुडे आजीवियसमएणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । तए णं तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अन्नया कयाइ इमे छ दिसायरा अंतियं 15, पाउन्भवित्था। तं जहा-१ साणे, २ कलंदे, ३ कण्णियारे, ४ अच्छिद्दे, ५ अग्गिवेसायणे, ६ अज्जुणे गोमायुपुत्ते। तए एणं ते छ दिसायरा अट्ठविहं पुव्वगयं मग्गदसमं सएहिं २ मइदंसोहं निज्जूहति, २त्ता गोसालं मंखलिपुत्तं उवट्ठाइंसु । तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते तेणं अटुंगस्स महानिमित्तस्स केणइ उल्लोयमेत्तेणं सव्वेसिं पाणाणं सव्वेसिं 20 भूयाणं सव्वेसिं जीवाणं सव्वेसिं सत्ताणं इमाई छ अणइक्कमणिज्जाई वागरणाई वागरेइ। तं जहा-१ लाभं .२ अलाभं ३ सुहं ४ दुक्खं
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम्
५ जीवियं ६ मरणं तहा। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते तेणं अटुंगस्स महानिमित्तस्स केणइ उल्लोयमेत्तेणं सावत्थीए नयरीए अजिणे जिणप्पलावी, अणरहा अरहप्पलावी, अकेवली केवलिप्पलावी, असवन्नू सव्वन्नुप्पलावी, अजिणे जिणसदं पगासेमाणे विहरइ ॥
(सू० ५३९) ३. तए णं सावत्थीए नयरीए सिंघाडग जाव पहेसु बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ, जाव एवं परूवेइ-"एवं खलु देवाणुप्पिया, गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिणप्पलावी जाव पगासेमाणे विहरइ, से
कहमेयं मन्ने एवं ? । तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे, जाव 10 परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ
महावीरस्स जेटे अन्तेवासी इंदभूइ नामं अणगारे गोयमगोत्तेणं जाव छटुंछट्टेणं एवं जहा बिझ्यसए नियंठद्देसए जाव अडमाणे बहुजणसई निसामेइ, बहुजणो अन्नमनस्स एवमाइक्खइ ४- ‘एवं खलु
देवाणुप्पिया, गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिणप्पलावी जाव पगासेमाणे 15 विहरइ, से कहमेयं मन्ने एवं ?'।
४. तए णं भगवं गोयमे बहुजणस्स अंतियं एयमटुं सोचा निसम्म जाव जायसड्ढे जाव भत्तपाणं पडिदंसेइ, जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी- “एवं खलु अहं भंते, छटुं तं चेव जाव जिणसई पगासेमाणे विहरइ, से कहमेयं भंते, एवं ?" तं इच्छामि णं भंते, गोसालस्स 20 मंखलिपुत्तस्स उट्ठाणपरियाणियं परिकहियं । 'गोयमा' इ समणे भगवं
महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी-'जं गं गोयमा, से बहुजणे अन्नमनस्स एवमाइक्खइ ४--' एवं खलु गोताले मंखलिपुत्ते जिणे जिणप्पलावी जाव पगासेमाणे विहरइ ' तं णं मिच्छा। अहं पुण गोयमा, एवमाइक्खामि जाव परवमि-' एवं खलु एयस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स मंखलिनामं मंखे पिया होत्था। तस्स णं मंखलिस्स मंखस्स भद्दा नामं भारिया होत्था, सुकुमाल जाव पडिरूवा। तए
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पन्नरसमं सयं
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णं सा भद्दा भारिया अन्नया कयाइ गुब्विणी यावि होत्था । तेणं कालेणं तेणं समपणं सरवणे नामं संनिवेसे होत्था, रिद्धत्थिमिय जाव सन्निभप्पगा से पासादीए ४ | तत्थ णं सरवणे संनिवेसे गोबहुले नामं माहणे परिवसर, अड्ढे जाव अपरिभूए, रिउव्वेय नाव सुपरिनट्ठिए यावि होत्था । तस्स णं गोबहुलस्स माहणस्स गोसाला 5 यावि होत्था । तए णं से मंखली मंखे अन्नया कयाइ भद्दाए भारियाए गुब्विणीए सद्धि चित्तफलगहत्थगए मंखत्तणेणं अप्पाणं भावेमाणे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे जेणेव सरवणे संनिवेसे जेणेव गोबहुलस्स माहणस्स गोसाला तेणेव उवागच्छइ २ गोबहुलस्स माहणस्स गोसालाए एगदेसंसि भंडनिक्खेवं करेइ, २ सरवणे 10 संनिवेसे उच्चनीयमज्झिमाई कुलाई घरसमुद्दाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे वसहीए सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेइ, मग्गणगवेसणं करेमाणे तस्सेव गोबहुलस्स माहणस्स गोसालाए एगदेसंसि वासावासं उवागए ॥
५. तए णं सा भद्दा भारिया नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं 15 अट्टमाणं राईदियाणं वीइक्कंताणं सुकुमाल' जाव पडिरूवगं दारगं पयाया । तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो एक्कारसमे दिवसे वीइक्कंते जाव बारसाहे दिवसे अयमेयारूवं गोणं गुणनिष्पन्नं नामधेज्जं करेंति - जम्हा णं अम्हं इमे दारए गोबहुलस्स माहणस्स गोसालाए जाए, तं होउ णं अम्हं इमस्स दारगस्स नामधेज्जं 20 'गोसाले ' 'गोसाले ' त्ति । तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नामधेज्जं करेंति 'गोसाले' त्ति । तर णं से गोसाले दारए उम्मुकबालभावे विण्णायपरिणयमेते जोव्वणगमणुव्पत्ते सयमेव पाडिएकं चित्तफलगं करेइ, २ चित्तफलगहत्थगए मंखत्तणेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ ( सू० ५४० )
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम्
६. तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा, तीसं वासाई अगारवासमझे वसित्ता अम्मापिईहिं देवत्तगएहिं एवं जहा भावणाए जाव एगं देवदूसमादाय मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पच्वइत्तए । तए णं अहं गोयमा, पढमं वासं अद्धमासंअद्धमासेणं खममाणे 5 अट्टियगामं निस्साए पढमं अंतरावासं वासावासं उवागए। दोच्चं वासं मासंमासेणं खममाणे पुत्वाणुपुर्दिवं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे जेणेव रायगिहे नयरे, जेणेव नालंदा बहिरिया, जेणेव तंतुवायसाला, तेणेव उवागच्छामि, अहापडिरूवं उग्गहं ओगिण्हामि,
२ तंतुवायसालाए एगदेसंसि वासावासं उवागए। तए णं अहं 10 गोयमा, पढमं मासखमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरामि॥
७. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते चित्तफलगहत्थगए मंखत्तणेणं अप्पाणं भावेमाणे पुत्वाणुपुटिव चरमाणे जाव दूइज्जमाणे जेणेव रायगिहे नगरे, जेणेव नालंदा बाहिरिया,
जेणेव तंतुवायसाला तेणेव उवागच्छइ , २ तंतुवायसालाए 15 एगदेसंसि भंडनिक्खेवं करेइ, २ रायगिहे नयरे उच्चनीय जाव अन्नत्थ
कत्थ वि वसहिं अलभमाणे तीसे य तंतुवायसालाए एगदेसंसि वासावासं उवागए, जत्थेव णं अहं गोयमा। तए णं अहं गोयमा, पढममासक्खमणपारणगंसि तंतुवायसालाओ पडिनिक्खमामि, २ नालंदा
बाहिरियं मझमझेणं जेणेव रायगिहे नयरे तेणेव उवागच्छामि, 20२ रायगिहे नयरे उच्चनीय जाव अडमाणे विजयस्स गाहावइस्स गिहं
अणुपवितु। तए णं से विजए गाहावई ममं एज्जमाणं पासइ, २त्ता हट्टतुट्ठ खिप्पामेव आसणाओ अब्भुट्टेइ, २ पायपीढाओ पच्चोरुहइ, २ पाउयाओ ओमुयइ, २ एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, २ अंजलिमउलियहत्थे ममं सत्तट्ठपयाई अणुगच्छइ, २ ममं तिक्खुत्तो आयोहिणपयाहिणं करेइ, २ ममं वंदइ नमसइ, २ ममं विउलेणं
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पन्नरसमं सयं
असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभेस्सामि त्ति कट्ट तुट्टे, पडिलामेमाणे वि तुट्टे, पडिलाभिए वि तुटे । तए णं तस्स विजयस्स गाहावइस्स तेणं दव्वसुद्धणं दायगसुद्धणं पडिगाहगसुद्धणं तिविहेणं तिकरणसुद्धेणं दाणेणं मए पडिलाभिए समाणे देवाउए निबद्धे, संसारे परित्तीकए, गिहंसि य से इमाई पंच दिव्वाइं पाउन्भूयाई, तं जहा-१ वसुधारा वुट्ठा, 5 २ दसद्ध धण्णे कुसुमे निवाइए, ३ चेलुक्खेवे कए, ४ आहयाओ देवदुंदुभीओ ५ अंतरा वियणं आगासे 'अहो दाणे दाणे' त्ति घुट्टे । तए णं रायगिहे नगरे सिंघाडग जाव पहेसु बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ ४, 'धन्ने णं देवाणुप्पिया, विजए गाहावई, कयत्थे णं देवाणुप्पिया, विजए गाहावई, कयपुण्णे णं देवाणुप्पिया, विजए गाहावई, कय-10 लक्खणे णं देवाणुप्पिया, विजए गाहावई, कया णं लोया देवाणुप्पिया, विजयस्त गाहावइस्स, सुलद्धे णं देवाणुप्पिया, माणुस्सए जम्मजीवियफले विजयस्स गाहावइस्स, जस्स णं गिहंसि तहारूवे साहु साहुरूवे पडिलाभिए समाणे इमाई पंच दिवाई पाउन्भूयाई, तं जहा१ वसुधारा वुट्ठा, जाव 'अहो दाणे दाणे' त्ति घुटे । तं धने कयत्थे 15 कयपुण्णे कयलक्खणे, कया णं लोया, सुलद्धे माणुस्सए जम्मजीवियफले विजयस्स गाहावइस्स ॥
८. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते बहुजणस्स अंतिए एयमटुं सोचा निसम्म समुप्पन्नसंसए समुप्पन्नकोउहले जेणेव विजयस्स गाहावइस्त गिहे तेणेव उवागच्छइ, २ त्ता पासइ विजयस्स 20 गाहावइस्स गिहंसि वसुहारं वुटुं, दसद्धवण्णं कुसुमं निवडियं, ममं च णं विजयस्स गाहावइस्स गिहाओ पडिनिकखममाणं पासइ, २ त्ता हट्टतुट्टे जेणेव ममं अंतिए तेणेव उवागच्छइ, २त्ता ममं तिखुतो आयाहिणपयाहिणं करेइ, २ त्ता ममं वंदइ नमसइ, २त्ता ममं एवं वयासी-'तुज्झे णं भंते, ममं धम्मायरिया, अहं गं 25
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम् तुज्झं धम्मंतेवासी' ! तए णं अहं गोयमा, गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स एयमद्वं नो आढामि, नो परिजाणामि, तुसिणीए संचिट्ठामि । तए णं अहं गोयमा, रायगिहाओ नयराओ पडिनिवखमामि, २ त्ता नालंद बाहिरियं मझमज्झेणं जेणेव तंतुवायसाला, तेणेव उवागच्छामि 5२ त्ता दोच्चं मासवखमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरामि। तए
णं अहं गोयमा, दोच्चं मासवरखमणपारणगंसि तंतुवायसालाओ पडिनिवखाममि, २ नालंद बाहिरियं मज्झंमज्झेणं जेणेव रायगिहे नयरे जाव अडमाणे आणन्दस्स गिहं अणुप्पविटे । तए णं से आणंदे
गाहावई ममं एज्जमाणं पासइ, एवं जहेव विजयस्स नवरं ममं विउलाए 10 खज्जगविहीए पडिलाभेस्सामि त्ति तुटे, सेसं तं चेव जाव तच्चं
मासक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरामि । तए णं अहं गोयमा, तञ्चं मासक्खमणपारणगंसि तंतुवायसालाओ पडिनिक्खमामि, २ तहेव जाव अडमाणे सुणंदस्स गाहावइस्स गिहं अणुपविट्टे । तए णं से
सुणंदगाहावई, एवं जहेव विजयगाहवई नवरं ममं सव्वकामगुणिएणं 15 भोयणेणं पडिलाभेइ, सेसं तं चेव जाव चउत्थं मासक्खमणं
उवसंपज्जित्ताणं विहरामि। तीसे णं नालंदाए बाहिरियाए अदूरसामंते एत्थ णं कोल्लाए नामं संनिवेसे होत्था वण्णओ। तत्थ णं कोलाए संनिवेसे बहुले नामं माहणे परिवसह, अड्ढे जाव अपरिभूए, रिउम्य
जाव सुपरिनिट्टिए यावि होत्था। तए णं से बहुले माहणे 20 कत्तियचाउम्मासियपाडिवगंसि विउलेणं महुघयसंजुत्तेणं परमन्नणं
माहणे आयामेत्था। तए णं अहं गोयमा, चउत्थमासक्खमणपारणगंसि तंतुवायसालाओ पडिनिक्खमामि, २ नालंदं बाहिरियं मज्झमझेणं निग्गच्छामि, २ जेणेव कोलाए संनिवेसे तेणेव उवागच्छामि, कोल्लाए
संनिवेसे उच्चनीय जाव अडमाणे बहुलस्स माहणस्स गिहं 25 अणुप्पविटे । तए णं से बहुले माहणे ममं एजमाणं, तहेव जाव,
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पन्नरसमं सयं
ममं विउलेणं महुघयसंजुत्तेणं परमन्नेणं पडिलाभेरसामि त्ति तुट्टे। से जहा विजयस्स ॥
९. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं तंतुवायसालाए अपासमाणे रायगिहे नयरे सम्भितरबाहिरियाए ममं सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेइ, ममं कत्थ वि सुई वा खुइं वा पवत्तिं वा अलभमाणे जणेव 5 तंतुवायसाला तेणेव उवागच्छइ, २ साडियाओ य पाडियाओ य कुंडियाओ य वाहणाओ य चित्तफलगं च माहणे आयामेइ, २ सउत्तरोटें मुंडं कारेइ, २ तंतुवायसालाओ पडिनिक्खमइ, २ नालंदं बाहिरियं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, २ जेणेव कोल्लागसंनिवेसे तेणेव उवागच्छइ। तए णं तस्स कोल्लागस्स संनिवेसस्स बहिया बहुजणो 10 अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ ४-'धन्ने णं देवाणुप्पिया, बहुले माहणे तं चेव जाव, जीवियफले बहुलस्स माहणस्स। तए णं तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स बहुजणस्स अंतियं एयमटुं सोच्चा निसम्म अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था- 'जारिसिया णं ममं धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स इड्डी जुत्ती जसे बले 15 वीरिए पुरिसक्कारपरक्कमे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागए, नो खलु आत्थि तारिसिया णं अन्नस्स कस्सइ तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा इड्डी जुत्ती जाव परक्कमे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागए; तं निस्संदिद्धं च णं एत्थ ममं धम्मायरिए धम्मोवदेसए समणे भगवं महावीरे भविस्सइ त्ति कट्ठ कोल्लागसंनिवेसे सभितरबाहिरिए ममं सव्वओ समंता 20 मग्गणगवेसणं करेइ, ममं सव्वओ जाव करेमाणे कोल्लागसंनिवसस्स बहिया पणियभूमीए मए सद्धिं अभिसमन्नागए। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते हट्टतुट्टे ममं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं जाव नमंसित्ता एवं वयासी-'तुब्भे गं भंते, मम धम्मायरिया, अहं णं तुझं अंतेवासी। तए णं अहं गोयमा, गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स एयमटुं पडिसुणमि ।
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम् तए णं अहं गोयमा, गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं सद्धिं पणियभूमीए छन्वासाइं लाभं अलाभं सुखं दुक्खं सक्कारमसक्कारं पच्चणुभवमाणे अणिच्चजागरियं विहरित्था ॥ (सू० ५४१)
१०. तए णं अहं गोयमा, अन्नया कयाइ पढमसरयकालसमयांस 5 अप्पबुट्टिकायसि गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं सद्धिं सिद्धत्थगामाओ नयराओ कुम्मगामं नयरं संपट्टिए विहाराए । तस्स णं सिद्धत्थगामस्स नयरस्स कुम्मगामस्स नयरस्स य अंतरा एत्थ णं महं एगे तिलथंभए पत्तिए पुप्फिए हरियगरोरेज्जमाणे सिरीए अईवरउवसोभेमाणे २चिटइ।
तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते तं तिलथंभगं पासइ, २ त्ता ममं वंदइ 10 नमसइ, २त्ता नमंसित्ता एवं वयासी-'एस णं भंते, तिलथंभए कि निप्फज्जिस्सइ नो निप्फज्जिस्सइ ? एए य सत्त तिलपुप्फजीवा उदाइत्ता २ कहिं गच्छिहिंति, कहिं उववाजिहिंति ?' तए णं अहं गोयमा, गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासी-'गोसाला, एस णं तिलथंभए निप्फन्जिस्सइ, नो न निप्फजिस्सइ, एए य सत्त तिलपुप्फजीवा 15 उदाइत्ता २ एयस्स चेव तिलथंभगस्स एगाए तिलसंगलियाए सत्त तिला पञ्चायाइस्संति ।। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एवं आइक्खमाणस्स एयमढें नो सद्दहइ, नो पत्तियइ, नो रोएइ, एयमटुं असदहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे ममं पणिहाए 'अयं णं मिच्छावादी भवउ ' त्ति कट्ट ममं अंतियाओ सणियं २ पच्चोसक्का, 20२ त्ता जेणेव से तिलथंभए तेणेव उवागच्छइ, २ तं तिलथंभगं
सलेट्ठयायं चेव उप्पाडेइ, २ त्ता एगंते एडेइ। तक्षणमेत्तं च णं गोयमा, दिव्वे अब्भवद्दलए पाउन्भूए । तए णं से दि वे अब्भवद्दलए खिप्पामेव पतणतणाएड्, खिप्पामेव पविज्जुयाइ, खिप्पामेव नच्चोदगं
नाइमट्टियं पविरलपफुसियं रयरेणुविणासणं दिव्वं सलिलोदगं वासं 25 वासइ, जेणं से तिलथंभए आसत्थे पञ्चायाए, तत्थेव बद्धमूले, तत्थेव
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पन्नरसमं सयं पइट्टिए । ते य सत्त तिलपुप्फीवा उदाइत्ता २ तस्सेव तिलथंभगस्स एगाए तिलसंगलियाए सत्त तिला पञ्चायाया ॥ (सू० ५४२)
११. तए णं अहं गोयमा, गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं सद्धिं जेणेव कुम्मगामे नयरे तेणेव उवागच्छामि। तए णं तस्स कुम्मगामस्स नयरस्स बहिया वेसियायणे नामं बालतवस्सी छटुंछट्टेणं आणक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उर्दू बाहाओ पगिज्झिय २ सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे विहरइ। आइञ्चतेयतवियाओ य से छप्पदीओ सन्चओ समंता अभिनिस्सवति, पाणभूयजीवसत्तदयट्टयाए च णं पडियाआ २ तत्थेव भुज्जो २ पच्चोरुभेइ। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते वेसियायणं बालतवस्सि पासइ, २ त्ता ममं अंतियाओ सणियं २10 पच्चोसक्का, २त्ता जेणेव वसियायणे बालतवस्सी तेणेव उवागच्छइ, २ वेसियायणं बालतवस्सि एवं वयासी-'किं भवं मुणी, मुणिए, उदाहु जूयासेज्जायरए ?' तएणं से वेसियायणे बालतवस्सी गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स एयमटुं नो आढाइ, नो परियाणइ, तुसिणीए संचिइ । तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते वेसियायणं बालतवस्सि दोच्चं पि15 तच्चं पि एवं वयासी-'किं भवं मुगी, मुणिए, जाव सेज्जायरए । तए णं से वेसियायणे बालतवस्सी गोसालेणं मखलिपुत्तेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, २ तेयासमुग्घाएणं समोहन्नइ, २ सत्तट्टपयाई पच्चोसक्का, २ गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स वहाए सरीरगंसि तेयं निसिरइ। 20 तए णं अहं गोयमा, गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अणुकंपणट्टयाए वेसियायणस्स बालतवस्सिस्स तेयपडिसाहरणट्टयाए एत्थ णं अंतरा अहं सीयलियं तेयलेस्सं निसिरामि, जाए सा ममं सीयलियाए तेयलेस्साए वेसियायणस्स बालतवस्सिस्स सा उसिणा तेयलेस्सा पडिहया। तए णं से वेसियायणे बालतवस्सी ममं सीयलियाए 25
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम्
तेयलेस्साए सीओसिणं तेयलेस्सं पडिहयं जाणित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सररिगस्स किंांचे आवाहं वा वाबाहं वा छविच्छेयं वा अकरिमाणं पासित्ता सीओसिणं तेयलेस्सं पडिसाहरइ, २ ममं एवं वयासी- ‘से गयमेयं भगवं, से गयमेयं भगवं ।। तए णं गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एवं वयासी-किं णं भंते, एस जूयासेज्जायरए तुन्भे एवं वयासी-से गयमेयं भगवं, से गयमेयं भगवं ?' तए णं अहं गोयमा गोसालं मखलिपुत्तं एवं वयासी- 'तुमं गं गोसाला, वेसियायणं बालतवस्सि पाससि, २त्ता ममं अंतियाओ सणियं
२ पञ्चोसक्कसि, जेणेव वेसियायणे बालतवस्सी तेणेव उवागच्छसि, 10 वसियायणं बालतवस्सि एवं वयासी-'किं भवं मुणी, मुणिए, उदाहु
जूयासेज्जायरए ?' तए णं से वेसियायणे बालतवस्सी तव एयमटुं नो आढाइ, नो परिजाणइ, तुसिणीए संचिट्टइ। तए णं तुमं गोसाला, वेसियायणं बालतवस्सि दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-किं भवं
मुणी, मुणिए, जाव सेज्जायरए ? ' तए णं से वेसियायणे बाल15 तवस्सी तुमं दोच्चं पि तचं पि एवं वुत्ते समाणे आसुरुत्ते जाव पच्चो
सक्का, २ त्ता तव वहाए सरीरगंसि तेयलेस्सं निस्सिरइ । तए णं अहं गोसाला तव अणुकंपणट्टयाए वेसियायणस्स बालतवस्सिस्स सीयतेयलेस्सापडिसाहरणट्टयाए एत्थ णं अंतरा सीयलियं तेयलेस्सं निस्सिरामि, जाव पडिहयं जाणित्ता तव य सरीरगस्स किंचि आवाहं 20वावाबाहं वा छविच्छेयं वा अकीरमाणं पासित्ता सीओसिणं तेयलेस्सं पडिसाहरइ, ममं एवं वयासी-'से गयमेयं भगवं, से गयमेयं भगवं'। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं अंतियाओ एयमढे सोचा निसम्म भीए जाव संजायभए ममं वंदइ नमसइ, २ त्ता एवं वयासी- 'कहं णं भंते, संखित्तविउलतेयलेस्से भवइ १, तए णं अहं गायमा, गोसालं
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पन्नरसमं सयं
मंखलिपुत्तं एवं वयासी - 'जे णं गोसाला, एगाए सणहाए कुम्मासपिंडियाए एगेण य वियडासरणं छटुंछट्टणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्डुं बाहाओ पगिज्झिय २ जाव विहरइ, से णं अंतो छण्हं मासाणं संखित्तविउलतेयलेस्से भवइ ' । तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एयम सम्मं विणएणं पडिसुणेइ ॥ ( सू० ५४३ )
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१२. तए णं अहं गोयमा, अन्नया कयाइ गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं सद्धि कुम्मगामाओ नयराओ सिद्धत्थगामं नयरं संपट्टिए विहाराए, जाहे य मो तं देसं हव्वमागया, जत्थ णं से तिलथंभए । तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एवं वयासी' तुब्भे णं भंते, तया ममं एवं आइक्खह जाव परूवेह - 10 गोसाला, एस णं तिलथंभए निप्फज्जिरसइ, नो न निप्फज्जिरसः, तं चेव जाव पच्चाय।इर संति, ' तं णं मिच्छा । इमं च णं पच्चक्खमेव दीसइ - ' एस णं से तिलथंभए नो निप्फन्ने, अनिष्फन्नमेव ते य सत्त तिलपुप्फजीवा उदाइत्ता २ नो एयस्स चेव तिलथंभगस्स एगाए तिलसंगलियाए सत्त तिला पच्चायाया' । तए णं अहं गोयमा, गोसालं 13 मंखलिपुत्तं एवं वयासी- 'तुमं णं गोसाला, तया ममं एवं आइक्खमाणस्स नाव परूवेमाणस्स एयमटुं नो सद्दहसि, नो पत्तियसि, नो रोएसि, एयमटुं असद्दहमाणे अपत्तियमाणे अरोपमाणे ममं पणिहाए 'अयं णं मिच्छावादी भवउ ' त्ति कट्टु ममं अंतियाओ सणियं २ पच्चोसक्कसि, २ ता जेणेव से तिलथंभए तेणेव उवागच्छसि जाव 20 एगंतमंते एडेसि। तक्खणमेत्तं गोसाला, दिव्वे अब्भवद्दलए पाउब्भूए 1 तए णं से दिव्वे अब्भवद्दलए खिप्पामेव, तं चेव जाव तस्स चेव तिलथंभगस्स एगाए तिलसंगलियाए सत्त तिला पच्चायाया । तं एस णं गोसाला, से तिलथंभए निप्फन्ने, नो अनिप्फन्नमेव । ते य सत्त तिलपुप्फजीवा उदाइन्ता २ एयस्स चेव तिलथंभयस्स एगाए 25
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम् तिलसंगलियाए सत्त तिला पच्चायाया। एवं खलु गोसाला, वणस्सइकाइया पउपरिहारं परिहरंति। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एवमाइक्खमाणस्स जाव परूवेमाणस्स एयमद्वं नो सद्दहइ ३, एयमटुं असद्दहमाणे जाव अरोएमाणे जेणेव से तिलथंभए तेणेव उवागच्छइ, 5 ताओ तिलथंभयाओ तं तिलसंगलियं खुड्डइ, २ त्ता करयलंसि सत तिले पप्फोडेइ । तए णं तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स ते सत्त तिले गणमाणस्स अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था-'एवं खलु सवजीवा वि पउपरिहारं परिहरंति ।। एस णं गोयमा, गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स पउट्टे, एस णं गोयमा, गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स ममं 10अंतियाओ आयाए अवक्कमणे पण्णत्ते॥ (सू० ५४४)
१३. तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते एगाए सणहाए कुम्मासपिंडियाए य एगेण य वियडासएणं छटुंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उर्दू बाहाओ पगिज्झिय २ जाव विहरइ। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते
अंतो छण्हं मासाणं संखित्तविउलतेयलेसे जाए॥ (सू० ५४५) 15 १४. तए णं तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अन्नया कयाइ इमे
छ दिसाचरा अंतियं पाउन्भवित्था। तं जहा १ साणे तं चेव सव्वं जाव अजिणे जिणसई पगासेमाणे विहरइ । तं नो खलु गोयमा, गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे, जिणप्पलावी जाव जिणसई पगासेमाणे विहरइ; गोसाले णं मंखलिपुत्ते अजिणे, जिणप्पलावी जाव पगासे20 माणे विहरइ। तए णं सा महइमहालया महच्चपरिसा जहा सिवे
(भग० ३. ११) जाव पडिगया। तए णं सावत्थीए नयरीए सिंघाडग जाव बहुजणो अन्नमन्नस्स जाव परवेइ-'जं णं देवाणुप्पिया, गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिणप्पलावी नाव विहरइ तं मिच्छा। समणे भगवं महावीरे एवं आइखइ जाव परूवेइ । एवं 25 खलु तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स मंखली नाम मंखे पिया होत्था।
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पन्नरसमं सयं
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तए णं तस्स मंखालस्स, एवं तं चेव सव्वं भणियवं जाव आजिणे जिणसदं पगासेमाणे विहरइ; तं नो खलु गोसाले मखलिपुत्ते जिणे, जिणप्पलावी जाव विहरइ। गोसाले मंखलिपुत्ते आजिणे जिणप्पलावी जाव विहरइ। समणे भगवं महावीरे जिणे जिणप्पलावी जाव जिणसई पगासेमाणे विहरइ ।। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते बहुजणस्स अंतियं एयमढे सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, २ सांवत्थि नयरिं मझमज्झेणं जेणेव हालाहलाए कुंभकारएि कुंभकारावणे तेणेव उवागच्छइ २ हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि आजीवियसंघसंपरिखुडे महया अमारिसं वहमाणे एवं यावि विहरइ ॥ (सू०५४६) 10
१५. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी आणंदे नाम थेरे पगइभद्दए जाव विणीए छटुंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ । तए णं से आणंदे थेरे छ?क्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए, एवं जहा गोयमसामी तहेव आपुच्छइ, तहेव जाव उच्चनीयमाज्झिम जाव 15 अडमाणे हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स अदूरसामंत वीइवयइ । तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते आणंदं थेरं हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स अदूरसामंतेण वीइवयमाणं पासइ, २त्ता एवं क्यासी-'एहि ताव आणंदा, इओ एगं महं उवमियं निसामहि ।। तए णं से आणंदे थेरे गोसालेणं मखलिपुत्तेणं एवं वुत्ते समाणे जेणेव 20 हालाहलाए कुंभकारीएकुंभकारावणे, जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते तेणेव ज्वागच्छइ । तए णं से गोसाले मखलिपुत्ते आणंदं थेरं एवं वयासी"एवं खलु आणंदा इओ चिराईयाए अद्धाए केइ उच्चावया वणिया अत्थत्थी अत्थगवेसी अत्थकंखिया अत्थापिवासा अस्थगवेसणयाए नाणाविहविउलपणियभंडमायाए सगडीसागडेणं सुबहुँ भत्तपाणं 25
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम् पत्थयणं गहाय एगं महं अगामियं अणोहियं छिन्नावायं दीहमद्धं अडविं अणुप्पविट्ठा । तए णं तेसिं वणियाणं तीसे अगामियाए जाव दहमद्धाए अडवीए किंचि देसं अणुप्पत्ताणं समाणाणं से पुब्वगहिए उदए अणुपुव्वेणं परिभुंजेमाणे परिभुजेमाणे खीणे। तए णं ते वणिया 5 खीणोदगा समाणा तण्हाए परिन्भवमाणा अन्नमन्ने सद्दावति, २ एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया, अम्हं इमीसे अगामियाए जाव अडवीए किंचि देसं अणुप्पत्ताणं समाणाणं से पुव्वगाहिए उदए परिभुंजेमाणे खीणे, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया, अम्हं इमीसे अगामियाए जाव
अडवीए उदगस्स सवओ समंता मग्गणगवेसणं करेत्तए। त्ति कट्ट 10 अन्नमन्नस्स अंतिए एयमटुं पडिसुणत, २ तीसे णं अगामियाए जाव
अडवीए उदगस्स सवओ समंता मग्गगगवेसणं करेंति, उदगस्स सव्वओ समंता मग्गणवेसणं करेमाणा एगं महं वणसंडं आसादेति किण्हं किण्होभासं जाव निकुरंबभूयं पासादीयं जाव पडिरूवं ।
तस्स णं वणसंडस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महेगं वम्मीयं 15 आसादेति। तस्स णं वम्मीयस्स चत्तारि वप्पुओ अब्भुग्गयाओ
आभिनिसहाओ तिरियं सुसंपग्गहियाओ, अहे पन्नगद्धरूवाओ, पन्नगद्धसंठाणसंठियाओ, पासादीयाओ जाव पडिरूवाओ। तए णं ते वाणया हतुट्ट... अन्नमन्नं सदावेंति, २ एवं वयासी-‘एवं खलु
देवाणुप्पिया, अम्हे इमीसे अगामियाए जाव सचओ समंता मंग्गण20 गवसणं करेमाणोहिं इमे वणसंडे आसादिए, किण्हे किण्होभासे । इमस्स णं वणसंडस्स बहुमज्झदेसभाए इमे वम्मीए आसादिए, इमस्स णं वम्मीयस्स चत्तारि वप्पुओ अब्भुग्गयाओ जाव पडिरूवाओ। तं सेयं खलु देवाणुप्पिया, अम्हं इमस्स पढमं वप्पि भिंदित्तए, अवियाई ओरालं उदगरयणं अस्सादेस्सामो। तए णं ते 25 वणिया अन्नमनस्स अंतियं एयमढे पडिसुणेति, २ तस्स वग्मीयस्स
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पन्नरसमं सयं
पढमं वप्पं भिदति । ते णं तत्थ अच्छं पत्थं जच्चं तणुयं फालियवण्णाभं ओरालं उदगरयणं आसादेति । तर णं ते वणिया हट्टतुट्ट.... पाणियं पिबंति, २ वाहणाई पज्जेंति, २ भायणाई भरेंति, भरेत्ता दोच्चं पि अन्नमन्नं एवं वयासी- ' एवं खलु देवाणुप्पिया, अम्हेहिं इमस्स वम्मीयस्स पढमाए वप्पाए भिन्नाए ओराले उद्गरयणे अस्सादिए, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया, अम्हं इमस्स वम्मीयस्स दोच्चं पि वप्पं मिदित्तए, अवियाई एत्थ ओरालं सुवण्णरयणं आसादस्सामो ' । तए णं ते वणिया अन्नमन्नस्स अंतियं एयमठ्ठे पडिसुर्णेति, २ तस्स वम्मीयस्स दोच्चं पि वप्पं भिड़ंति । ते णं तत्थ अच्छं उच्चं तावणिज्जं महत्थं महग्घं महरिहं ओरालं सुवण्णरयणं अस्सादोत्ते । तए णं ते 10 वणिया हट्ठतु भायणाई भरेंति, पवहणाई भरेंति २ ता तच्चं पि अन्नमन्नं एवं वयासी - ' एवं खलु देवाणुप्पिया, अम्हे इमस्स वम्मीयस्स पढमाए वप्पाए भिन्नाए ओराले उदगरयणे आसादिए, दोच्चाए वप्पाए भिन्नाए ओराले सुवण्णरयणे अस्सादिए, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया, अम्हं इमस्स वम्मीयस्स तच्चं पि वप्पं भिंदित्तए । अवि- 15 याई एत्थ ओरलं मणिरयणं अस्सादेस्सामो ' । तए णं ते वणिया अन्नमन्नस्स अंतियं एयमङ्कं पडिसुणेंति, २ तस्स वम्मीयस्स तच्चं पि वप्पं भिदंति । ते णं तत्थ विमलं निम्मलं नित्तलं निक्कलं महत्थं महग्घं महरिहं ओरालं मणिरयणं अस्सादेति । तए णं ते वणिया हस्तुट्ट... भायणाइं भरेंति, २ त्ता चउत्थं पि अन्नमन्नं एवं वयासी - 20 ' एवं खलु देवाणुप्पिया, अम्हे इमस्स पढमाए वप्पाए भिन्नाए ओराले उदगरयणे अस्सादिए, दोच्चाए वप्पाए भिन्नाए ओराले सुवण्णरयणे अस्सादिए, तच्चाए वप्पाए भिन्नाए ओराले मणिरयणे अस्सादिए, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया, अम्हं इमस्स वम्मीयस्स चउत्थं पि वप्पं भिदित्तए, अवियाई उत्तमं महग्घं महरिहं ओरालं वइररयणं 25
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम्
अस्सादेस्सामो।।तए णं तेसिं वणियाणं एगे वणिए हियकामए, सुहकामए, पत्थकामए, आणुकंपिए, निस्सेसिए, हियसुहनिस्सेसकामए ते वणिए एवं वयासी- ‘एवं खलु देवाणुप्पिया, अम्हे इमस्स वम्मीयस्स पढमाए वप्पाए जाव तच्चाए वप्पाए भिन्नाए ओराले 5 मणिरयणे अस्सादिए, तं होउ अलाहि पज्जतं, एसा चउत्थी वप्पा
मा भिज्जउ, चउत्थी णं वप्पा सउवसग्गा यावि होत्था'। तए णं ते वणिया तस्स वणियस्स हियकामगस्स जाव हियसुहनिस्सेसकामगस्स एवमाइक्खमाणस्स जाव परूवेमाणस्स एयमढें नो सद्दहति,
जाव नो रोएंति, एयमढें असद्दहमाणा जाव अरोएमाणा तस्स 10 वम्मीयस्स चउत्थं पि वप्पं भिंदति। ते णं तत्थ उग्गविसं जाव
अणागलियचंडतिव्वरोसं समुहिं तुरियं चवलं धर्मतं दिट्ठीविसं सप्पं संघट्टेति । तए णं से दिट्ठीविसे सप्पे तेहिं वणिएहिं संघट्टिए समाणे आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे सणियं २ उट्टेइ, २त्ता सरसरसरस्स वम्भीयस्स सिहरतलं दुरूहेइ, २ आइच्चं निज्झाइ, २ ते वणिए 15 अणिमिसाए दिट्ठीए सव्वओ समंता समभिलोएइ । तए णं ते वणिया
तेणं दिट्ठीविसेणं सप्पेणं अणिमिसाए दिट्टीए सवओ समंता समभिलोइया समाणा खिप्पामेव सभंडमत्तोवगरणमायाए एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासीकया यावि होत्था। तत्थ णं जे से वणिए तेसिं वणियाणं हियकामए जाव हियसुहनिस्सेसकामए से णं अणुकंपयाए देवयाए 20 सभंडमत्तोवगरणमायाए नियगं नगरं साहिए"। एवामेव आणंदा, तव वि धम्मायरिएणं धम्मोवएसएणं समजेणं नायपुत्तेणं ओराले परियाए आसाइए, ओराला कितिवण्णसदासलोगा, सदेवमणुयासुरे लोए पुव्वंति गुवंति थुवंति इति खलु ‘समगे भगवं महावीरे, इति । तं जइ मे से अज्ज किंचि वि वयइ, तो णं तवेणं तेएणं एगाहचं 8कूडाहञ्चं भासरासिं करेमि, जहा वा वालेणं ते वणिया। तुमं च णं
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पन्नरसमं सयं आणंदा, सारक्खामि संगोवामि, जहा वा से वणिए तेसिं वणियाणं हियकामए जाव निस्सेसकामए अणुकंपयाए देवयाए सभंड... जाव साहिए। तं गच्छ णं तुमं आणंदा, तव धम्मायरियस्स धम्मोवएसगस्स समणस्स नायपुत्तस्स एयमढें परिकहहि ।। तए णं से आणंदे थेरे गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं एवं वुत्ते समाणे भीए जाव संजायभए 5 गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अंतियाओ हालाहलाए कुंभकारीप कुंभकारावणाओ पडिनिक्खमइ, २ सिग्धं तुरियं सावत्थिं नयरिं मझमज्झेणं निगच्छइ, २ त्ता जेणेव कोट्टए चेइए, जेणेव समणं भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, २ समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, २ त्ता वंदइ नमसइ, २त्ता एवं वयासी-10 * एवं खलु अहं भंते, छट्टक्खमणपारणगसि तुन्भेहिं अब्भणुन्नाए समाणे सावत्थीए नयरीए उच्चनीय ... जाव अडमाणे हालाहलाए कुंभकारीए जाव वीइवयामि । तए णं गोसाले मंखलिपुत्ते ममं हालाहलाए जाव पासित्ता एवं वयासी-'एहि ताव आणंदा, इओ एगं महं उवमियं निसामेहि।। तए णं अहं गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं 13 एवं वुत्ते समाणे जेणेव हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणे, जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते तेणेव उवागच्छामि। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एवं वयासी- 'एवं खलु आणंदा, इओ चिराईयाए अद्धाए केइ उच्चावया वणिया, एवं तं चेव सव्वं निरवसेसं भाणियव्वं जाव नियगनयरं साहिए'। तं गच्छ णं तुमं आणंदा, धम्मायरियस्स 20 धम्मोवएसगरस जाव परिकहहि ॥ (सू० ५४७)
१६. तं पभू णं भंते, गोसाले मंखलिपुत्ते तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहचं भासरासिं करेत्तए ? विसए णं भंते, गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स नाव करेत्तए ? समत्थे णं भंते, गोसाले जाव करेत्तए? पभूणं आणंदा, गोसाले मंखलिपुत्ते तवेणं जाव करेत्तए। विसए णं आणंदा, गोसाले
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम्
नाव करेन्तए । समत्थे णं आणंदा, गोसाले नाव करेत्तए, नो चेव णं अरहंते भगवंते परियावणियं पुण करेज्जा । जावइए णं आणंदा, गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स तवतेए, एत्तो अनंतगुणविसिट्ठयराए चेव तवतेए अणगाराणं भगवंताणं, खंतिखमा पुण अणगारा भगवंतो । 5 जावइए णं आणंदा, अणगाराणं भगवंताणं तवतेए, एत्तो अनंतगुणविसिट्ठयराए चेव तवतेए थेराणं भगवंताणं, खंतिखमा पुण थेरा भगवंतो । जावइए णं आणंदा, थेराणं भगवंताणं तवतेए एत्तो अनंतगुणविसिट्टयराए चैव तवतेए अरहंताणं भगवंताणं, खंतिखमा पुण अरहंता भगवंतो । तं पभू णं आणंदा, 10 गोसाले मंखलिपुत्ते तवेणं तेएणं जाव करेत्तए विसए णं आणंदा, जाव करेत्तए, समत्थे णं आणंदा, जाव करेत्तए नो चेव णं अरहंते भगवंते, परियावणियं पुण करेज्जा ॥ ( सू० ५४८ )
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१७. तं गच्छ णं तुमं आणंदा, गोयमाईणं समणाणं निग्गंथाणं एयम परिकहोहि -'मा णं अज्जो, तुब्भं केइ गोसालं मंखलिपुत्तं धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोएउ, धम्मियाए पडिसारणाए पांडसारेउ, धम्मिएणं पडीयारेणं पडोयारेउ; गोसाले णं मंखलिपुत्ते समणेहिं निग्गंथेहिं मिच्छं विप्पडिवन्ने । तए णं से आणंदे थेरे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वृत्ते समाणे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, २ त्ता जेणेव गोयमाइसमणा निग्गंथा तेणेव उवागच्छइ २ गोय माइ समणे निग्गंथे आमंतेइ, २त्ता एवं वयासी-' एवं खलु अज्जो, छट्टुवखमणपारणगांस समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुन्नाए समाणे सावत्थए नयरीए उच्चनीय... तं चैव सव्वं जाव नायपुत्तस्स एयमट्ठ परिकहि; तं मा अज्जो, तुब्भं केइ गोसालं मंखलिपुत्तं धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोएउ ज व मिच्छं विप्पडिवन्ने ॥ ( सू० ५४९ )
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१८. जावं च णं आणंदे थेरे गोयमाईणं समणाणं निग्गंथाणं
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पन्नरसमं सयं
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एयम परिकहेइ तावं च णं से गोसाले मंखलिपुत्ते हालाहलाए कुंभकारी कुंभकारावणाओ पडिनिक्खमइ २ त्ता आजीवियसंघसंपरिवुढे महया अमरिसं वहमाणे सिग्धं तुरियं जाव सावत्थि नयरिं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ २त्ता जेणेव कोट्टए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, २ समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूर सामंते ठिच्चा समणं भगवं महावीरं एवं वयासीसुट्टु णं आउसो कासवा, ममं एवं वयासी, साहु णं आउसो कासवा, ममं एवं वयासी, गोसाले मंखलिपुत्ते ममं धम्मंतेवासी २१ । जे णं से मंखलिपुत्ते तव धम्मंतेवासी से णं सुक्के सुक्काभिजाइए भवित्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोपसु देवत्ताए उववन्ने; अहं णं उदाइनामं 10 कुंडियायणीए, अज्जुणस्स गोयमपुत्तस्स सरीरगं विप्पजहामि २ गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीरंगं अणुष्पविसामि २ इमं सत्तमं पट्टपरिहारं परिहरामि । जे वि यावि आउसो कासवा, अम्हं समयंसि केइ सिज्झति वा सिज्झिस्संति वा सव्वे ते चउरासीं महाकप्पसयसहस्साई, सत्त दिव्वे, सत्त सन्निगभे, सत्त पउट्टपरिहार, 15 पंच कम्नाणि सयसहस्साइं सट्ठि च सहस्साइं छच्च सए तिन्नि य कम्मंसे अणुपुब्वेणं खवइत्ता तओ पच्छा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंसु वा करेंति वा करिस्संति वा । से जहा वा गंगा महानदी जओ पवूढा, जहिं वा पज्जुवत्थिया, एस णं अद्धा पंचजोयणसयाइं आयामेणं, अद्धजोयणं विक्खंभेणं, पंच 20 धणुसयाई उच्हेणं, एएणं गंगापमाणेणं सत्त गंगाओ सा एगा महागंगा, सत्त महागंगाओ सा एगा सादीणगंगा, सत्त सादीणगंगाओ सा एगा मच्चुगंगा, सत्त मच्चुगंगाओ सा एगा लोहियगंगा, सत्त लोहियगंगाओ सा एगा आवतीगंगा, सत्त आवंतीगंगाओ सा एगा परमावती, एवामेव सपुव्वावरेणं एगं गंगासयसहस्सं सत्तर सहस्सा छच्च 25
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श्रीमद्भगवतीसुत्रम् गुणपन्नं गंगासया भवतीतिमक्खाया। तासिं दुविहे उद्धारे पण्णत्ते, तं जहा-सुहुमबदिकलेवरे चेव, बायरबोंदकलेवरे चेव । तत्थ णं जे से सुहुमबोदिकलेवरे से ठप्पे। तत्थ णं जे से बायरबोंदिकलेवरे तओ णं वाससए २ गए २ एगमेगं गंगावालुयं अवहाय जावइएणं 5 कालेणं से कोटेखीणे नीरए निल्लेवे निट्टिए भवइ से तं सरे सरप्पमाणे । एएणं सरप्पमाणेणं तिन्नि सरसयसाहस्सीओ से एगे महाकप्पे । चउरासीइ महाकप्पसयसहस्साइं से एगे महामाणसे। अणंताओ संजूहाओ जीवे चयं चइत्ता उवरिल्ले माणसे संजूहे देवे उववज्जइ १।
से णं तत्थ दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ, २त्ता ताओ देव10 लोगाओ आउक्खएणं ३ अणंतरं चयं चइत्ता पढमे सान्निगन्भे जावे
पच्चायाइ १। से णं तओहिंतो अणंतरं उध्वट्टित्ता मज्झिल्ले माणसे संजूहे देवे उववज्जइ २। से णं तत्थ दिव्वाइं भोगभोगाई जाव विहारत्ता ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं ३ ज व चइत्ता, दोच्चे सन्निगन्भे जावे
पच्चायाइ २। से णं तओहिंतो अणंतरं उव्वट्टित्ता हेहिले माणसे 15 संजूहे देवे उववज्जइ ३। से णं तत्थ दिव्वाइं जाव चइत्ता तच्चे
सनिगन्भे जीवे पच्चायाइ ३। से णं तओहिंतो जाव उव्वाट्टत्ता उवरिल्ले माणुसुत्तरे संजूहे देवे उववाज्जाहइ ४। से णं तत्थ दिव्वाइं भोग ... जाव चइत्ता चउत्थे सन्निगन्भे जीवे पच्चायाइ ४ । से णं तओहिंतो
अणंतरं उव्वट्टित्ता मज्झिल्ले माणुसुत्तरे संजूहे दवे उक्वज्जइ ५। से णं 20 तत्थ दिव्वाइं भोग... जाव चइत्ता पंचमे सन्निगन्भे जीवे पच्चायाइ ५।
से णं तओहिंतो अणंतरं उच्वाट्टत्ता हेट्ठिल्ले माणुसुत्तरे संजूहे देवे उववज्जइ ६। से णं तत्थ दिव्वाइं भोग... जाव चइत्ता छट्टे सन्निगन्भे जीवे पच्चायाइ ६। से णं तओहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता बंभलोगे
नाम से कप्पे पण्णत्ते, पाईणपडीणायए उदीणदाहिणवित्थिपणे जहा 25 ठाणपदे जाव पंच वडिंसगा पण्णत्ता। तं जहा-१ असोगवडिसए,
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2T:
पन्नरसमं सयं जाव पडिरूवा। से णं तत्थ देवे उववज्जइ ७। से णं तत्थ दस सागरोचमाई दिव्वाई भोग... जाव चइत्ता सत्तमे सन्निगन्भे जीवे पच्चायाइ ७ । से णं तत्थ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण नाव वीइक्वंताणं सुकुमालगभद्दलए मिउकुंडलकुंचियकेसए मट्टगंडतलकण्णपीढए देवाकुमारसप्पभए दारए पयायइ। से णं अहं कासवा। तए 5 णं अहं आउसो कासवा, कोमारियपव्वज्जाए कोमारएणं बंभचेरवासेणं अविद्धकण्णए चेव संखाणं पडिलभामि, २ इमे सत्त पउपरिहारे परिहरामि। तं जहा-१ एणेज्जस्स, २ मल्लरामस्स, ३ मंडियस्स, ४ रोहस्स, ५ भारद्दायरस, ६ अज्जुणगस्स गोयमपुत्तस्स, ७ गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स । तत्थ णं जे से पढमे पउपरिहारे से गं 10 रायगिहस्स नयरस्स बहिया मंडिकुच्छिास चेइयंसि उदाइस्स कुंडियायणरस सरीरं विप्पजहामि, २ एणेज्जगस्स सरीरगं अणुप्पविसामि, २ बावीसं वासाइं पढम पउपरिहारं परिहरामि । तत्थ णं जे से दोच्चे पउपरिहारे से णं उदंडपुरस्स नयरस्स बहिया चंदोयरणंसि चेइयंसि एणेज्जगस्स सरीरगं विप्पजहामि, २ मल्लरामस्स सरीरगं 15 अणुप्पविसामि, २ एगवीसं वासाई दोच्चं पउट्टपरिहारं परिहरामि। तत्थ णं जे से तच्चे पउपरिहारे से णं चंपाए नयरीए बहिया अंगमंदिरांमि चेइयसि मल्लरामस्स सरीरगं विप्पजहामि, २ मंडियस्स सरीरगं अणुप्पविसामि, २वीसं वासाई तच्चं पउट्टपरिहारं परिहरामि। तत्थ णं जे से चउत्थे पउट्टपरिहारे से ण वाणारसीए नयरीए बहिया 20, काममहावणंसि चेइयंसि मंडियस्स सरीरगं विप्पजहामि, २ रोहस्स सरीरगं अणुप्पविसामि, २ एगूणवीसं वासाई चउत्थं पउपरिहारं परिहरामि। तत्थ णं जे से पंचमे पउपट्टपरिहारे से णं आलभियाए नयरीए बहिया पत्तकालगयंसि चेइयंसि रोहस्स सरीरगं विप्पजहामि, १ भारद्दायस्स सरीरगं अणुप्पविसामि, २ अट्ठारस वासाई पंचमं 23.
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम् पउट्टपरिहारं परिहरामि । तत्थ णं जे से छट्टे पउट्टपरिहारे से ण खेसालीए नयरीए बहिया कोंडियायणांसे चेइयसि भारद्दायस्स सरीरं विप्पजहामि, २ अज्जुणगस्स गोयमपुत्तस्स सरीरगं अणुप्पविसामि, २ सत्तरस वासाई छटुं पउपरिहारं परिहरामि । तत्थ णं जे से सत्तमे 5 पउट्टपरिहारे से णं इहेव सावत्थीए नयरीए हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि अज्जुणगस्स गोयमपुत्तस्स सरीरगं विप्पजहामि, २ गोसालस्स मंसलिपुत्तस्स सरीरगं 'अलं थिरं धुवं धारणिज्ज सीयसहं उण्हसहं खुहासहं विविहदसमसगपरीसहोवसग्गसहं थिर
संघयणं । ति कट्ठ तं अणुप्पविसामि, २ सोलस वासाई इमं सत्तम 10 पउद्दपारहारं परिहारामि। एवामेव आउसो कासवा, एगेणं तेत्तीसेणं वाससएणं सत्त पट्टपरिहारा परिहरिया भवंतीतिमक्खाया। तं सुटु ण आउसोकासवा, ममं एवं वयासी-साहु णं आउसो कासवा, ममं एवं वयासी- 'गोसाले मंखलिपुत्ते ममं धम्मंतेवासि'त्ति २॥ (सू० ५५०)
१९. तए णं समणे भगवं महावीरे गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासी15 'गोसाला, से जहानामए तेणए सिया, गामेल्लएहिं परब्भवमाणे २ कत्थ
य गर्ल्ड वा दरिं वा दुग्गं वा निन्नं वा पव्वयं वा विसमं वा अणस्साएमाणे एगेणं महं उण्णालोमेण वा सणलोमेण वा कप्पासपम्हेण वा तणसूएण वाअत्ताणं आवरेत्ताणं चिट्ठज्जा, सेणंअणावरिए आवरियामति अप्पाणं
मन्नइ, अप्पच्छन्ने य पच्छन्नामिति अप्पा णं मन्नइ, आणिलुक्के निलुक्क20 मिति अप्पाणं मन्नइ, अपलाए पलायमिति अप्पाणं मन्नइ, एवामेव तुमं
पि गोसाला, अणंन्ने संते अन्नामिति अप्पाणं उपलभसि। तं मा एवं गोसाला, नारिहास गोसाला, सच्चेव ते सा छाया नोअन्ना'॥(सू० ५५१) ... २०. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते समणेणं भगवया महावीरेणं
एवं वुत्ते समाणे आसुरुत्ते ५ समणं भगवं महावीरं उच्चावयाहिं 25 आउसणाहिं आउसइ, २ उच्चावयाहिं उद्धंसणाहिं उद्धंसेइ, २त्ता
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पन्नरसम सयं
उच्चावयाहिं निब्भंछणाहिं निब्भंछेइ २ उच्चावयाहिं निच्छोडणाहिं निच्छोडेइ, २ एवं वयासी- 'नट्ठे सि कयाइ, विणट्ठे सि कयाइ, भट्ठे सिकाइ, नट्ठविणट्टभट्ठे सि कयाइ, अज्ज न भवसि नाहि ते - ममाहिंतो सुहमत्थि ' ॥ ( सू० ५५२)
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,
२१. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स 5 अंतेवासी पाईणजाणवए सव्वाणुभूई नामं अणगारे, पगइभद्दए जाव विणीए, धम्मायरियाणुरागेणं एयमहं असद्दहमाणे उट्ठाए उट्ठेइ, २ जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, २ गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासी - 'जे वि ताव गोसाला, तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतियं एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं निसामेश, से वि 10 ताव वंदइ नमसइ, जाव कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासर, किमंग पुण तुमं गोसाला, भगवया चैव पव्वाविए, भगवया चेव मुंडाविए, भगवया चेव सेहाविए, भगवया चैव सिक्खाविए, भगवया चेव बहुस्सुईकए, भगवओ चेव मिच्छं विप्पडिवने । तं मा एवं गोसाला, नारिहसि गोसाला, सच्चेव ते सा छाया नो अन्ना' । तए णं से गोसाले 15 मंखलिपुत्ते सव्वा णुभूइणामं अणगारेणं एवं वुत्ते समाणे आसुरुत्ते ५ सव्वाणुभूईं अणगारं तवेणं तेपणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासिं करेइ । तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते सव्वाणुभूइं अणगारं तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासि करेत्ता दोच्चं पि समणं भगवं महावीरं उच्चावयाहिं आउसणाहिं आउसइ जाव सुहं नत्थि ॥
20
२२. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगबओ महावीरस्स अंतेवासी कोसलजाणवए सुनक्खत्ते नामं अणगारे पगइभद्दए जाव विणीए धम्मायरियाणुरागेणं जहा सव्वाणुभुई तहेव जाव स च्चेव ते सा छाया नो अन्ना । तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते सुनक्ख तेणं अणगारेणं एवं वृत्ते समाणे आसुरुत्ते ५ सुनक्खत्तं अणगार 25
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम् तवेणं तेएणं परितावेइ। तए णं से मुनक्खत्ते अणगारे गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं तवेणं तेएणं परिताविए समाणे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, २ समणं भगवं महावीरं तिक्वुत्तो वंदइ नमंसइ, २त्ता सयमेव पंच महव्वयाइं आरुभेइ, २ समणा य समणीओ 5य खामेइ, २ आलोइयपडिकंते समाहिपत्ते आणुपुत्वीए कालगए॥
२३. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते सुनवखत्तं अणगारं तवेणं तेएणं परितावेत्ता तच्चं पि समणं भगवं महावीरं उच्चावयाहिं आउसणाहि आउसइ, सव्वं तं चेव जाव सुहं नत्थि । तए णं समणे
भगवं महावीरे गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासी-जे वि ताव गोसाला, 10 तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा तं चेव जाव पज्जुवासइ, किमंग पुण गोसाला, तुम मए चेव पव्वाविए जाव मए चेव बहुस्सुईकए, ममं चेव मिच्छं. विप्पडिवन्ने ? तं मा एवं गोसाला, जाव नो अन्ना । तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते समणेणं भगवया महावीरेणं
एवं वुत्ते समाणे आसुरुत्ते ५ तेयासमुग्धाएणं समोहन्नइ, सत्तट्ठ पयाई 15 पच्चोसक्का रत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स वहाए सरीरगंसि
तेयं निसिरइ । से जहानामए वाउक्कलिया इ वा वायमंडलिया इ वा सेलांस वा कुड्डांस वा थंभास वा थूभंसि वा आवरिज्जमाणी वा निवारिज्जमाणी वा सा णं तत्थ नो कमइ नो पक्कमइ एवामेव
गोसालस्स वि मंखलिपुत्तस्स तवे तेए समणस्स भगवओ महावीरस्स 20 वहाए सरीरगांस निसिट्टे समाणे से णं तत्थ नो कमइ नो पक्कमइ.
आंचयांचयं करेइ, २त्ता आयाहिणपयाहिणं करेइ, २ उर्दु वेहासं उप्पइए । से णं तओ पडिहए पडिनियत्ते समाणे तमेव गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीरगं अणुडहमाणे २ अंतो अणुप्पविटे। तए णं से
गोसाले मंखलिपुत्ते सएणं तेएणं अन्नाइटे समाणे समणं भगवं महावीर 25 एवं वयासी-'तुमं णं आउसो कासवा, ममं तवेणं तेएणं अन्नाइट्टे
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पन्नरसमं सयं
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समाणे अंतो छण्हं मासाणं पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवकंतीए छउमत्थे चेव कालं करेस्ससि । तए णं समणे भगवं महावीरे गोसालं मखलिपुत्तं एवं वयासी-'नो खलु अहं गोसाला, तव तवणं तेएणं अन्नाइटे समाणे अंतो छण्हं जाव कालं करेस्सामि; अहं णं अन्नाई सोलस वासाइं जिणे सुहत्थी विहरिस्सामि। तुम णं गोसाला, 5 अप्पणा चेव सएणं तेएणं अन्नाइटे समाणे अंतो सत्तरत्तस्स पित्तज्जरपरिगयसरीरे जाव छउमत्थे चेव कालं करेस्सास'॥
२४. तए णं सावत्थीए नयरीए सिंघाडग जाव पहेसु बहुजणो अन्नमन्नस एवमाइक्खइ, जाव एवं परूवेइ-‘एवं खलु देवाणुप्पिया, सावत्थीए नयरीए बहिया कोट्टए चेइए दुवे जिणा संलवंति, एगे 10 वयंति- तुमं पुच्विं कालं करेस्ससि, एगे वदंति-तुमं पुट्विं कालं करेस्सास। तत्थ णं के पुण सम्मावाई के पुण मिच्छावाई ? तत्थ णं जे से अहप्पहाणे जणे से वयइ-‘समणे भगवं महावीरे सम्मावाई, गोसाले मंखलिपुत्ते मिच्छावाई'। 'अज्जो' इ समणे भगवं महावीरे समणे निग्गंथे आमंतेत्ता एवं वयासी-अज्जो, से जहानामए तणरासी 15 इ वा कट्टरासी इ वा पत्तरासी इ वा तयारासी इ वा तुसरासी इ वा भुसरासी इ वा गोमयरासी इ वा अवकररासी इ वा अगणिझामिए अगणिझूसिए अगणिपरिणामिए हयतेए गयतेए न?तेए भट्टतेए लुत्ततेए विणट्टतेए जाव एवामेव गोसाले मंखलिपुत्ते मम वहाए सरीरगंसि तेयं निसिरेत्ता हयतेए गयतेए जाव विणटुतेए जाए। तं 20 छंदेणं अज्जी, तुम्भे गोसालं मखलिपुत्तं धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोएह, २ धम्मियाए पडिसारणाए पडिसारेह, २ धम्मिएणं मडोयारेणं पडोयारेह, २ अष्टेहि य हेऊहि य पसिणेहि य वागरणेहि य कारणेहि य निप्पट्टपसिणवागरणं करेह ॥ . .२५. तए णं ते समणा निग्गंथा समणेणं भगवया महावीरेणं एवं 25
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम् वुसा समाणा समणं भगवं महावीरं वदति नमसंति, २ जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते तेणेव उवागच्छंति, २त्ता गोसालं मंखलिपुत्तं धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोपंत, २ धम्मियाए पडिसारणाए पडिसारेंति, २ धम्मिएणं पडोयारेणं पडोयारेति, २ अट्रेहि य हेऊहि य कारणेहि य 5 जाव वागरणं करेंति॥
२६. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते समणेहिं निग्गंथेहिं धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोइज्जमाणे जाव निप्पट्टपसिणवागरणे कीरमाणे आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे नो संचाएइ समणाणं निग्गंथाणं
सरीरगस्स किंचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पाएत्तए, छविच्छेदं वा 10 करेत्तए। तए णं ते आजीविया थेरा गोसालं मंखलिपुत्तं समणेहिं
निग्गंथेहिं धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोएज्जमाणं, धम्मियाए पडिसारणाएपडिसारिज्जमाणं, धम्मिएणं पडोयारेणं पडोयारेज्जमाणं, अटेहि य हेऊहि य जाव कीरमाणं, आसुरुत्तं जाव मिसिमिसेमाणं,
समणाणं निग्गंथाणं सरीरगस्स किंचि आबाहं वा वाबाहं वा छविच्छेद 15 वा अकरेमाणं पासंति, २ गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अंतियाओ
आयाए अवक्कमंति, २ जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति, २ समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं कति, २ वंदति नमसांत,२समणं भगवं महावीरं उवसंपज्जित्ताणं विहरति । अत्थेगइया
आजीविया थेरा गोसालं चेव मंखलिपुत्तं उवसंपज्जित्ताणं विहरांत॥ 20 २७. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते जस्सट्टाए हव्वमागए तमढें
असाहेमाणे, रुंदाई पलोएमाणे, दीहुण्हाई नीससमाणे, दाढियाए लोमाए हुँचमाणे, अवटुं कंडूयमाणे, पुलिं पप्फोडेमाणे, हत्थे विणि णमाणे, दोहि वि पाएहिं भूमि कोट्टेमाणे, 'हा हा अहो हओऽह
मास्स' त्ति कटु समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ कोट्ठयाओ 25 चेइयाओ पडिनिक्खमइ, २ जेणेव सावत्थी नयरी, जेणेव हालाहलाए
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कुंभकारीए कुंभकारावणे तेणेव उवागच्छइ, २ हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि अंबकूणगहत्थगए, मज्जपाणगं पियमाणे, अभिक्खणं गायमाणे, आभिक्खणं नच्चमाणे, अभिक्खणं हालाहलाए कुंभकारीए अंजलिकम्मं करेमाणे, सीयलएणं मट्टियापाणएणं आयंचणिउदएणं गायाइं परिसिंचमाणे विहरइ ॥ (सू० ५५३)
२८. 'अज्जो' त्ति समणे भगवं महावीरे समणे निग्गंथे आमंतेत्ता एवं वयासी-जावइए णं अज्जो गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं मम वहाए सरीरगंसि तेए निसट्टे, से णं अलाहि पज्जत्ते सोलसण्हं जणवयाणं। तं जहा–१ अंगाणं, २ वंगाणं, ३ मगहाणं, ४ मलयाणं, ५ मालवगाणं, ६ अच्छाणं, ७ वच्छाणं, ८ कोच्छाणं, ९ पाढाणं, 10 १० लाढाणं, ११ वज्जाणं, १२ मोलाणं, १३ कासीणं, १४ कोसलाणं, १५ अवाहाणं, १६ संभुत्तराणं घायाए वहाए उच्छादणयाए भासीकरणयाए। जं पि य अज्जो, गोसाले मंखलिपुत्ते हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि अंबकूणगहत्थगए, मज्जपाणं पियमाणे, अभिक्खणं जाव अंजलिकम्मं करेमाणे विहरइ, तस्स वि य णं15 वज्जस्स पच्छायणट्टयाए इमाइं अट्ठ चरिमाइं पन्नवेइ। तं जहा१ चरिमे पाणे, २ चरिमे गेये, ३ चरिमे नट्टे, ४ चरिमे अंजलिकम्मे, ५चरिमे पोक्खलसंवट्टए महामेहे, ६ चरिमे सेयणए गंधहत्थी,७ चरिमे महासिलाकंटए संगामे, ८अहं च णं इमीसे ओसप्पिणीए चउवीसाए तित्थंकराणं चरिमे तित्थंकरे सिज्झिस्सं जाव अंतं करिस्सं ति। जं 20 पिय अज्जो, गोसाले मंखलिपुत्ते सीयलएणं मट्टियापाणएणं आयंचाणउदएणं गायाई परिसिंचमाणे विहरइ, तस्स वि य णं वज्जस्स पच्छायणट्ठयाए इमाई चत्तारि पाणगाइं चत्तारि अपाणगाई पन्नवेह ॥
२९. से किं तं पाणए ? पाणए चउन्विहे पण्णत्ते। तं जहा१ गोपुटुए, २ हत्थमद्दियए, ३ आयवतत्तए, ४ सिलापन्भट्ठए, से तं 25
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम् पाणए ॥ से किं तं अपाणए ? अपाणए चउविहे पण्णत्ते । तं जहा१ थालपाणए, २ तयापाणए, ३ सिंबलिपाणए, ४ सुद्धपाणए ॥ से किं तं थालपाणए ? जं णं दाथालगं वा दावारगं वा दाकुंभगं वा दाकलसं वा सीयलगं उल्लगं हत्थेहिं परामुसइ, न य पाणियं पियइ, 5 से तं थालपाणए ॥ से किं तं तयापाणए ? जं णं अंबं वा अंबाडगं वा जहा पओगपदे जाव बोरं वा तिंदुरुयं वा तरुणगं वा आमगं वा आसगांस आवीलेइ वा पवीलेइ वा, न य पाणियं पियइ से तं तयापाणए ॥ से किं तं सिंबलिपाणए ? जं णं कलसंगलियं वा मुग्गसिंगलियं वा माससंगलियं वा सिंबलिसंगलियं वा तरुणियं आमियं 10 आसगंसि आवीलेइ वा पवीलेइ वा, न य पाणियं पियइ, से तं सिंबलिपाणए ॥ से किं तं सुद्धपाणए ! जं णं छम्मासे सुद्धखाइमं. खाइ, दो मासे पुढविसंथारोवगए य, दो मासे कटुसंथारोवगए, दो मासे दन्भसंथारोवगए। तस्स णं बहुपडिपुण्णाणं छण्हं मासाणं
अंतिमराईए इमे दो देवा महड्डिया जाव महेसक्खा अंतियं पाउन्भवंति। 15 तं जहा- पुण्णभद्दे य माणिभद्दे य। तए णं ते देवा सीयलपहि
उल्लएहिं हत्थहिं गायाई परामुसंति। जे णं ते देवे साइज्जइ, से णं आसीविसत्ताए कम्मं पकरेइ, जे णं ते देवे नो साइज्जइ तस्स णं सांस सरीरगंसि अगणिकाए संभवइ, से णं सएणं तेएणं सरीरगं झामेइ २त्ता तओ पच्छा सिज्झइ जाव अंतं करेइ, से तं सुद्धपाणए । 20 ३०. तत्थ णं सावत्थीए नयरीए अयंपुले नामं आजीविओवासए परिवसइ, अड्डे जाव अपरिभूए, जहा हालाहला जाव आजीवियसमएणं अप्पाणं भावमाणे विहरइ। तए णं तस्स अयंपुलस्स आजीविओवासगस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयांस कुटुंबजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अज्झाथिए जाव समुप्पज्जित्था- किंसंठिया 25 हल्ला पण्णत्ता ? तए णं तस्स अयंपुलस्स आजीविओवासगस्स दोर्च
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पन्नरसमं सयं पि अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था-' एवं खलु ममं धम्मायरिए धम्मोवदेसए गोसाले मंखलिपुत्ते उप्पन्ननाणदसणधरे जाव सव्वन्नू सव्वदरिसी इहव सावत्थीए नयरीए हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणसि आजीवियसंघसंपरिखुडे आजीवियसमएणं अप्पाणं भावमाणे विहरइ। तं सेयं खलु मे कल्लं जाव जलंते गोसालं 5 मंखलिपुत्तं वंदित्ता जाव पज्जुवासित्ता इमं एयारूवं वागरण वागरित्तए। त्ति कट्ट एवं संपेहेइ, २ त्ता कलं जाव जलंते ण्हाए ... कय जाव अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरे साओ गिहाओ पडिनिक्खमइ २ त्ता पायविहारचारेणं सावत्थिं नयरिं मज्झमज्झेणं जेणेव हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणे तेणेव उवागच्छइ, २ त्ता गोसालं मंखलिपुत्तं 10 हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि अंबकूणगहत्थगयं जाव अंजलिकम्मं करेमाणं सीयलएणं मट्टिया ... जाव गायाइं परिसिंचमाणं पासइ, २ त्ता लज्जिए विलिए विड्डे सणियं २ पञ्चोसक्कइ। तए णं ते आजीविया थेरा अयंपुलं आजीविओवासगं लज्जियं जाव पच्चोसक्कमाणं पासइ (पासंति ?), २त्ता एवं वयासी-‘एहि ताव अयंपुला, एत्तओ।।15 तए णं से अयंपुले आजीविओवासए आजीवियथेरोहिं एवं वुत्ते समाणे जेणेव आजीविया थेरा तेणेव उवागच्छइ, २ आजीविए थेरे वंदइ नमसइ, २ नच्चासन्ने जाव पज्जुवासइ। 'अयंपुला' इ आजीविया थेरा अयंपुलं आजीविओवासगं एवं वयासी- ‘से नूणं ते अयंपुला, पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि जाव किंसंठिया हल्ला पण्णत्ता ? 120 तए णं तव अयंपुला, दोच्चं पि तं चेव सव्वं भाणियव्वं जाव सावत्थिं नयरिं मज्झंमज्झेणं जेणेव हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणे, जेणेव इहं तेणेव हव्वमागए । से नूणं ते अयंपुला, अट्टे सम? ? 'हंता अत्थि'। 'जं पि य अयंपुला, तव धम्मायरिए धम्मोवदेसए गोसाले मंखलिपुत्ते हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणांस अंबकूणगहत्थगए 25
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम् जाव अंजलिं करेमाणे विहरइ, तत्थ वि णं भगवं इमाइं अट्ठ चरिमाई पनवेइ, तं जहा-चरिमे पाणे जाव अंतं करेस्सइ। जे वि य अयंपुला, तव धम्मायरिए धम्मोवदेसए गोसाले मंखलिपुत्ते सीयलएणं मट्टिया जाव विहरइ, तत्थ वि णं भगवं इमाइं चत्तारि पाणगाई चत्तारि 5 अपाणगाई पन्नवेइ। से किं तं पाणए ? २ जाव तओ पच्छा सिज्झइ जाव अंतं करेइ । तं गच्छ णं तुमं अयंपुला, एस चेव तव धम्मायरिए धम्मोवदेसए गोसाले मंखलिपुत्ते इमं एयारूवं वागरणं वागरित्तए' त्ति।
३१. तए णं से अयंपुले आजीविओवासए आजीविपहिं थेरोहिं एवं वुत्ते समाणे हट्टतुट्टे उठाए उट्टेइ, २ जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते 10 तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तए णं ते आजीविया थेरा गोसालस्स
मंखलिपुत्तस्स अंबकूणगएडावणट्टयाए एगंतमंते संगारं कुव्वंति। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते आजीवियाणं थेराणं संगारं पडिच्छइ, २ अंबकूणगं एगंतमंते एडेइ। तए णं से अयंपुले आजीविओवासए
जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, २ गोसालं मंखलिपुत्तं 15 तिक्खुत्तो जाव पज्जुवासइ। 'अयंपुला, इ गोसाले मंखलिपुत्ते
अयंपुलं आजीविओवासगं एवं वयासी-' से नूणं अयंपुला, पुव्वरत्तावरत्तकालसमयसि जाव जेणेव ममं अंतियं तेणेव हव्वमागए। से नूणं अयंपुला, अढे समढ़े ! 'हंता अस्थि ।। 'तं नो खलु एस अंबकूणए, अंबचोयए णं एसे।।'किंसंठिया हल्ला पण्णत्ता' वसीमूलसंठिया हल्ला पणण्त्ता । वीणं वापहि रे वीरगा, वीणं वाएहि ।। तए णं से अयंपुले आजीविओवासए गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं इमं एयारूवं वागरणं वागरिए समाणे हट्टतुट्ट... जाव हियए गोसालं मंखलिपुत्तं वंदइ नमंसइ, २ पसिणाई पुच्छइ, २ अट्ठाई परियाइयइ, २ उठाए उट्टेइ, २ त्ता गोसालं मंखलिपुत्तं वंदइ नमसइ, २ त्ता जाव पडिगए । 5 ३२. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते अप्पणो मरणं आभोपड, २त्त
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आजीविए थेर सद्दावेद, २ एवं वयासी-'तुब्भे णं देवाणुप्पिया, मम कालगयं जाणेत्ता सुरभिणा गंधोदएणं ण्हाणेह, २ पम्हलसुकुमालाए गंधकासाईए गायाई लूहह, २ सरसेणं गोसीसचंदणेणं गायाई अणुलिंपह, २ महरिहं हंसलक्खणं पडसाडगं नियंसेह, २ सव्वालंकारविभूसियं करेह, २ पुरिसहस्सवाहिणि सीयं दुरूहेह, २ सावत्थीए नयरीए सिंघाडग जाव पहेसु महया महया सद्देणं उग्रोसेमाणा एवं वदह-एवं खलु देवाणुप्पिया, गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिणप्पलावी जाव जिणसई पगासेमाणे विहरित्ता इमीसे ओसप्पिणीए चउवीसाए तित्थयराणं चरिमे तित्थयरे सिद्धे जाव सव्वदुक्खप्पहीणे। इड्डिसक्कारसमदएणं मम सरीरगस्स नीहरणं करेह' । तए णं ते आजीविया थेरा 10 गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स एयमटुं विणएणं पडिसुणत॥ (सू० ५५४)
३३. तए णं तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सत्तरत्तंसि परिणममाणंसि पडिलद्धसम्मत्तस्स अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था'नो खलु अहं जिणे जिणप्पलावी नाव जिणसई पगासेमाणे विहरिए। अहं णं गोसाले चेव मंखलिपुत्ते समणघायए समणमारए समणपडिणीए 15 आयरियउवज्झायाणं अयसकारए अवण्णकारए अकित्तिकारए बहूहिं असम्भावुन्भावणाहि मिच्छत्ताभिनिवेसहि य अप्पाणं वा परंवा तदुभयं वा वुग्गाहमाणे वुप्पाएमाणे विहरित्ता सएणं तेएणं अन्नाइट्टे समाणे अंतो सत्तरत्तस्स पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवकंतीए छउमत्थे चेव कालं करेस्सं । समणे भगवं महावीरे जिणे जिणप्पलावी जाव 20 जिणसदं पगासेमाणे विहरइ', - एवं संपेहेइ, २ आजीविए थेरे सद्दावेइ, २ उच्चाक्यसवहसाविए करेइ, २ एवं वयासी- 'नो खलु अहं जिणे, जिणप्पलावी पगासेमाणे विहरिए । अहं णं गोसाले मंखलिपुत्ते समणघायए जाव छउमत्थे चेव कालं करिस्सं। समणे भगवं महावीरे जिणे जिणप्पलावी जाव जिणसई फ्गासेमाणे 95
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विहरइ । तं तुब्भे णं देवाणुप्पिया, ममं कालगयं जाणेत्ता वामे पाए सुबेणं बंधह, २ तिक्खुत्तो मुहे उठुहह, २ त्ता सावत्थीए नयरीए सिंघाडग जाव पहेसु आकट्ठविकट्ठि करेमाणा महया महया सद्देणं उग्घोसेमाणा २ एवं वदह- 'नो खलु देवाणुप्पिया, गोसाले मंखलिपुत्ते 5 जिणे जिणप्पलावी जाव विहरिए । एस णं गोसाले चेव मंखलिपुत्ते समणघायए जाव छउमत्थे चेव कालगए । समणे भगवं महावीरे जिणे जिणप्पलावी जाव विहरइ । महया अणिड्डीअसक्कारसमुद्एणं ममं सरीरगस्स नीहरणं करेज्जाह ; एवं वदित्ता कालगए ॥ ( सू० ५५५)
३४. तए णं आजीविया थेरा गोसालं मंखलिपुत्तं कालगयं जाणित्ता 10 हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स दुवाराई पिहेंति, २ त्ता हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स बहुमज्झदेसभाए सावत्थि नयरिं आलिहंति, २ त्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीरगं वामे पादे सुंबेणं बंधंति, २ ता तिक्खुत्ती मुहे उभंति, २त्ता सावत्थीए नगरीए सिंघाडग जाव पहेसु आकट्ठविकट्ठि करेमाणा, नीयं २ सद्देणं उग्घोसे15 माणा २ एवं वयासी - 'नो खलु देवाणुप्पिया, गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिणप्पलावी जाव विहरिए । एस णं गोसाले चेव मंखलिपुत्ते समणघायए जाव छउमत्थे चेव कालगए । समणे भगवं महावीरे जिणे, जिणप्पलावी जाव विहरइ' । सवहपडिमोक्खणगं करेंति, २ दोच्चं पि पूयासक्कारथिरीकरणट्टयाए गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स 20 वामाओ पादाओ सुंबं मुयंति, २ हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स दुवारवयणाई अवगुणंति, २ गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीरगं सुरभिणा गंधोदपणं ण्हाणेंति, तं चेव जाव महया इड्डिसक्वारसमुद्रणं गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीरस्स नीहरणं करेंति ॥ ( सू० ५५६ )
३५. तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ सावत्थीओ नयरीओ 25 कोट्टयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, २ बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥
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३६. तेणं कालणं तेणं समएणं मेंढियगामे नामं नयरे होत्था, वण्णओ। तस्स णं मेंढियगामस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए एत्थ णं साण(ल)कोट्ठए नामं चेइए होत्था, वण्णओ, जाव पुढविसिलापट्टओ। तस्सणं साण(ल)कोट्टगत्स णं चेइयस्स अदूरसामंत एत्थ णं महेगे मालुयाकच्छए यावि होत्था, किण्हे किण्होभासे जाव 5 निकुरंबभूए, पत्तिए पुफिर फलिए हरियगरेरिज्जमाणे सिरीए अईव २ उपसोभेमाणे चिट्ठइ। तत्थ णं मेंढियगामे नयरे रेवई नामं गाहावइणी परिवसइ अड्डा जाव अपरिभूया। तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ पुन्वाणुपुट्विं चरमाणे जाव जेणेव मेंढियगामे नयरे जेणेव साण(ल)कोट्टए चेइए जाव परिसा पडिगया। तए णं समणस्स 10 भगवओ महावीरस्स सरीरगंसि विउले रोगायंके पाउब्भूए, उज्जले जाब दुरहियासे, पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवक्रतीए यावि विहरइ, अवियाई लोहियवच्चाई पि पकरेइ, चाउवण्णं वागरेइ- ‘एवं खलु समणे भगवं महावीरे गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स तवेणं तेएणं अन्नाइटे समाणे अंतो छण्हं मासाणं पित्तज्जरपरिमयसरीरे दाहवक्कंतीए 15 छउमत्थे चेव कालं करिस्सइ ।। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्त अंतेवासी सीहे नामं अणमारे पगइभदए जाव विणीए मालुयाकच्छगस्त अदूरसामंते छटुंछट्टेणं अनिक्खित्तेणं २ तवोकम्मेणं उडुंबाहा जाव विहरइ। तए णं तस्स सीहस्स अणगारस्स झागंतरियाए वट्टमाणस्त अयमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था-20 'एवं खलु ममं धम्मायरियस्स धम्मोवदेलगस्त समणस्स भगवओ महावीरस्त सरीरगंसि विउले रोगायंके पाउन्भूए, उज्जले जाव छउमत्थे चेव कालं करिस्तह। वदिस्संति य णं अन्नतिथिया'छ उमत्थे चेव कालगर ।। इमेणं एयारूवेगं महया मगोमाणसिएणं दुक्खेणं अभिभूए समाणे आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, २ जेणेव 25
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श्रीमद्भगवतसूित्रम् मालुयाकच्छए तणेव उवागच्छइ, २त्ता मालुयाकच्छगं अंतो अणुपविसइ, २ महया २ सद्देणं कुहुकुहुस्स परुन्ने। 'अज्जो' त्ति समणे भगवं महावीरे समणे निग्गंथे आमंतइ, २ एवं वयासी'एवं खलु अज्जो, ममं अंतेवासी सीहे नामं अणगारे पगइभद्दए, 5 तं चेव सव्वं भाणियव्वं जाव परुन्ने। तं गच्छह णं अज्जो, तुन्भे सीह
अणगारं सद्दह ।। तए णं ते समणा निग्गंथा समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ता समाणा समणं भगवं महावीरं वदति नमसति, २ समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओसाण(ल)कोट्टयाओ चेइयाओ
पडिनिक्खमंति, २ जेणेव मालुयाकच्छए जेणेव सीहे अणगारे तेणेव 10 उवागच्छंति, २ सीहं अणगारं एवं वयासी-'सीहा, धम्मायरिया
सद्दावेति ।। तए णं से सीहे अणगारे समणेहिं निग्गंथोहिं साद्धं मालुयाकच्छगाओ पडिनिवखमइ, २ जेणेव साण(ल)कोट्ठए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, २ समणं भगवं महावीर तिक्खुत्तो आ यहिणपयाहिणं जाव पज्जुवासइ। 'सहिा' इ समणे 15 भगवं महावीरे सहिं अणगारं एवं वयासी- ‘से नूणं ते सीहा,
झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अयमेयारूवे जाव परुन्ने। से नूणं ते सीहा, अढे सम??" 'हंता अत्थि ।।' तं नो खलु अहं सीहा, गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स तवेणं तेएणं अन्नाइट्टे समाणे अंतो छण्हं मासाणं जाव कालं करेस्सं ; अहं णं अन्नाई सोलस वासाई जिणे 20 सुहत्थी विहरिस्सामि । तं गच्छह णं तुमं सहिा, मेंढियगामं नयर, रेवईए गाहावइणीए गिहे। तत्थ णं रेवईए गाहावइणीए ममं अट्टाए दुवे कवोयसरीरा उवक्खडिया, तोहं नो अट्ठो। अत्थि से अन्ने पारियासिए मज्जारकडए कुक्कुडमंसए, तमाहराहि, एएणं अट्ठो। तए णं से सीहे अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हट्टतुट्ट ... जाव हियए समणं भगवं महावीरं वदइ नमसइ,
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२त्ता अतुरियमचवलमसंभंतं मुहपोत्तियं पडिलेहेइ, २ जहा गोयमसामी जाव जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, २ समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, २त्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ साण(ल)कोट्टयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, २ अतुरिय जाव जेणेव मेढियगामे नयरे तेणेव उवागच्छइ, २ मेढियगामं नयरं । मज्झमज्झेणं जेणेव रेवईए गाहावइणीए गिहे तेणेव उवागच्छइ, २ रेवईए गाहावइणीए गिहं अणुप्पविटे। तए णं सा रेवई गाहावाणी सीहं अणगारं एज्जमाणं पासइ, २ हट्टतुट्ट... खिप्पामेव आसणाओ अभुट्टेइ, २ सीहं अणगारं सत्तट्ठ पयाई अणुगच्छइ, २ तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, २वंदइ नमसइ, २ एवं वयासी- 'संदिसंतुणं 16 देवाणुप्पिया, किमागमणप्पओयणं? तए णं से सीहे अणगारे रेवई गाहावइणि एवं वयासी- ‘एवं खलु तुमे देवाणुप्पिए, समणस्स भगवओ महावीरस्स अट्टाए दुवे कवोयसरीरा उवक्खडिया, तेहिं नो अट्ठो, अत्थि ते अन्ने पारियासिए मज्जारकडए कुक्कुडमंसए, एयमाहराहि, तेणं अट्ठो'। तए णं सा रेवई गाहावइणी सीहं अणगारं एवं वयासी-11 'केस णं सीहा, से नाणी वा तवस्सी वा, जेणं तव एस अट्टे मम ताव रहस्सकडे हब्वमक्खाए, जओ णं तुमं जाणाास ? एवं जहा खंदए जाव जओ णं अहं जाणामि। तए णं सा रेवइ गाहावइणी सीहस्स अणगारस्स अंतियं एयमढें सोचा निसम्म हट्टतुट्ठा जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ, २ त्ता पत्तगं मोएइ, २त्ता जेणेव सीहे अणगारे 26 तेणेव उवागच्छइ, २ त्ता सीहस्स अणगारस्स पडिग्गहगंसि तं सव्वं सम्मं निस्सिरइ। तए णं तीए रेवईए गाहावइणीए तेणं दब्बसुद्धणं जाव दाणेणं सीहे अणगारे पडिलाभिए समाणे देवाउए निबद्धे, जहा विजयस्स जाव जम्मजीवियफले, रेवईए गाहावइणीए रेवईगाहावइणीए। तए णं से सीहे अणगारे रेवईए गाहावइणीए गिहाओ
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पडिनिक्खमइ, रत्ता मेंढियगामं नयरं मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ, २ जहा मोयमसामी जाव भत्तपाणं पडिदंसेइ, २ समणस्स भगवओ महावीरस्स पाणिसि तं सव्वं सम्मं निस्सिरइ । तए णं समणे भगवं महावीरे अमुच्छिए जाव अणज्झोववन्ने बिलमिव पन्नगभूषणं अप्पाणेणं 5 तमाहारं सरीरकोट्ठगांस पक्खिवइ । तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स तमाहारं आहारियस्स समाणस्स से विपुले रोगायंके खिप्पामेव उवसमं पत्ते, हट्टे जाए, आरोग्गे, बलियसरीरे, तुट्ठा समणा, तुट्टाओ समणीओ, तुट्ठा सावया, तुट्ठाओ सावियाओ, तृट्ठा देवा, तुट्ठाओ देवीओ, सदेवमणुयासुरे लोए तुट्ठे, 'हट्ठे जाए समणे भगवं 1) महावीरे, हट्टे जाए समणे भगवं महावीरे ' ॥ ( सू० ५५७ )
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३७ 'भंते ' त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसर, २ एवं वयासी - ' एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी पाईणजाणवए सव्वाणुभूईनामं अणगारे पगइभद्दए जाव विणीए । से णं भंते, तदा गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं तवेणं तेएणं भासरासीकए समाणे कहिं गए, 15 कहिं उववन्ने ? ' एवं खलु गोयमा, ममं अंतेवासी पाईणजाणवए सव्वाणभूईनामं अणगारे पगइभद्दए जाव विणीए । से णं तदा गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं भासरासीकए समाणे उड्डुं चंदिमसूरिय नाव बंभलंतकमहासुक्के कप्पे वीइवइत्ता सहस्सारे कप्पे देवत्ताए उववन्ने । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं अट्ठारस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । तत्थ 20 णं सव्वाणुभूइस्स वि देवस्स अट्ठारस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । से णं सव्वाणुभूई देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खपणं भवक्खणं ठिइक्खणं जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहि जाव अंतं करेहिइ ॥
३८. एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी कोसलजाणवए सुनक्खत्ते नामं अणगारे पगइभद्दए जाव विणीए । से णं भंते, तदा णं गोसालेणं 25 मंखलिपुत्तेणं तवेणं तेपणं परिताविए समाणे कालमासे कालं किच्चा
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कहिं गए, कहिं उववन्ने ? एवं खलु गोयमा, ममं अंतेवासी सुनक्सत्ते नामं अणगारे पगइभद्दए जाव विणीए । से णं तदा गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं तवेणं तेषणं परिताविए समाणे जेणेव ममं अंतिए तेणेव उवागच्छइ, २ वंदइ नमंसइ, २ सयमेव पंच महत्वयाई आरुभेइ २ समणा य समणीओ य खामेइ, २ आलोइयपडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा उड्डुं चंदिमसूरिय जाव आणयपाणयारणकप्पे वीईवइत्ता अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववन्ने । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं बाबीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । तत्थ णं सुनक्खत्तस्स वि देवरस बावीसं सागरोवमाईं, सेसं जहा सव्वाणुभूइस्स जाव अंतं काहिइ ॥ ( सू० ५५८ )
३९. एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी कुसिस्से गोसाले नाम 10 मंखलिपुत्ते । से णं भंते, गोसाले मंखलिपुत्ते कालमासे कालं किच्चा कहिँ गए, कहिं उववन्ने ? एवं खलु गोयमा, ममं अंतेवासी कुसिस्से गोसाले नामं मंखलिपुत्ते समणधायए जाव छउमत्थे चेव कालमा से कालं किच्चा उड्ड चंदिमसूरिय नाव अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववन्ने । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं बावीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । तत्थ 15 णं गोसालस्स वि देवरस बावीसं सागरोवमाई डिई पण्णत्ता ॥
४०. से णं भंते, गोसाले देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं ३ जाव कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा, इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विंझगिरिपायमूले पुंडेसु जणवएसु सयदुवारे नयरे संमुइस्स रन्नो भद्दा भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ । से णं तत्थ नवन्हं 20 मासाणं बहुपडि पुण्णाणं जाव वीइक्कंताणं जाव सुरूवे दारए पयाहिइ ॥
४१. जं रयणिं च णं से दारए जाइहिइ, तं रयणिं च णं सयदुवारे नयरे सब्भितरबाहिरिए भारग्गसो य कुंभग्गसो य पउमवासे य रयणवासे य वासे वासिहिइ । तर णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो एक्कारसमे दिवसे वीइकंते जाव संपत्ते बारसाहदिवसे अयमेयारूवं 25
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम् गोण्णं गुणनिप्फन्नं नामधेज्जं काहिति- 'जम्हा णं अम्हं इमंसि दारगंसि जायंसि समाणंसि सयदुवारे नयरे सभितरबाहिरिए जाव रयणवासे वुटे, तं होउ णं अम्हं इमस्स दारगस्स नामधेज्जं महापउमे महापउमे'। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नामधेज्जं करेहिति 5'महापउमे' त्ति । तए णं तं महापउमं दारगं अम्मापियरो साइरेगट्टवासजायगं जाणित्ता सोभणंसि तिहिकरणदिवसनक्खत्तमुहुत्तंसि महया २ रायाभिसेगेणं अभिसिंचेहिति । से णं तत्थ राया भविस्सइ, महयाहिमवंत जाव विहरिस्सइ। तएणं तस्स महापउमस्स रन्नो अन्नया कयाइ दो देवा महड्डिया जाव महेसक्खा सेणाकम्मं काहिति। तं जहा10 पुण्णभद्दे य माणिभद्दे य। तए णं सयदुवारे नयरे बहवे राईसरतलवर
जाव सत्थवाहप्पभिईओ अन्नमन्नं सद्दावेहिति, रत्ता एवं वपहिति‘जम्हा णं देवाणुप्पिया, अम्हं महापउमस्स रन्नो दो देवा महड्डिया जाव सेणाकम्मं करेंति, तं जहा- पुण्णभद्दे य माणिभद्दे य, तं होउ
णं देवाणुप्पिया, अम्हं महापउमस्स रन्नो दोच्चं पि नामधेज्जे 'देवसेणे 15 देवसेणे ।। तए णं तस्स महापउमस्स रन्नो दोच्चे वि नामधेजे
भविस्सइ 'देवसेणे ' ति॥
४२. तए णं तस्स देवसेणस्स रन्नो अन्नया कयाइ सेए संखतलविमलसंनिगासे चउदंते हत्थिरयणे समुप्पज्जिस्सइ। तए णं से
देवसणे राया तं सेयं संखतलविमलसंनिगासं चउइंतं हत्थिरयणं दुरूढे 20 समाणे सयदुवारं नयरं मज्झंमज्झेणं आभक्खणं २ अभिजाहिइ निज्जाहिइ य। तए णं सयदुवारे नयरे बहवे राईसर जाव पभिईओ अन्नमन्नं सद्दावहिंति, २ वहिति- 'जम्हा णं देवाणुप्पिया, अम्हं
देवसेणस्स रन्नो सेए संखतलसंनिगासे चउद्देते हत्थिरयणे समुप्पन्ने, । तं होउ णं देवाणुप्पिया, अम्हं देवसेणस्स रन्नो तच्चे वि नामधेज्जे
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" विमलवाहणे विमलवाहणे' त्ति । तए णं तस्स देवसेणस्स रन्नो तच्चे विनामधेज्जे ' विमलवाहणे' त्ति ॥
४३. तर णं से विमलवाहणे राया अन्नया कयाइ समणेहिं निम्गंथेहिं मिच्छं विप्पडिवज्जिहिइ, अव्येगइए आउसेहिइ, अप्पेगइए अवहसिहिइ अप्पेगइए निच्छोडेाहेइ, अप्पेगइए निब्भत्थे (च्छे ) हिइ, 5 अप्पेगइए बंधेहिइ, अप्पेगइए निरुंभेहि अप्पेगइयाणं छविच्छेदं करेहिइ, अप्पेगइए पमारेहिइ अप्पेगइयाणं उद्दवेहिइ, अप्पेग इयागं वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं आछिंदिहिइ विच्छिदिहिइ भिदिहि अवहरिहिइ, अप्पेगइयाणं भत्तपाणं वोच्छिदिहिइ, अप्पेगइए निन्नगरे करेहिइ, अप्पेगइए निव्विसए करेहिइ । तए णं सयदुवारे नगरे बहवे 10 राईसर जाव वइहिंति - एवं खलु देवाणुप्पिया, विमलवाहणे राया समगेहिं निग्गंथेहिं मिच्छं विष्पडिवन्ने अप्पेगइए आउस्सइ जाव निव्विसए करेइ । तं नो खलु देवाणुप्पिया, एयं अम्हं सेयं, नो खलु एयं विमलवाहणस्स रन्नो सेयं, नो खलु एयं रज्जस्स वा रटुल्स वा बलस्स वा वाहणस्स वा पुरस्स वा अंते उरस्स वा जणवयस्स वा सेयं, 15 जं णं विमलवाहणे राया समणेहिं निग्गंथेहिं मिच्छं विप्पाडवन्ने, तं सेयं खलु देवाणुनिया, अम्हं विमलवाहणं रायं एयमङ्कं विन्नवित्तए ' त्ति कट्टु अन्नमन्नस्स अंतियं एयमहं पडिसुर्णेति, २ जेणेव विमलवाहणे राया तेणेव उवागच्छंांति, २ करयलपरिग्गहियं विमलवाहणं रायं जरणं विजएणं वद्धावेंति, २ एवं वहिंति - ' एवं खलु देवाणु - 20 प्पिया समणेहिं निग्गंयेहिं मिच्छं विप्पडिवन्ना, अप्पेगइए आउस्संति जाव अप्पेगइए निव्विसए करेंति । तं नो खलु एयं देवाणुप्पियाणं सेयं, नो खलु एयं अम्हं सेयं, नो खलु एयं रज्जस्स वा जाव जण वयस्स वा सेयं जं णं देवाणुप्पिया, समणेहिं निग्गंथेहिं मिच्छं विप्पडिवन्ना। तं विरमंतुणं देवाणुपिया एयस्स अट्ठस्स अकर गयाँए ॥ 25
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम् ४४. तए णं से विमलवाहणे राया तेहिं बहूहिं राईसर जाव सत्थवाहप्पभिईहिं एयमटुं विन्नत्ते समाणे 'नो धम्मो ' त्ति'नो तवो' ति मिच्छाविणएणं एयमटुं पडिसुणेहिइ। तस्स णं सयदुवारस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए एत्थ णं सुभूमि5भागे नामं उज्जाणे भविस्सइ सव्वोउय० वण्णओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं विमलस्स अरहओ पउप्पए सुमंगले नामं अणगारे जाइसंपन्ने जहा धम्मघोसस्स वण्णओ जाव संखित्तविउलतेयलेस्से, तिन्नाणोवगए, सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स अदूरसामंते छटुंछट्टेणं
अणिक्खित्तेणं जाव आयावेमाणे विहरिस्सइ ॥ 10 ४५. तए णं से विमलवाहणे राया अन्नया कयाइ रहचरियं काउं निज्जाहिइ । तए णं से विमलवाहणे राया सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स अदूरसामंते रहचरियं करेमाणे सुमंगलं अणगारं छटुंछट्टेणं जाव आयावेमाणं पासिहिइ, २ आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे सुमंगलं
अणगारं रहसिरेणं नोल्लावेहिइ। तए णं से सुमंगले अणगारे विमल1 वाहणेणं रन्ना रहसिरेणं नोल्लाविए समाणे सणियं २ उ?हिइ, २ त्ता
दोच्चं पि उड़े बाहाओ पगिज्झिय २ जाव आयावेमाणे विहरिस्सइ। तए णं से विमलवाहणे राया सुमंगलं अणगारं दोच्चं पि रहसिरेणं नोल्लावहिइ । तए णं से सुमंगले अणगारे विमलवाहणेणं रन्ना दोच्च पि रहसिरेणं नोल्लाविए समाणे सणियं २ उट्ठहिइ, २ ओहिं पउंजे20 हिइ २ विमलवाहणस्स रणो तीयद्धं ओहिणा आभोएहिइ, २ विमलवाहणं रायं एवं वइहिइ- 'नो खलु तुमं विमलवाहणे राया, नो खलु तुमं देवसेणे राया, नोखलु तुमं महापउमेराया। तुम णं इओतच्चे भवग्गहणे गोसाले नामं मंखलिपुत्ते होत्था समणघायए जाव छउमत्थे
चेव कालगए। तं जइ ते तदा सव्वाणुभूइणा अणगारेणं पभुणा वि 25 होऊणं सम्म सहियं खामियं तिइक्खियं आहियासियं, जइ ते तदा
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सुनक्खत्तेणं अणगारेणं जाव अहियासियं, जइ ते तदा समणेणं भगवया महावीरेणं पभुणा वि जाव आहियासियं, तं नो खलु ते अहं तहा सम्मं सहिस्सं जाव आहियासिस्सं। अहं ते नवरं सहयं सरहं ससारहियं तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासिं करेज्जामि ॥
४६. तए णं से विमलवाहणे राया सुमंगलेणं अणगारेणं एवं वुत्ते । समाणे आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे सुमंगलं अणगारं तच्चं पि रहसिरेणं नोलावेहिइ। तए णं से सुमंगले अणगारे विमलवाहणेणं रण्णा तच्चं पि रहसिरेणं नोल्लाविए समाणे आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, २ तेयासमुग्घाएणं समोहन्निहिइ, २ सत्तट्ट पयाई पच्चीसक्किहिइ, २ विमलवाहणं रायं 10 सहयं सरहं ससारहियं तवेणं तेएणं जाव भासरासिं करेहिइ ॥
४७. सुमंगले णं भंते, अणगारे विमलवाहणं रायं सहयं जाव भासरासिं करेत्ता कहिं गच्छिहिइ, कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा, सुमंगले अणगारे णं विमलवाहणं रायं सहयं जाव भासरासिं करेत्ता बहूर्हि छट्टमदसमदुवालस जाव विचित्तेहिं तवोकम्मोहं अप्पाणं 15 भावेमाणे बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणिहिइ, २ मासियाए संलेहणाए सर्द्धि भत्ताई अणसणाए जाव छेएत्ता आलोइयपडिकंते समाहिपत्ते उड़े चंदिम जाव गेविज्जविमाणावाससयं वीईवइत्ता सव्वट्ठसिद्धे महाविमाणे देवत्ताए उववज्जिहिइ । तत्थ णं देवाणं अजहन्नमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । तत्थ £20 सुमंगलस्स वि देवस्स अजहन्नमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । से णं भंते, सुमंगले देवे ताओ देवलोगाओ जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव अंतं काहिइ॥ (सू० ५५९)
४८. विमलवाहणे णं भंते, राया सुमंगलेणं अणगारेणं सहए जाव भासरासकिए समाणे कहिं गच्छिाहइ, कहिं उववज्जिाहइ ? गोयमा, 25
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम् विमलवाहणे णं राया सुमंगलेणं अणगारेणं सहए जाव भासरसिाकए समाणे अहेसत्तमाए पुढवीए उक्कोसकालट्टिइयंसि नरयंसि नेरइयत्ताए उववजिहिइ। से णं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता मच्छेसु उववज्जिहिइ । से णं तत्थ सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चं 5पि अहेसत्तमाए पुढवीए उक्कोसकालट्टिइयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ । से णं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता दोच्चं पि मच्छेसु उववज्जिहिइ। तत्थ विणं सत्थवज्झे जाव किच्चा छट्ठीए तमाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिश्यंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ।
से णं तओहिंतो जाव उच्चट्टित्ता इत्थियासु उववज्जिहिइ । 10 तत्थ वि णं सत्थवज्झे दाह जाव दोच्चं पि छट्ठीए तमाए पुढवीए
उक्कोसकाल जाव उच्चट्टित्ता दोच्चं पि इत्थियासु उववज्जिहिइ । तत्थ वि णं सत्थवज्झे जाव किच्चा पंचमाए धूमप्पभाए पुढवीए उक्कोसकाल जाव उध्वट्टित्ता उरएसु उववज्जिहिइ । तत्थ वि णं
सत्थवज्झे जाव किच्चा दोच्चं पि पंचमाए जाव उध्वट्टित्ता दोच्च 15पि उरएसु उववज्जिहिइ जाव किच्चा चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए
उक्कोसकालट्ठिइयंसि जाव उज्वट्टित्ता सीहेसु उववज्जिहिइ । तत्थ वि णं सत्थवज्झे तहेव जाव किच्चा दोच्चं पि चउत्थीए पंक जाव उन्वाट्टत्ता दोच्चं पि सीहेसु उववज्जिहिइ जाव किच्चा तच्चाए वालुयप्पभाए पुढवीए उक्कोसकाल जाव उध्वट्टित्ता पक्खीसु उव20वज्जिहिइ। तत्थ विणं सत्थवज्झे जाव किच्चा दोच्चं पि तच्चाए वालुय जाव उध्वट्टित्ता दोच्चं पि पक्खीसु उववज्जिहिइ जाव किच्चा दोच्चाए सकरप्पभाए जाव उम्वट्टित्ता सिरीसवेसु उववज्जिहिइ । तत्थ वि णं सत्थ जाव किच्चा दोच्चं पि दोच्चाए सक्करप्पभाए जाव उन्वट्टित्ता दोच्चं पि सिरीसवेसु उववज्जिहिइ जाव किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसकालट्टियंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उव
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वज्जिहिइ जाव उध्वट्टित्ता सन्नीसु उववज्जिहिइ। तत्थ विणं सत्थवज्झे जाव किच्चा असन्नीसु उववज्जिहिइ। तत्थ वि णं सत्थवज्झे जाव किच्चा दोच्चं पि इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पलिओवमस्स असंखेज्जइभागट्टिइयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ । से णं तओ जाव उवट्टित्ता जाई इमाई खहयरविहाणाई भवंति, तं जहा 5 चम्मपक्खीणं, लोमपक्खीणं, समुग्गपक्खीणं, विययपक्खीणं, तेसु अणेगसयसहस्सक्खुत्तो उद्दाइत्ता २ तत्थेव २ भुज्जो २ पच्चायाहिए। सम्वत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्रतीए कालमासे कालं किच्चा जाई इमाई भुयपरिसप्पविहाणाई भवंति, तं जहा- गोहाणं, नउलाणं, जहा पन्नवणापए जाव जाहगाणं चउप्पाइयाणं, तेसु अणेगसयसहस्सखुत्तो 10 सेसं जहा खहचराणं जाव किच्चा जाई इमाई उरपरिसप्पविहाणाई भवंति, तं जहा- अहीणं, अयगराणं, आसालियाणं, महोरगाणं, तेसु अणेगसयसहस्स जाव किच्चा जाइं इमाइं चउप्पदविहाणाई भवंति, तं जहा-एगखुराणं, दुखुराणं, गंडीपदाणं, सणहपदाणं, तेसु अणेगसयसहस्स जाव किच्चा जाई इमाइं जलयरविहाणाई भवंति, तं जहा-15 मच्छाणं, कच्छभाणं जाव सुंसुमाराणं, तेसु अणेगसयसहस्स नाव किच्चा जाई इमाई चउरिदियविहाणाई भवंति, तं जहा- अंधियाणं, पोत्तियाणं, जहा पनवणापए जाव गोमयकीडाणं, तेसु अणेगसय जाव किच्चा, जाइं इमाई तेइंदियविहाणाई भवंति, तं जहा- उवचियाणं जाव हत्थिसोंडाणं, तेसु अणेग जाव किच्चा जाई इमाई बेइंदिय- 20 विहाणाई भवंति, तं जहा-पुलाकिमियाणं नाव समुद्दलिक्खाणं, तेसु अणेगसय जाव किच्चा, जाई इमाइं वणस्सइविहाणाई भवंति, तं जहारुक्खाणं गुच्छाणं आव कुहणाणं, तेसु अणेगसय जाव पञ्चायाइस्सइ । उस्सन्नं च णं कडुयरुक्खेसु कडुयवल्लीसु, सव्वत्थ वि णं सत्थवज्झे जाव किच्चा, जाई इमाई वाउक्काइयविहाणाई भवंति, तं जहा- पाईण-25
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम् वायाणं जाव सुद्धवायाणं, तसु अणेगसयसहस्स जाव किच्चा जाई इमाई तेउक्काइयविहाणाई भवंति, तं जहा- इंगालाणं जाव सूरकंतमणिनिस्सियाणं, तेसु अणेगयसहस्सं जाव किच्चा जाई इमाई आउक्काइयविहाणाई भवंति, तंजहा-उस्साणं जाव खातोदगाणं तेसुअणगसय जाव 5 पञ्चायाइस्सइ । उस्सन्नं च णं खारोदएसु, खातोदएसु; सव्वत्थ विणं
सत्थवज्झे जाव किच्चा जाइं इमाई पुढविक्काइयविहाणाई भवंति, तं जहा- पुढवीणं सक्कराणं जाव सूरकंताणं, तेसु अणेगसय जाव पञ्चाया.हिइ। उस्सन्नं च णं खरबायरपुढविक्काइएतु, सम्वत्थ वि णं सत्थवज्झे
जाव किच्चा रायगिहे नयरे बाहिं खरियत्ताए उववज्जिहिइ । तत्थ 10 वि णं सत्थवज्झे जाव किच्चा दोच्चं पि रायगिहे नयरे अंतो खरियत्ताए
उववज्जिहिइ। तत्थ वि णं सत्थवज्झे जाव किच्चा इहेव जंबुद्दीधे दीवे भारहे वासे विंझगिरिपायमूले बेभेले संनिवेसे माहणकुलंसि दारियत्ताए पच्चायाहिइ । तए णं तं दारियं अम्मापियरो उम्मुक्कबाल
भावं जोव्वणगमणुप्पत्तं, पडिरूवएणं सुक्केणं, पडिरूवएणं विणएणं, 15 पडिरूवयस्स भत्तारस्स भारियत्ताए दलइस्संति। सा णं तस्स भारिया
भविस्सइ इट्ठा कंता जाव अणुमया, भंडकरंडगसमाणा, तेल्लकेला इव सुसंगोविया, चेलपेडा इव सुसंपरिग्गहिया, रयणकरंडओ विव सुसारक्खिया, सुसंगोविया, मा णं सीयं, मा णं उण्हं जाव परिस्सहोवसग्गा फुसंतु। तए णं सा दारिया अन्नया कयाइ गुम्विणी 20 ससुरकुलाओ कुलघरं निज्जमाणी अंतरा दवग्गिजालाभिहया कालमासे कालं किच्चा दाहिणिल्लेसु अग्गिकुमारेसु देवेसु देवत्ताए उववज्जिहि ॥
४९. से णं तओहिंतो अणंतरं उव्वट्टित्ता माणुस्सं विग्गहं लाभहिइ, २ केवलं बोहिं बुज्झिहिइ, २ मुंडे भवित्ता अगाराओ 25 अणगारियं पच्वइहिइ । तत्थ वि य णं विराहियसामण्णे कालमासे
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पन्नरसमं सयं
कालं किच्चा दाहि णिल्लेसु असुरकुमारेसु देवेसु देवत्ताए उववज्जिहिइ । से णं तओहिंतो जाव उव्वट्टित्ता माणुसं बिग्गहं तं चेव जाव तत्थ विणं विराहियसामण्णे कालमासे जाव किच्चा दाहिणिल्लेसु नागकुमारेसु देवेषु देवत्ताए उववज्जिहिइ । से णं तओहिंतो अनंतर, एवं एएणं अभिलावेणं दाहिणिल्लेसु सुवण्णकुमारेस, एवं विज्जु- 5 कुमारेसु एवं अग्गिकुमारवज्जं जाव दाहिणिल्लेसु थणियकुमारेसु । से णं तओ जाव उव्वट्टित्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिइ जाव विराहियसामण्णे जोइसिएसु देवेसु उववज्जिहिइ । से णं तओ अनंतरं चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिइ जाव अविराहिय सामण्णे कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववज्जिहिइ । से णं- 10 तओहिंतो अनंतरं चयं चइत्ता माणुस्सं विग्गहं लभिहिइ, केवलं वोहिं बुज्झिहि, तत्थ वि णं अविराहियसामण्णे कालमासे कालं किच्चा ईसाणे कप्पे देवत्ताए उववज्जिहि । से णं तओ चइत्ता माणुस्सं विग्गहं अभिहिइ । तत्थ वि णं अविराहियसामण्णे कालमासे कालं किच्चा सकुमारे कप्पे देवत्ताए उववज्जिहिइ । से णं तओहितो एवं जहा सणकुमारे तहा बंभलोए, महा सुक्के, आणए, आरणे । से णं तओ जाव अविराहियसामण्णे कालमासे कालं किञ्चा सत्वसिद्धे महाविमाणे देवत्ताए उववज्जिहिइ । से णं तओहिंतो अनंतरं चयं चत्ता महाविदेहे वासे जाई इमाई कुलाई भवंति - अड्डाई जाव अपरिभूयाई, तहप्पगारेसु कुलेसु पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ | 20 एवं जहा उववाइए दढप्पइन्नवत्तव्वया स च्चेव वत्तव्वया निरवसेसा भाणियव्वा जाव केवलवरनाणदंसणे समुप्पज्जिहि ॥
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५०. तए णं से दढप्पइने केवली अप्पणो तीअद्धं आभोएहिइ, २ समणे निग्गंथे सहावेहिइ, २ एवं वइहिइ - ' एवं खलु अहं अज्जो, इओ चिराईयाए अद्धाए गोसाले नामं मंखलिपुत्ते होत्था, 25
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श्रीमद्भगवती सूत्रम्
समणघायए जाव छउमत्थे चेव कालगए । तम्मूलगं च णं अहं अज्जो, अणाईयं अणाईयं अणवदग्गं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकंतारं अणुपरियट्टिए । तं मा णं अज्जो तुब्भं केइ भवउ आयरियपडिणीयए, उवज्झायपडिणीए, आयरियउवज्झायाणं अयसकारण अवण्णकारए 5 अकित्तिकारए । मा णं से वि एवं चेव अणाईयं अणवद्ग्गं जाव संसारकंतारं अणुपरियट्टिहिइ जहा णं अहं । तए णं ते समणा निग्गंथा दृढप्पइन्नस्स केवलिस्स अंतियं एयमट्ठे सोच्चा निसम्म भीया तत्था तसिया संसारभउव्विग्गा दृढप्पइन्नं केवलिं वंदिहिंति नमसिहिंति, २ तस्स ठाणस्स आलोइए हिंति निंदिहित जाव पडिवज्जिर्हिति । तए णं 10 से दृढप्पइन्ने केवली बहूई वासाई केवलपरियागं पाउणिहिइ, २ अप्पणो आउसेसं जाणेत्ता भत्तं पच्चक्खाहिइ, एवं जहा उववाइए जाव सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ॥ ( सू० ५६० )
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'सेवं भंते! सेवं भंते ' त्ति जाव विहरइ ॥ तेयनिसग्गो समत्तो ।
समत्तं च पन्नरसमं सयं एक्कसरयं ॥
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम् । ( व्याख्याप्रज्ञप्तिः ) अथ पञ्चदशं गोशालकाख्यं शतकम् । श्रीमच्चन्द्रकु लाम्बर नभोमणिश्रीमदभयदेवसूरिप्रणीता वृत्तिः ॥ १५ गोशालकशते षदिशाचरसमागम: - सूत्रं ५३९
व्याख्यातं चतुर्दशशतम्, अथ पञ्चदशमारभ्यते । तस्य चायं पूवर्णे सह अभिसम्बन्धः— अनन्तरशते केवली रत्नप्रभादिकं वस्तु जानाति इत्युक्तं, तत्परिज्ञानं च आत्मसम्बन्धि यथा भगवता श्रीमन्महावीरेण गौतमाय आविर्भावितं गोशालकस्य स्वशिष्याभासस्य नरकादिगतिं अधिकृत्य तथा अनेन उच्यते इति एवंसम्बन्धस्य अस्य इदं आदिसूत्रम् :
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'तेण' मित्यादि, 'मंखलिपुत्ते ' त्ति मङ्खल्यभिधानमङ्खस्य पुत्रः ' चडवीसवासपरियाए 'त्ति चतुर्विंशतिवर्षप्रमाणप्रव्रज्यापर्यायः, 'दिसाचर' त्ति दिशं - मेरां चरन्ति — यान्ति मन्यन्ते भगवतो वयं शिष्या इति दिक्चर : देशाटा वा, दिक्चरा भगवच्छिष्याः पार्श्वस्थीभूता इति टीकाकारः, 'पासावचिचज्ज' त्ति चूर्णिकारः, 'अंतियं पाउब्भविज्ज' त्ति समीपमागताः, ॐ 'अट्ठविहं पुव्वगयं मग्गदसमं 'ति अष्टविधम् - अष्टप्रकारं निमित्तमिति शेषः, तच्चेदं-दिव्यं१ औत्पातंर आन्तरिक्षं ३ भौमं४ आङ्गं५ स्वरं६ लक्षणं७ व्यञ्जनंट चेति, पूर्वगतं – पूर्वाभिधानश्रुत विशेषमध्यगतं, तथा मार्गौ - गीत मार्ग नृत्यमार्गलक्षणी सम्भाव्येते, ‘दसम 'शत्त अत्र नवमशब्दस्य लुप्तस्य दर्शनानवमदशमाविति दृश्यं, ततश्च मार्गौ नवमदशमौ यत्र तत्तथा, ' साह' २ स्वकैः २ स्वकीयैः २ 10 ' मइदंसणेहिं ' ति मतेः बुद्धेर्मत्या वा दर्शनानि - प्रमेयस्य परिच्छेदनानि मति - दर्शनानि तै:, निज्जूर्हति' त्ति निर्यथयन्ति पूर्वलक्षणश्रुतपर्याय यूथान्निर्धारयन्ति
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श्रीमद्भगवती सूत्रम्
उद्धरन्तीत्यर्थः, 'उवट्टाइंसु ' त्ति उपस्थितवन्तः आश्रितवन्त इत्यर्थः, < अट्ठगस्स ' त्ति अष्टभेदस्य, ' केणइ ' त्ति केनचित् - तथाविधजना विदितस्वरूपेण, ‘उल्लोयमेत्तेणं 'ति उद्देशमात्रेण, 'इमाई छ अणइक्कमणिज्जाईं ' ति इमानि षड् अनतिक्रमणीयानि - व्यभिचारयितुमशक्यानि, 'वागरणाई 'ति 5 पृष्टेन सता यानि व्याक्रियन्ते - अभिधीयन्ते तानि व्याकरणानि पुरुषार्थोपयोगित्वाच्चैतानि षडुक्तानि, अन्यथा नष्टमुष्टिचिन्तालूकाप्रभृतीन्यन्यान्यपि बहूनि अजिनः निमित्तगोचरीभवन्तीति ॥ ' अजिणे जिणप्पल्लावित्ति अवीतरागः सन् जिनमात्मानं प्रकर्षेण लपतीत्येवंशीलो जिनप्रलापी, एवमन्यान्यपि पदानि वाच्यानि, नवरम् अर्हन् – पूजार्हः, केवली - परिपूर्णज्ञानादिः, किमुक्तं 10 भवति ? - ' अजिणे ' इत्यादि । (सू. ५३९ )
१५ गोशालकशते गोशालकोत्थानपरियानिकम सू. ५४०
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' एवं जहा बियसए नियंहुद्देसए' त्ति द्वितीयशतस्य पञ्चमोद्देश के ' उट्ठाणपरियाणियं ' ति परियानं - विविध व्यतिकरपरिगमनं तदेव पारियानिकं— चरितम् उत्थानात् — जन्मन आरभ्य पारियानिकं उत्थानपारियानिकं तत्परिकथितं भगवद्भिरिति गम्यते । 'मंखे 'त्ति मङ्खः — चित्रफलकव्ययकरः भिक्षाकविशेषः, 'सुकुमाल' इह यावत्करणादेवं दृश्यं - 'सुकुमालपाणिपाए लक्खणवंजणगुणोववेए ' इत्यादि । ' रिद्धत्थिमिय ' इह यावत्करणादेव दृश्यम् -- ‘रिद्धत्थिमियसमिद्धे पमुइयजण जाणवए' इत्यादि, व्याख्या तु पूर्ववत्, ‘चित्तफलगहत्थगए ' त्ति चित्रफलकं हस्ते गतं यस्य स तथा, 20‘पाडिएक्कं’ ति एकमात्मानं प्रति प्रत्येकं पितुःफलकाद्भिन्नमित्यर्थः। (सू. ५४०) श्रीवीरेण गोशालसंगम : - सू. ५४१
अगारवासमज्झे वसित्त ' त्ति अगारवासं - गृहवासमध्युष्य - आसेव्य, 'एवं जहा भावणाए' त्ति आचारद्वितीयश्रुतस्कन्धस्य पञ्चदशेऽध्ययने,
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पञ्चदशं गोशालकाख्यं शतकम्
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अनेन चेदं सूचितं - 'समत्तपइने नाहं समणो होहं अम्मापियरंमि जीवंते ' त्ति समाप्ताभिग्रहः इत्यर्थः, ' चिच्चा हिरण्णं चिच्चा सुवण्णं चिच्चा बलं ' इत्यादीनि, ' पढमं वासं' ति विभक्तिपरिणामात् प्रव्रज्याप्रतिपत्तेः प्रथमे वर्षे, 'निस्साए ' त्ति निश्राय निश्रां कृत्वेत्यर्थः, ' पढमं अंतरावासं ' ति विभक्तिपरिणामादेव प्रथमेऽन्तरं अवसरो वर्षस्य - वृष्टेर्यत्रासावन्तरवर्षः, अथवाऽन्तरेऽपि - जिगमिषत क्षेत्रमप्राप्यापि यत्र सति साधुभिरवश्यमावासो विधी - यते सोऽन्तरावासो - वर्षाकालस्तत्र, 'वासावासं ' ति वर्षासु वासः चातुर्मासिकमवस्थानं वर्षावासस्तमुपागतः - उपाश्रितः । ' दोच्चं वासं ' ति द्वितीये वर्षे, ' तंतुवायसाल ' त्ति कुविन्दशाला, 'अंजलिमउलियहत्थे ' त्ति अअलिना मुकुलितौ – मुकुलाकारौ कृतौ हस्तौ येन स तथा, 'दव्वसुद्धेणं' ति द्रव्यं - ओदनादिकं शुद्धं - उद्गमादिदोषरहितं यत्र दाने तत्तथा तेन, 'दायगसुद्धेणं' ति दायकः शुद्धो यत्राशंसादिदोषरहितत्वात् तत्तथा तेन, एवमितरदपि, 'तिविहेणं' ति उक्तलक्षणेन त्रिविधेन, अथवा त्रिविधेन कृतकारितानुमतिभेदेन त्रिकरणशुद्धेन - मनोवाक्कायशुद्धेन, 'वसुहारा बुटु' त्ति वसुधारा - द्रव्यरूपा धारा वृष्टा, 'अहो दाणं' ति अहोशब्दो विस्मये, 'कयत्थे णं' ति कृतार्थःकृतस्वप्रयोजनः, 'कयलक्खणे' त्ति कृतफलवलक्षण इत्यर्थः, 'कया णं लोग' त्ति कृतौ शुभफली अवयवे समुदायोपचारात् लोकौ - इहलोक परलोकी, 'जम्मजीवियफले' त्ति जन्मनो जीवितव्यस्य च यत्फलं तत्तथा, 'तहारूवे साहु 'साहुरूवे 'ति तथारूपे तथाविधे अविज्ञातवताविशेष इत्यर्थः, 'साधौ ' श्रमणे " साधुरूपे ' साध्वाकारे, 'धम्मंतेवासि ' त्ति शिल्पादिग्रहणार्थमपि शिष्यो भवतीत्यत उच्यते—धर्मान्तेवासी, 'खज्जगविहीए' त्ति खण्डखाद्यादिलक्षण - 20 भोजनप्रकारेण, 'सव्वकामगुणिएणं ' ति सर्वे कामगुणाः - अभिलाषविषयभूता रसादयः सञ्जाता यत्र तत्सर्वकामगुणितं तेन, 'परमन्त्रेणं' ति परमानेन
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श्रीमद्भगवर्तासूत्रम् क्षरेय्या, 'आयामेत्थ' त्ति आचामितवान्, तद्भोजनदानद्वारेणोच्छिष्टतासम्पादनेन तन्छु द्धयर्थमाचमनं कारितवान् भोजितवानिति तात्पर्यार्थः। सब्भितरबाहिरिए 'त्ति सहाभ्यन्तरेण विभागेन बाह्येन च यत्तत्तथा तत्र, 'मग्गणगवेसणं' ति अन्वयतो मार्गणं व्यतिरेकतो गवेषणं ततश्च समाहारद्वन्दः, 5'सुई व' त्ति श्रूयत इति श्रुतिः-शब्दस्तां, चक्षुषा किल दृश्यमानोऽर्थः शब्देन निश्चीयत इति श्रुतिग्रहणं, 'खुइं व' त्ति क्षवणं क्षुतिः- छीत्कृतं ताम्, एषाऽप्यदृश्यमनुष्यादिगामका भवतीति गृहीता, 'पवात्तं व ' त्तिं प्रवृत्ति- वार्ती, 'साडियाओ' त्ति परिधानवस्त्राणि, 'पाडियाओ' त्ति उत्तरीयवस्त्राण,
क्वचित् 'भंडियाओ' त्ति दृश्यते तत्र भण्डिका-रन्धनादिभाजनानि, 1'माहणे आयामेइ' त्ति शाटिकादीनान् ब्राह्मणान् लम्भयति, शाटिकादीन् "ब्राह्मणेभ्यो ददातीत्यर्थः, 'सउत्तरोटुं' ति सह उत्तरौष्ठेन सोत्तरौष्ठं-सश्मश्रुकं यथा भवतीत्येवं, ' मुंडं ' ति मुण्डनं कारयति नापितेन, 'पणियभूमीए' त्ति पणितभूमौ-भाण्डविश्रामस्थाने, प्रणीतभूमौ वा- मनोज्ञभूमौ, 'अभिसमनाएगए' त्ति मिलितः, 'एयमढें पडिसुणेमि' त्ति अभ्युपगच्छामि, ..यच्चैतस्यायोग्यस्याप्यभ्युपगमनं भगवतस्तदक्षीणरागतया परिचयेनेषत्स्नेहगर्भा
नुकम्पासद्भावात् छद्मस्थतयाऽनागतदोषानवगमादवश्यंभावित्वाच्चैतस्यार्थस्येति भावनीयामिति। पणियभूमीए 'त्ति पणितभूमेरारभ्य प्रणीतभूमौ वा-मनोज्ञभूमौ विहृतवानिति योगः, 'अणिच्चजागरियं' ति अनित्यचिन्तां कुर्वनिति वाक्यशेषः । ( सू. ५४१)
तिलस्तम्बाधिकारः- सू.५४२ 20
'पढमसरयकालसमयंसि 'त्ति समयभाषया मार्गशीर्षपौषौ शरदभिधीयते, तत्र प्रथमशरत्कालसमये मार्गशीर्षे, 'अप्पवुट्टिकायंसि'त्ति अल्पशब्दस्य अभाववचनत्वादविद्यमानवर्ष इत्यर्थः, अन्ये तु अश्वयुक्कार्तिको शरदित्याहुः,
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51,
पञ्चदशं गोशालकाख्यं शतकम् अल्पवृष्टिकायत्वाच्च तत्रापि विहरतां न दूषणमिति, एतच्चासङ्गतमेव, भगवतोऽ प्यवश्यं पर्युषणस्य कर्त्तव्यत्वेन पर्युषणाकल्पेऽभिहितत्वादिति ।: 'हरियगरेरिज्जमाणे' त्ति हरितक इतिकृत्वा, 'रेरिज्जमाणे' त्ति अतिशयेन राजमान इत्यर्थः । 'तए णं अहं गोयमा ! गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासि' त्ति, इह यद्भगवतः पूर्वकालप्रतिपन्नमौनाभिग्रहस्यापि प्रत्युत्तरदानं तदेकादिकं 5 वचनं मुत्कलमित्येवमभिग्रहणस्य संभाव्यमानत्वेन न विरुद्धमिति, 'तिलसंगलियाए' त्ति तिलफलिकायां, 'ममं पणिहाए' त्ति मां प्राणिधाय -मामाश्रित्यायं मिथ्यावादी भवत्वितिविकल्पं कृत्वा, ‘अब्भवद्दलए' त्ति अभ्ररूपं वारो-जलस्य दलिकं-कारणमभ्रवादलकं, 'पतणतणायइ' त्ति प्रकर्षण तणतणायते गर्जतीत्यर्थः, ' नच्चोदगं' ति नात्युदकं यथा भवति, 19 'नाइमट्टियं' ति नातिकद्देमं यथा भवतीत्यर्थः, 'पविरलपप्फुसियं' ति प्रविरलाः प्रस्पृशिकाः- विपुषो यत्र तत्तथा, 'रयरेणुविणासणं' ति रजोवातोत्पाटितं व्योमवर्ति, रेणवश्च-भूमिस्थितपांशवस्तविनाशनं–तदुपशमकं, 'सलिलोदगवासं' ति सलिला:-शीतादिमहानद्यस्तासामिव यदुदकं-रसादिगुणसाधयादिति तस्य यो वर्षः स सलिलोदकवर्षोऽतस्तं, ' बद्धमूले 'त्ति 15 बद्धमूलः सन्, 'तत्थेव पइट्टिए' त्ति यत्र पतितस्तत्रैव प्रतिष्ठितः। (सू. ५४२) सू. ५४३-४६ वैश्यायनतेजोलेश्या। पउदृपरिहारः। तेजोलेश्या,
वीरोपर्यमर्षः। 'पाणभूयजीवसत्तदयट्टयाए' त्ति प्राणादिषु सामान्येन या दया सैवार्थः प्राणादिदयार्थस्तद्भावस्तत्ता तया, अथवा षट्पदिका एव प्राणानामुच्छ्रासादीनां 20 भावात् प्राणाः भवनधर्मकत्वाद्भूताः उपयोगलक्षणत्वाज्जीवाः सत्त्वोपपेतत्वात्सत्त्वा- . स्ततः कर्मधारयस्तदर्थतायै, चशब्दः पुनरर्थः, 'तत्थेव' त्ति शिरःप्रभृतिके,
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम् 'किं भवं मुणी मुणिए ' त्ति, किं भवान् ‘मुनिः' तपस्वी जातः, मुणिए। त्ति ज्ञाते तत्त्वे सति ज्ञात्वा वा तत्त्वम् , अथवा किं भवान् ‘मुनी ' तपस्विनी, 'मुणिए ' त्ति मुनिकः- तपस्वीति, अथवा किं भवान् ‘मुनिः' यतिः उत 'मुणिकः' ग्रहगृहीतः, 'उदाहु' त्ति उताहो इति विकल्पार्थो निपातः, 5 जूयासेज्जायरए' त्ति यूकानां स्थानदातेति, 'सत्तट्ट पयाइं पच्चोसक्का' त्ति प्रयत्नविशेषार्थमुरभ्र इव प्रहारदानार्थमिति, 'सीउसिणं तेयलेस्सं' ति स्वां -स्वकीयामुष्णां तेजोलेश्यां, ‘से गयमेयं भगवं गयगयमेवं भगवं' ति अथ गतं-अवगतमेतन्मया हे भगवन् ! यथा भगवतः प्रसादादयं न दग्धः, सम्भ्रमार्थत्वाच्च गतशब्दस्य पुनः पुनरुच्चारणं, इह च यद्गोशालकस्य संरक्षणं भगवता 10 कृतं तत्सरागत्वेन दयैकरसत्वाद्भगवतः, यच्च सुनक्षत्रसर्वानुभूतिमुनिपुङ्गवयोर्न
करिष्यात तद्वीतरागत्वेन लब्ध्यनुपजीवकत्वादवश्यंभाविभावत्वाद्वेत्यवसेयमिति । 'संखित्तविउलतेयलेसे' त्ति सङ्क्षिप्ताऽपयोगकाले, विपुला प्रयोगकाले तेजोलेश्या-लब्धिविशेषो यस्य स तथा, 'सनहाए' त्ति सनखया यस्यां पिण्डिकायां बद्धयमानायामङ्गुलीनखा अङ्गुष्ठस्याधो लगन्ति सा सनखेत्युच्यते, 15 'कुम्मासपिडियाए' त्ति कुल्माषाः- अर्द्धस्विन्ना मुद्गादयो माषा इत्यन्ये,
'वियडासएणं' ति विकटं-जलं तस्याशयः आश्रयो वा-स्थानं विकटाशयो विकटाश्रयो वा तेन, अमुंच प्रस्तावाच्चुलुकमाहुर्वृद्धाः, 'जाहे य मो'त्ति यदा च स्मो-भवामो वयं, 'अनिप्फन्नमेव ' त्ति मकारस्यागंमिकत्वादनिष्पन्न एव । 'वणस्सइकाइयाओ पउदृपरिहारं परिहरंति' त्ति परिवृत्य २-मृत्वा २ 20 यस्तस्यैव वनस्पतिशरीरस्य परिहार:-परिभोगस्तत्रैवोत्पादोऽसौ परिवृत्य. - परिहारस्तं परिहरन्ति-कुर्वन्तीत्यर्थः, 'खुड्डुइ' त्ति त्रोटयति, ‘पउद्दे' त्ति परिवर्त्तः परिवर्त्तवादः इत्यर्थः, 'आयाए अवक्कमणे' त्ति आत्मनाऽऽदाय चोपदेशम्, 'अपक्रमणम् ' अपसरणं, 'जहा सिवे' त्ति शिवराजर्षिचरिते,
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पञ्चदशं गोशालकाख्यं शतकम्
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' महया अमरिस' त्ति महान्तममर्षम् ' एवं वावि 'ति एवं चेति प्रज्ञापकोपदर्श्यमानकोपचिह्नम्, अपीति समुच्चये । (सू. ५४३-४६ )
सू. ५४७ - ४९ – आनन्दाय गोशालोक्तो वणिग्दृष्टान्तः । तेजः शक्तिः । नोदनानिषेधः ।
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महं उवमियं ' ति मम सम्बन्धि महद्वा विशिष्टं - औपम्यमुपमा दृष्टान्तः 5 इत्यर्थः, ' चिराईयाए अद्धाए ' त्ति चिरमतीते काले, 'उच्चावय ' त्ति उच्चावचा-उत्तमानुत्तमाः, ' अत्थत्थि ' त्ति द्रव्यप्रयोजनाः, कुत एवम् ? इत्याह-' अत्थलुद्ध ' त्ति द्रव्यलालसाः, अत एव ' अत्थगवेसिय ' त्ति, अर्थगवेषिणोऽपि कुत इत्याह- ' अत्थकंखिय ' त्ति प्राप्तेऽप्यर्थेऽविच्छिन्नेच्छाः, ' अत्थपिवासिय ' त्ति अप्राप्तार्थविषयसआत तृष्णाः, यत एवमत एवाह - 10 ' अत्थगवेसणयाए ' इत्यादि, 'पणियभंडे ' त्ति पणितं - व्यवहारस्तदर्थं भाण्डं, पणितं वा-क्रयाणकं तद्रूपं भाण्डं न तु भाजनमिति पणितभाण्डं, ' सगडींसागडेणं ' ति शकट्यो - गन्त्रिकाः, शकटानां गन्त्रीविशेषाणां समूहः शाकटं, ततः समाहारद्वन्द्वोऽतस्तेन, 'भत्तपाणपत्थयणं' ति भक्तपानरूपं यत्पथ्यदनं— शम्बलं तत्तथा, ' अगामियं' ति अग्रामिकां अकामिकां वाअनभिलाषविषयभूताम्, 'अणोहियं' ति अविद्यमानजलौधिकामतिगहनत्वेना विद्यमानोहां वा, ‘छिन्नावायं त्ति व्यवच्छिन्नसार्थघोषायापातां, 'दहिमद्धं ति दीर्घमार्गी दीर्घकालां वा 'किन्हं किन्होंभासं' इह यावत्करणादिदं दृश्यं - 'नीलं नीलोभासं हरियं हरिओभासं' इत्यादि, व्याख्या चास्य प्राग्वत्, 'महेगं वम्मीयं 'ति महान्तमेकं वल्मकिं, 'वप्पुओ' त्ति वपूंषि - 20 शरीराणि शिखराणत्यिर्थः, 'अब्भुग्गयाओ' त्ति अभ्युद्गतान्यभ्रोद्गतानि वोच्चानीत्यर्थः, ' अभिनिसढाओ ' त्ति अभिविधिना निर्गताः सटा:तदवयवरूपाः केशरिस्कन्धसटावद् येषां तान्यभिनिःशटानि, इदं च तेषां
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम् - ऊर्ध्वगतं स्वरूपं अथ निर्यगाह- 'तिरियं सुसंपग्गहियाओ' त्ति 'सुसंप्रगृहीतानि' सुसंवृतानि नातिविस्तीर्णानीत्यर्थः, अधः किंभूतानि ? इत्याह-'अहे पन्नगद्धरूवाओ'त्ति सर्पार्द्धरूपाणि यादृशं पन्नगस्योदरच्छिन्नस्य पुच्छत ऊर्वीकृतमर्द्धमधो विस्तीर्णमुपर्युपरि चातिश्लक्ष्णं भवतीत्येवं रूपं येषां तानि 5 तथा, पन्नगार्द्धरूपाणि चर्वणादिनाऽपि भवन्तीत्याह-पन्नगद्धसंठाणसंठियाओ'त्ति भावितमेव। 'ओरालं उदगरयणं आसाइस्सामो'त्ति अस्यायमभिप्रायः-एवंविधभूमिगर्ने किलोदकं भवति वल्मीके चावश्यंभाविनो गर्ताः, अतः शिखरभेदे गतः प्रकटो भविष्यति तत्र च जलं भविष्यतीति, 'अच्छं' ति निर्मलं, 'पत्थं' ति पथ्यं-रोगोपशमहेतुः, 'जच्चं'ति जात्यं संस्काररहितं, 10 'तणुयं' ति तनुकं सुजरमित्यर्थः, 'फालियवण्णाभं' ति स्फटिकवर्णवदाभा यस्य तत्तथा, अत एव 'ओरालंति प्रधानम्, 'उदगरयणं' ति उदकमेव रत्नमुदकरत्नं उदकजातौ तस्योत्कृष्टत्वात्, 'वाहणाई पज्जति' त्ति बलीव दिवाहनानि पाययन्ति, · अच्छं' ति निर्मलं,
'जच्चं' ति अकृत्रिमं, 'तावणिज्जं' ति तापनीयं तापसहं, 'महत्थं ति 15 महाप्रयोजनं, 'महरचं' ति महामूल्यं, 'महरिहं ' ति महतां योग्य, 'विमलं'
ति विगतागन्तुकमलं, 'निम्मलं' ति स्वाभाविकमलरहितं, 'नित्तलं ' ति निस्तलमतिवृत्तमित्यर्थः, 'निक्कलं' ति निष्कलं त्रासादिरत्नदोषरहितं, 'वहररयणं' ति वज्राभिधानरत्न, हियकामए' त्ति इह हितं-अपायाभावः, 'सुहकामए' त्ति सुखं-आनन्दरूपं, 'पत्थकामए ' त्ति पथ्यमिव पथ्यं-आनन्दकारणं वस्तु, 'आणुकंपिए' त्ति अनुकम्पया चरतीत्यानुकम्पिकः, 'निस्सेयसिए' त्ति (निःश्रेयसं यन्मोक्षमिच्छतीति नैःश्रेयसिकः, अधिकृतवाणिजस्योक्तैरेव गुणैः
कैश्चिद्युगपद्योगमाह - 'हिए' त्यादि, 'तं होउ अलाहि पज्जत्तं णे' त्ति, तत्- तस्माद् भवतु अलं पर्याप्तमित्येते शब्दाः प्रतिषेधवाचकत्वेनैकार्था आत्यन्तिकप्रतिषेधप्रतिपादनार्थमुक्ताः, 'णे' त्ति नः-अस्माकं, 'सउवसग्गा
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पञ्चदशं गोशालकाख्यं शतकम्
55 यावि' त्ति इह चापीति सम्भावनार्थः, 'उग्गविसं ति दुर्जरविषं, 'चंडविसं' ति दष्टकनरकायस्य झगिति व्यापकविषं, 'घोरविसं ' ति परम्परया पुरुषसहस्र-- स्यापि हननसमर्थविषं, 'महाविसं' ति जम्बूद्वीपप्रमाणस्यापि देहस्य व्यापनसमर्थविषम्, 'अइकायमहाकायं ति कायान् शेषाहीनामतिक्रान्तोऽतिकायोऽत एव महाकायस्ततः कर्मधारयः, अथवा अतिकायानां मध्ये महाकायोऽतिकाय-5 महाकायोऽतस्तं, 'मसिमूसाकालग' त्ति मषी-कज्जलं, मूषा च- सुवर्णादितापनभाजनविशेषस्ते इव कालको यः स तथा तं, 'नयणविसरोसपुण्णं' ति नयनविषेण-दृष्टिविषेण रोषेण च पूर्णो यः स तथा तम्, 'अंजणपुंजनिगरप्पगासं' ति अञ्जनपुआनां निकरस्येव प्रकाशो-दीप्तिर्यस्य स तथा तं; पूर्व कालवर्णत्वमुक्तमिह तु दीप्तिरिति न पुनरुक्ततोत, · रत्तच्छं । ति रक्ताक्षं-10 'जमलजुयलचंचलचलंतजीहं' ति, जमलं-सहवर्ति, युगलं-द्वयं, चञ्चलं यथा भवत्येवं चलन्त्योः - अतिचपलयोर्जिह्वयोर्यस्य स तथा तं, प्राकृतत्वाच्चै वं समासः, 'धरणितलवेणिभूयं ' ति धरणीतलस्य वेणीभूतो-वनिताशिरसः केशबन्धविशेष इव यः कृष्ण वदीर्घत्वश्लक्ष्णपश्चाद्भागत्वादिसाधात् स तथा तम् , ' उक्कडफुडकुडिलजडुलकक्खडवियडफडाडोवकरणदच्छं' ति 15 उत्कटो बलवताऽन्येनाध्वंसनीयत्वात्, स्फुटो-व्यक्तः प्रयत्नविहितत्वात्, कुटिलो-बक्रस्तत्स्वरूपत्वात्, जटिल:-स्कन्धदेशे केशरिणामिवाहीनां केसरसद्भावात्, कर्कशो निष्ठुरो बलवत्त्वात्, विकटो-विस्तीर्णा यः स्फटाटोपःफणासरम्भस्तत्करणे दक्षो यः स तथा तं, 'लोहागरधम्ममाणधमधमेंतघोसं' ति लोहस्येवाकरे ध्मायमानस्य- अमिना ताप्यमानस्य धमधमाय- 20 मानो-धमधमेतिवर्णव्यक्तिमिवोत्पादयन् घोषः-शब्दो यस्य स तथा तम् , 'अणागलियचंडतिव्वरोसं' ति अनिलितः-अनिवारितोऽनाकलितो वाऽप्रमेयश्चण्डः तीवो रोषो यस्य स तथा तं, ' समुहियतुरियचवलं धमंतं । ति शुनो मुखं श्वमुख तस्येवाचरणं श्वमुखिका- कौलेयकस्येव
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम् भषणं तां त्वरितं च चपलमतिचटुलतया धमन्तं- शब्दं कुर्वन्तमित्यर्थः, 'सरसरसरसरस्स' त्ति सर्पगतेरनुकरणम्, 'आइच्चं निज्झायइ ' त्ति
आदित्यं पश्यति दृष्टिलक्षणविषस्य तीक्ष्णताथै, ' सभंडमत्तोवगरणमायाय' त्ति सह भाण्डमात्रया-पणितपरिच्छदेन उपकरणमात्रया' च ये ते तथा,, 5'एगाहच्चं' ति एका एव आहत्या- आहननं प्रहारो यत्र भस्मीकरणे तदेकाहत्यं तद्यथा भवत्येवं, कथमिव ? इत्याह - 'कूडाहच्चं' ति कूटस्येवपाषाणमयमारणमहायन्त्रस्येवाहत्या- आहननं यत्र तत् कूटाहत्यं तद्यथा भवतीत्येवं, 'परियाए' त्ति पर्यायः-अवस्था, 'कित्तिवण्णसद्दसिलोग'
त्ति, इह वृद्धव्याख्या- सर्वदिग्व्यापी साधुवादः कीर्तिः, एकदिग्व्यापी वर्णः, 10 अर्द्धदिग्व्यापी शब्दः, तत्स्थान एव श्लोकः श्लाघेतियावत्, ‘सदेवमणुयासुरे
लोए 'त्ति सह देवैर्मनुजैरसुरैश्च यो लोको-जीवलोकः स तथा तत्र, 'पुवंति' त्ति ‘प्लवन्ते । गच्छन्ति, ‘ाङ्गतौ ' इति वचनात् , 'गुवंति ' ' गुप्यन्ति' व्याकुलीभवन्ति, 'गुप व्याकुलत्वे ' इति वचनात्, 'थुवंति' त्ति क्वचित्तत्र .
'स्तूयन्ते अभिष्ट्रयन्ते - अभिनन्द्यन्ते, क्वचित् परिभमन्तीति दृश्यते, व्यक्तं 15 चैतदिति, एतदेव दर्शयति —' इति खल्वि ' त्यादि, इतिशब्दः प्रख्यात
गुणानुवादनार्थः, 'तं' ति तस्मादिति निगमनं, 'तवेणं तेएणं' ति तपोजन्यं तेजस्तप एव वा तेन 'तेजसा' तेजोलेश्यया, 'जहा वा वालणं' ति यथैव 'व्यालेन' भुजगेन, 'सारक्खामि' त्ति संरक्षामि दाहभयात्, 'संगोवयामि' त्ति संगोपयामि क्षेमस्थानप्रापणेन । (सू. ५४७-४९)
20
सू. ५५० - परावृत्तपरिहारः । 'पभु' त्ति प्रभविष्णुगोशालको भस्मराशिं कर्तुम् ? इत्येकः प्रश्नः, प्रभुत्वं च द्विधा-विषयमात्रापेक्षया तत्करणतश्चोत पुनः पृच्छति-'विसए ण' मित्यादि, अनेन च प्रथमो विकल्पः पृष्टः, 'समत्थे ण' मित्यादिना तु द्वितीय इति, .
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पञ्चदशं गोशालकाख्यं शतकम् 'पारितावणियं' ति पारितापनिकी क्रियां पुनः कुर्यादिति । 'अणगाराणं' ति सामान्यसाधूनां, 'खंतिक्खम 'त्ति क्षान्त्या-क्रोधनिग्रहेण क्षमन्त इति क्षान्तिक्षमाः, 'थेराणं' ति आचार्यादीनां वयःश्रुतपर्यायस्थविराणाम् । 'पडिचोयणाए ' त्ति तन्मतप्रतिकूला चोदना कर्तव्यप्रोत्साहना प्रतिचोदना तया, 'पडिसाहरणाए' त्ति तन्मतप्रतिकूलतया विस्मृतार्थस्मारणा तया, 5 किमुक्तं भवति ?-'धम्मिएण' मित्यादि, 'पडोयारेणं ति प्रत्युपचारेण प्रत्युपकारेण वा, ‘पडोयारेउ' त्ति (प्रत्युपचारयतु ' प्रत्युपचारं करोतु, एवं प्रत्युपकारयतु वा, मिच्छं विपडिवन्ने' त्ति मिथ्यात्वं म्लेच्छ्यं वा-अनार्यत्वं विशेषतः प्रतिपन्न इत्यर्थः। 'सुटु णं' ति उपालम्भवचनम्, 'आउसो' त्ति हे आयुष्मन् !- चिरप्रशस्तजीवित ! 'कासव ' त्ति काश्यपगोत्रीय ! 10 'सत्तमं पउपरिहारं परिहरामि' त्ति सप्तमं शरीरान्तरप्रवेशं करोमीत्यर्थः, 'जोव आई' ति येऽपि च, 'आई' ति निपातः, 'चउरासीइं महाकप्पसयसहस्साई' इत्यादि गोशाल कसिद्धान्तार्थः स्थाप्यो, वृद्धैरप्यनाख्यातत्वात्, आह च चूर्णिकारः - संदिद्धत्ताओ तस्स सिद्धंतस्स न लक्खिज्जइ' ति, तथाऽपि शब्दानुसारेण किश्चिदुच्यते- चतुरशीति- 15 महाकल्पशतसहस्राणि क्षपयित्वति योगः, तत्र कल्पा:- कालविशेषाः, ते च लोकप्रसिद्धा अपि भवन्तीति तद्व्यवच्छेदार्थमुक्तं महाकल्पा वक्ष्यमाणस्वरूपास्तेषां यानि शतसहस्राणि-लक्षाणि तानि तथा, 'सत्त दिव्वे ' त्ति सप्त 'दिव्यान् । देवभवान् , 'सत्त संजूहे' त्ति सप्त संयूथान- निकायविशेषान्, 'सत्त सन्निगन्भे' त्ति सज्ञिगर्भान- मनुष्यगर्भवसतीः, एते च तन्मतेन 20 मोक्षगामिनां सप्तसान्तरा भवन्ति वक्ष्यति चैवैतान् स्वयमेवेति, ‘सत्त पउदृपरिहारे ' त्ति सप्त शरीरान्तरप्रवेशान्, एते च सप्तमसज्ञिगर्भानन्तरं क्रमेणावसेयाः, तथा पंचे' त्यादाविदं संभाव्यते, 'पंच कम्माणि सयसहस्साई' ति कर्मणि-कर्मविषये कर्मणामित्यर्थः, पञ्च शतसहस्राणि लक्षाणि, ‘तिनि
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम् य कम्मंसि' त्ति त्रीश्च कर्मभेदान् , “खवइत्त' त्ति 'क्षपयित्वा ' अतिवाह्य । ' से जहे ' त्यादिना महाकल्पप्रमाणमाह, तत्र ‘से जहा व ' त्ति महाकल्पप्रमाणवाक्योपन्यासार्थः, 'जहिं वा पज्जुवत्थिय' त्ति यत्र गत्वा परिसामस्त्येन उपस्थिता- उपरता समाप्ता इत्यर्थः, 'एस णं अद्ध ' ति एष ॐ गङ्गाया मार्गः, 'एएणं गंगापमाणेणं' ति गङ्गायास्तन्मार्गस्य चाभेदाद्गङ्गाप्रमाणेनेत्युक्तम्, 'एवामेव ' त्ति उक्तेनैव क्रमेण, 'सपुव्वावरेणं' ति सह पूर्वेण गङ्गादिना यदपरं महागङ्गादि तत् सपूर्वापरं तेन भावप्रत्ययलोपदर्शनात् सपूर्वापरतयेत्यर्थः। 'तासिं दुविहे ' इत्यादि, तासां गङ्गादीनां गङ्गादिगतवालुकाकणादीनामित्यर्थः, विविध उद्धारः उद्धरणीयद्वैविध्यात्, 'सुहुम10 बोंदिकलेवरे चेव ' त्ति सूक्ष्मबोन्दीनि-सूक्ष्माकारॊणि कलेवराणि-असङ्ख्यात
खण्डीकृतवालुकाकणरूपाणि यत्रोद्धारे स तथा, 'बायरबोंदिकलेवरे चेव' त्ति [ग्रन्थानम् १४००० ] बादरबोन्दीनि-बादराकाराण कलेवराणिचालुकाकणरूपाणि यत्र तथा, 'ठप्पे ' त्ति न व्याख्येयः, इतरस्तु व्याख्येय
इत्यर्थः, 'अवहाय ' त्ति अपहाय-त्यक्त्वा, ‘से कोटे' त्ति स कोष्ठो15 गङ्गासमुदायात्मकः, 'खीणे' त्ति क्षीणः, स चावशेषसद्भावेऽप्युच्यते,
यथा क्षीणधान्यं कोष्ठागारमत उच्यते, 'नीरए ' त्ति नीरजाः स च तद्भूमिगतरजसामप्यभावे उच्यते इत्याह-'निल्लेवे ' त्ति निर्लेपः, भूमिभित्त्यादिसश्लिष्ट. सिकतालेपाभावात् , किमुक्तं भवति ? 'निट्टिए ' त्ति निष्ठितः- निरवयवीकृत
इति, ‘सेत्तं सरे' त्ति अथ तत्तावत्कालखण्डं सरः-सरःसझं भवति 20 मानससझं सर इत्यर्थः, ‘सरप्पमाणे ' त्ति सर एवोक्तलक्षणं प्रमाणंवक्ष्यमाणमहाकल्पादेर्मानं सरःप्रमाणं, ‘महामाणसे' ति मानसोत्तरं, यदुक्तं चतुरशीतिर्महाकल्पशतसहस्रार्णाति तत्प्ररूपितम्, अथ सप्तानां दिव्यादीनां प्ररूपणायाह-'अणंताओ संजूहाओ' त्ति अनन्तजीवसमुदायरूपानिकायात् , 'चयं चइत्त 'त्ति च्यवं च्युत्वा - च्यवनं कृत्वा, चयं वा देहं, 'चहत्त 'त्ति
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पञ्चदशं गोशालकाख्यं शतकम् त्यक्त्वा, 'उवरिले' त्ति उपरितनमध्यमाधस्तनानां मानसानां सद्भावात् तदन्यव्यवच्छेदायोपरितने इत्युक्तं, 'माणसे' त्ति गङ्गादिपरूपणतः प्रागुक्तस्वरूपे सरसि सरःप्रमाणायुष्कयुक्ते इत्यर्थः, 'संजूहे' त्ति निकायविशेषे देवे, 'उववज्जइ' त्ति प्रथमो दिव्यभवः सज्ञिगर्भसङ्ख्यासूत्रोक्त एव, एवं त्रिषु मानसेषु संयूथेष्वाद्यसंयूथसहितेषु चत्वारि संयूथानि त्रयश्च देवभवाः, तथा 'मानसोत्तरे' 5 त्ति महामानसे पूर्वोक्तमहाकल्पप्रमितायुष्कवति, यच्च प्रागुक्तं चतुरशीतिं महाकल्पान् शतसहस्राणि क्षपयित्वेति तत्पथममहामानसापेक्षयेति द्रष्टव्यं, अन्यथा विषु महामानसेषु बहुतराणि तानि स्युरिति, एतेषु चोपरिमादिभेदात् त्रिषु मानसोत्तरेषु त्रीण्येव संयूथानि वयश्च देवभवाः, आदितस्तु सप्त संयूथानि षट् च देवभवाः, सप्तमदेवभवस्तु ब्रह्मलोके, स च संयूथं न भवति, सूत्रे संयूथत्वेनानभिहितत्वादिति, 10 'पाईणपडीणायए उदीणदाहिणवित्थिण्णे' त्ति इहायामविष्कम्भयोः स्थापनामात्रत्वमवगन्तव्यं, तस्य प्रतिपूर्णचन्द्रसंस्थानसंस्थितत्वेन तयोस्तुल्यत्वादिति, 'जहा ठाणपए ' त्ति ब्रह्मलोक स्वरूपं तथा वाच्यं यथा 'स्थानपदे'प्रज्ञापनाद्वितीयप्रकरणे, तच्चैवं-'पडिपुण्णचंदसंठाणसंठिए अच्चिमालीभासरासिप्पभे' इत्यादि । “असोगव.सए' इत्यत्र यावत्करणात् 15 'सत्तिवण्णवडेंसए चंपगवडेंसए चूयव.सएमज्झेय बंभलोयवडेंसए' इत्यादि दृश्यं, 'सुकुमालगभद्दलए' त्ति सुकुमारकश्चासौ भद्रश्च-भद्रमूर्तिरिति समासः, लकारककारौ तु स्वार्थिकाविति, 'मिउकुंडलकुंचियकेसए' त्ति मृदवः कुण्डलमिव-दर्भादिकुण्डलकमिव कुञ्चिताश्च केशा यस्य स तथा, 'मट्ठगंडतलकण्णपीढए' त्ति मृष्टगण्डतले कर्णपीठके–कर्णाभरणविशेषौ 20 यस्य स तथा, 'देवकुमारसप्पभए ' त्ति देवकुमारवत्सप्रभः देवकुमारसमानप्रभो वा यः स तथा, कशब्दः स्वार्थिक इति, ‘कोमारियाए पव्वज्जाए ' त्ति कुमारस्येयं कौमारी सैव कौमारिकी तस्यां प्रव्रज्यायां विषयभूतायां, सङ्ख्यानं-बुद्धिं पतिलेभ इति योगः, 'अविद्धकण्णए चेव' त्ति कुश्रुतिशलाकयाऽविद्धकर्णः
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम्
- अव्युत्पन्नमतिरित्यर्थः । ' एणेज्जस्से ' त्यादि, इहैणकादयः पञ्च नामतोऽ भिहिताः द्वौ पुनरन्त्यौ पितृनामसहिताविति । 'अलं थिरं ' ति अत्यर्थं स्थिरं विवक्षितकालं यावदवश्यंस्थायित्वात्, 'धुवं' ति ध्रुवं तद्गुणानां ध्रुवत्वात्, अत एव ' धारणिज्जं ' ति धारयितुं योग्यम्, एतदेव भावयितुमाह – 'सीए' 5 इत्यादि, एवंभूतं च तत् कुतः ? इत्याह- ' थिरसंघयणं' ति अविघटमानसंहननमित्यर्थः, 'इतिकडु' त्ति ' इतिकृत्वा ' इतिहेतोस्तदनुप्रविशामीति ।
(सू. ५५० )
10
सू. ५५१ - ५६ स्तेनदृष्टान्तः । आक्रोशः । तेजोलेश्यामोचनम् । गोशाल तेजोलेश्याशक्तिः चरमाष्टकमयंपुलागमश्च । सम्यक्त्वोत्पादः । तदुपासककृतं नीहरणम् ।
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' गड्डुं व' त्ति गर्तः श्वभ्रं, ' दारं ' ति शृगालादिकृतभूविवर विशेषं, 'दुग्गं ति दुःखगम्यं वनगहनादि, ' निन्नं ' ति निम्नं शुष्कसरःप्रभृति, ' पव्वयं व " त्ति प्रतीतं, 'विसमं' ति गर्तपाषाणादिव्याकुलम्, 'एगेण महं' ति एकेन महता 'तणसूण व ' त्ति ' तृणसूकेन' तृणायेण, 'अणावरिए 'त्ति अनावृतोऽ सावावरणस्याल्पत्वात्, 'उवलभसि' त्ति उपलम्भयसि दर्शयसीत्यर्थः, 'तं मा एवं गोसाल ' त्ति इह कुर्विति शेष:, ' नारिहास गोसाल ' त्ति इह चैवं कर्तुमिति शेष:, ' सच्चेव ते सा छाय' त्ति सैव ते छाया अन्यथा दर्शयितुमिष्टा छाया-प्रकृतिः । ' उच्चावयाहिं ' ति असमञ्जसाभिः, 'आउसणाहिं ' ति मृतोऽसि त्वमित्यादिभिर्वचनैः, 'आक्रोशयति ' शपति, 'उद्धंसणाहिं ' ति 20 दुष्कुलीनेत्यादिभिः कुलाद्यभिमानपातनार्थैर्वचनैः, 'उद्धंसेइ' त्ति कुलाद्यभिमानादुधः पातयतीव, 'निब्भंछणाहिं ' ति न त्वया मम प्रयोजनमित्यादिभिः परुषवचनैः, ' निब्र्भच्छेइ ' त्ति नितरां दुष्टमभिधत्ते, 'निच्छोडणाहिँ ' ति त्यजास्मदीयांस्तीर्थकरालङ्कारानित्यादिभिः, 'निच्छोडेइ' त्ति प्राप्तमर्थं
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त्याजयतीति, ' नङ्केसि कयाइ ' त्ति नष्टः स्वाचारनाशात्, 'असि ' भवसि त्वं, ' कयाइ ' ति कदाचिदिति वितर्कार्थः, अहमेवं मन्ये यदुत नष्टस्त्वमसीति, विणसि ' त्ति मृतोऽसि, ' भट्ठोसि ' त्ति भ्रष्टोऽसि - सम्पदः व्यपेतोऽसि त्वं धर्मत्रयस्य यौगपद्येन योगात् नष्टविनष्टभ्रष्टोऽसीति, ' नाहि ते ' त्ति नैव ते ।
4
' पाईणजाणवए' त्ति प्राचीनजानपदः प्राच्य इत्यर्थः, 'पव्वाविए ' त्ति 5 प्रव्राजितः शिष्यत्वेनाभ्युपगतः, ' अब्भुवगमो पवज्ज' त्ति वचनात्, 'मुंडाविए' त्ति मुण्डितस्य तस्य शिष्यत्वेनानुमननात्, 'सेहाविए' त्ति व्रतित्वेन सेधितः व्रतिसमाचारसेवायां तस्य भगवतो हेतुभूतत्वात्, 'सिक्खाविए ' त्ति शिक्षितस्तेजोलेश्याद्यपदेशदानतः, 'बहुस्सुईकए' त्ति नियतिवादादिप्रतिपत्तिहेतुभूतत्वात्, 'कोसलजाणवए' त्ति अयोध्यादेशोत्पन्नः । 'वाउक्कलियाई 10 व' त्ति वातोत्कलिका स्थित्वा २ यो वातो वाति सा वातोत्कलिका, 'वाय मंडलियाइ व' त्ति मण्डलिकाभिर्यो वाति, ' सेलंसि वा ' इत्यादौ तृतीयार्थे सप्तमी, ' आवरिज्जमाणि ' त्ति स्खल्यमाना, 'निवारिज्जमाणि ' त्ति निवर्त्त्यमाना, 'नो कमइ' त्ति न क्रमते - न प्रभवति, 'नो पक्कमइ ' त्ति न प्रकर्षेण क्रमते, ' अंचितांचि' ति अञ्चिते - सकृद्गते अञ्चितेन वा - सकृद्गतेन देशेनाञ्चिः - पुन- 15 र्गमनमञ्चिताञ्चिः, अथवाऽञ्या - गमनेन सह आञ्चिः - आगमनमञ्चयाञ्चिवर्गमागम इत्यर्थः, तां करोति, ‘अन्नाइट्ठे' त्ति 'अन्वाविष्टः' अभिव्याप्तः, ' सुहत्थि ' त्ति सुहस्तीव सुहस्ती, 'अहप्पहाणे जणे ' त्ति यथाप्रधानो जनो यो यः प्रधान इत्यर्थः, 'अगणिझामिए' त्ति अग्निना ध्मातो - दग्धो ध्यामितो वा ईषद्दग्धः, ' अगणिझूसिए' त्ति अग्निना सेवितः क्षपितो वा, 'अगणिपरिणमिए' त्ति अग्निना 20 परिणामितः - पूर्व स्वभावत्याजनेनात्मभावं नीतः, ततश्व हततेजा धूल्यादिना गततेजाः, क्वचित् स्वत एव नष्टतेजाः, कचिदव्यक्तीभूततेजाः भ्रष्टतेजाः, क्वचित् स्वरूपभ्रष्टतेजा - ध्यामतेजा इत्यर्थः, लुप्ततेजाः क्वचित् अर्द्धभूततेजाः, 'लुप्ल
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम् च्छेदने छिदिर द्वैधीभावे ' इतिवचनात्; किमुक्तं भवति ? 'विणट्टतेए'विनष्टतेजा निःसत्ताकीभूततेजाः, एकार्था वैते शब्दाः, 'छंदेणं' ति स्वाभिप्रायेण यथेष्टमित्यर्थः, 'निप्पट्टपसिणवागरणं' ति निर्गतानि स्पष्टानि प्रश्नव्याकरणानि यस्य स तथा तम्। 'रुंदाइं पलोएमाणे' त्ति दीर्घा दृष्टीर्दिक्षु प्रक्षिपनित्यर्थः, मानधनानां हतमानानां लक्षणमिदं, 'दीहुण्हाइं नीसासमाणे' त्ति निःश्वासानिति गम्यते, 'दाढियाए लोमाई' ति उत्तरौष्ठस्य रोमाणि, 'अवडं (अवडं)' ति कृकाटिकां, 'पुयलिं पप्फोडेमाणे' त्ति 'पुततटीं' पुतप्रदेशं प्रस्फोटयन् , 'विणिद्धणमाणे' त्ति विनिर्धन्वन् , 'हाहा अहो हओऽहमस्सीतिकट्ट'
त्ति हा हा अहो हतोऽहमस्मीति कृत्वा-इति भाणत्वेत्यर्थः, अंबकूणगहत्थगए'त्ति 17 आम्रफलहस्तगतः, स्वकीयतपस्तेजोजनितदाहोपशमनार्थमाम्रास्थिकं चूषन्निति
भावः, गानादयस्तु मद्यपानकृता विकाराः समवसेयाः, ‘मट्टियापाणएणं' ति मृत्तिकामिश्रितजलेन, मृत्तिकाजलं सामान्यमप्यस्त्यत आह - ' आयंचणि
ओदएणं' ति, इह टीकाव्याख्या- आतन्यनिकोदकं कुम्भकारस्य यद्भाजने स्थितं तेमनाय मुन्मिश्रं जलं तेन। 'अलाहि पज्जंते' त्ति ‘अलम् । अत्यर्थ ‘पर्याप्तः । शक्तो घातायेति योगः, घातायेति हननाय तदाश्रितत्रसापेक्षया, 'वहाए ' त्ति वधाय, एतच्च तदाश्रितस्थावरापेक्षया, 'उच्छायणयाए' त्ति उच्छादनतायै सचेतनाचेतनतद्गतवस्तूच्छादनायेति, एतच्च प्रकारान्तरेणापि भवतीत्यग्निपरिणामोपदर्शनायाह -'भासीकरणयाए ' त्ति ।
__ 'वज्जस्स' त्ति वर्जस्य-अवद्यस्य, वज्रस्य वा मद्यपानादिपापस्येत्यर्थः, 'चरमे ' त्ति न पुनरिदं भविष्यतीतिकृत्वा चरमं, तत्र पानकादीनि चत्वारि 20 स्वगतानि, चरमता चैषां स्वस्य निर्वाणगमनेन पुनरकरणात्, एतानि च किल निर्वाणकाले जिनस्यावश्यम्भावीनीति नास्त्येतेषु दोष इत्यस्य तथा नाहमेतानि दाहोपशमायोपसेवामीत्यस्य चार्थस्य प्रकाशनार्थत्वादवद्यप्रच्छादनार्थानि भवन्ति,
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पञ्चदशं गोशालकाख्यं शतकम्
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पुष्कलसंवर्तकादीनि तु त्रीणि बाह्यानि प्रकृतानुपयोगेऽपि चरमसामान्याज्जनचित्तरञ्जनाय चरमाण्युक्तानि, जनेन हि तेषां सातिशयत्वाच्चरमता श्रद्धीयते, ततस्तैः सहोक्तानामाम्रकूणकपानकादीनामपि सा सुश्रद्धेया भवत्विति बुद्धयेति, 'पाणगाई' ति जलविशेषा व्रतियोग्याः, 'अपाणयाई' ति पानकसदृशानि शीतलत्वेन दाहोपशमहेतवः, 'गोपुट्ठए' त्ति गोपृष्ठाद्यत्पतितं, 5 ' हत्थमद्दियं' ति हस्तेन मर्दितं-मृदितं मलितमित्यर्थः, यथैतदेवातन्यनिकोदकं, 'थालपाणए' त्ति स्थालं-त्र (? पात्रं ?) तत्पानकमिव दाहोपशमहेतुत्वात् स्थालपानकम्, उपलक्षणत्वादस्य भाजनान्तरग्रहोऽपि दृश्यः, एवमन्यान्यपि नवरं, त्वक्-छल्ली, सीम्बली-कलायादिफलिका, 'सुद्धपाणए 'त्ति देवहस्तस्पर्श इति, 'दाथालय ' त्ति उदकाई स्थालकं, 'दावारगं' ति उदकवारकं, 'दाकुंभग' 10 त्ति इह कुम्भो महान्, 'दाकलसं' ति कलशस्तु लघुतरः, 'जहा पओगपए' । त्ति प्रज्ञापनायां षोडशपदे, तत्र चेदमेवमभिधीयते-'भव्वं वा फणसं वा दालिमं वा' इत्यादि, 'तरुणगं' ति अभिनवम्, 'आमगं' ति अपक्वम् , 'आसगंसि'त्ति मुखे, आवीलेइ'त्ति 'आपीडयेत्' ईषत्प्रपीडयेत्, प्रकर्षत इह यदिति शेषः, 'कल' त्ति कलायो-धान्यविशेषः, 'सिंबलि' त्ति वृक्षविशेषः, - 'पुढविसंथारोवगए' इत्यत्र वर्त्तत इति शेषो दृश्यः, 'जे णं ते देवे साइज्जइ 'त्ति यस्तौ देवौ ' स्वदते ' अनुमन्यते, 'संसि' त्ति स्वके स्वकीये -इत्यर्थः । 'हल्ल' त्ति गोवालिकातृणसमानाकारः कीटकविशेषः, 'जाव सम्वन्नू • इति इह यावत्करणादिदं दृश्यं-'जिणे अरहा केवली' ति, वागरणं 'ति' प्रश्नः, 'वागरित्तए' त्ति प्रष्टुं, 'विलिए ' त्ति ‘व्यलीकितः' सातव्यलीकः, , 'विड्डे ' त्ति बीडा अस्यास्तीति वीड:-लज्जाप्रकर्षवानित्यर्थः, भूमार्थेऽस्त्यर्थप्रत्ययोपादानात्। 'एगंतमंते' त्ति विजने भूविभागे यावदयंपुलो गोशालकान्तिके नागच्छतीत्यर्थः, 'संगारं' ति — सङ्केतम् ', अयंपुलो भवत्समीपे आगमिष्यति ततो भवानाम्रकूणिकं परित्यजतु संवृतश्च भवत्वेवंरूपमिति । 'तं नो खलु
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम् एस अंबकूणए' त्ति तदिदं किलाम्रास्थिकं न भवति, यद्वतिनामकल्प्यं यद् भवती आम्रास्थिकतया विकल्पितं, किन्तु इदं यद्भवता दृष्टं तदासत्वक, एतदेवाह'अंबचोयए णं एसे' त्ति, इयं च निर्वाणगमनकाले आश्रयणीयैव, त्वक्पानकत्वादस्या इति । तथा हल्लासंस्थानं यत्पृष्टमार्सात् तद्दर्शयन्नाह-'वंसी
मूलसंठिय ' त्ति, इदं च वंशीमूलसंस्थितत्वं तृणगोवालिकायाः लोकप्रतीत"मेवेति, एतावत्युक्त मदिरामदविह्वलितमनोवृत्तिरसावकस्मादाह-वणिं वाएहि रे वीरगा २' एतदेव द्विरावर्त्तयति, एतच्चोन्मादवचनं तस्योपासकस्य शृण्वतोऽपि न व्यलीककारणं जातं, यो हि सिद्धिं गच्छति स चरमं गेयादि करोतीत्यादिवचनैर्विमोहितमतित्वादिति । 'हंसलक्खणं' ति हंसस्वरूपं शुक्ल. मित्यर्थः, हंसचिह्न चेति, 'इड्डीसक्कारसमुदएणं' ऋद्धया ये सत्कारा:पूजाविशेषास्तेषां यः समुदयः स तथा तेन, अथवा ऋद्धिसत्कारसमुदयरित्यर्थः, समुदयश्च जनानां सङ्घः, 'समणघायए' त्ति श्रमणयोस्तेजोलेश्याक्षेपलक्षणघातदानात् घातदो घातको वा, अत एव श्रमणमारक इति, 'दाहवक्कंतीए' त्ति दाहोत्पत्त्या, 'सुंबेणं' ति वल्करज्ज्वा , ' उट्ठभह ' त्ति अवष्ठीव्यतनिष्ठीव्यत, क्वचित् 'उच्छुभह' त्ति दृश्यते तत्र चापशब्दं किञ्चित्क्षिपतेत्यर्थः, 'आकट्टविका ति आकर्षवैकर्षिकाम् , 'पूयासक्कारथिरीकरणट्टयाए ' चि पूजासत्कारयोः पूर्वप्राप्तयोः स्थिरताहेतोः यदि तु ते गोशालकशरीरस्य विशिष्टपूजां न कुर्वन्ति तदा लोको जानाति नायं जिनो बभूव, न चैते जिनशिष्या इत्येवमस्थिरौ पूजासत्कारौ स्यातामिति तयोः स्थिरकिरणार्थम् ', 'अव. गुणंति' त्ति अपावृण्वन्ति । (सू. ५५१-५५६) 'सू. ५५७-५९ सिंहानीतोषधादाहशमः । सर्वानुभूतिसुनक्षत्र
साधुगतिः । गोशालकगतिर्विमलवाहनभवश्च । 'साण( ल ) कोट्टए नाम चेइए होत्था वण्णओ' त्ति तवर्णको
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पञ्चदशं गोशालकाख्यं शतकम् वाच्यः स च 'चिराईए ' इत्यादि ‘जाव पुढविसिलापट्टओ' त्ति पृथिवीशिलापट्टकवर्णकं यावत्, स च- 'तस्स णं असोगवरपायवस्स हेट्ठा ईसिंखंधीसमल्लीणे' इत्यादि, 'मालुयाकच्छए ' त्ति मालुका नाम एकास्थिका वृक्षविशेषास्तेषां यत् कक्षं-गहनं तत्तथा । 'विउले ' त्ति शरीरव्यापकत्वात् , 'रोगायंके' त्ति रोगः-पीडाकारी स चासावातश्च-व्याधिरिति 5 रोगातङ्कः, ‘उज्जले 'त्ति उज्ज्वलः पीडापोहलक्षणविपक्षलेशेनाप्यकलङ्कितः, यावत्करणादिदं दृश्यं-'तिउले' बीन् -- मनोवाक्कायलक्षणानांस्तुलयतिजयतोति वितुलः, 'पगाढे' प्रकर्षवान्, 'ककसे ' कर्कशद्रव्यमिवानिष्ट इत्यर्थः, 'कडुए' तथैव, ‘चंडे' रौद्रः, 'तिव्वे' सामान्यस्य झगितिमरणहेतुः, 'दुक्खे' त्ति दुःखो दुःखहेतुत्वात्, 'दुग्गे' त्ति क्वचित् तत्र च दुर्गमिवान-10 भिवनीयत्वात्, किमुक्तं भवति ?- 'दुरहियासे' त्ति दुरधिसह्यः--सोढुमशक्य इत्यर्थः, 'दाहवकंतीए ' त्ति दाहो व्युत्क्रान्तः - उत्पन्नो यस्य सः, स्वार्थिककपत्यये दाहव्युत्क्रान्तिकः, 'अवियाई ति अपिचेत्यभ्युच्चये, 'आई' ति वाक्यालङ्कारे, 'लोहियवच्चाई पि' त्ति लोहितवर्चास्यपि-रुधिरात्मकपुरीषाण्यपि करोति किमन्येन पीडावर्णनेनेति भावः, तानि हि किलात्यन्त-15 वेदनोत्पादके रोगे सति भवन्ति, 'चाउव्वणं' ति चातुर्वर्ण्य - ब्राह्मणादिलोकः, 'झाणंतरियाए 'त्ति एकस्य ध्यानस्य समाप्तिरन्यस्यानारम्भ इत्येषा ध्यानान्तरिका तस्यां, 'मणोमाणसिएणं' ति मनस्येव न बहिर्वचनादिभिरप्रकाशितत्वात् यन्मानसिकं दुःखं तन्मनोमानसिकं तेन, 'दुवे कवोया' इत्यादेः श्रूयमाणमेवार्थ केचिन्मन्यन्ते, अन्ये त्वाहुः-कपोतकः - पक्षिविशेष-20 स्तद्वद् ये फले वर्णसाधर्म्यात् ते कपोते-कूष्माण्डे, ह्रस्वे कपोते कपोतके ते च ते शरीरे वनस्पतिजीवदेहत्वात् कपोतकशरीरे, अथवा कपोतकशरीरे इव धूसरवर्णसाधादेव कपोतकशरीरे कूष्माण्डफले एव ते उपसंस्कृते-संस्कृते, 'तेहिं नो अट्ठो ' त्ति बहुपापत्वात्, ‘पारियासिए' त्ति परिवासितं
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम् ह्यस्तनमित्यर्थः, 'मज्जारकडए ' इत्यादेरपि केचित् श्रूयमाणमेवार्थं मन्यन्ते, अन्ये त्वाहुः - मार्जारो-वायुविशेषस्तदुपशमनाय कृतं-संस्कृतं मार्जारकृतम्, अपरे त्वाहुः - मार्जारो-विरालिकाभिधानो वनस्पतिविशेषस्तेन कृतं-भावितं यत्तत्तथा, किं तत् ? इत्याह-'कुर्कुटकमांसकं' बीजपूरक 5 कटाहम्, ' आहराहि' त्ति निरवद्यत्वादिति । 'पत्तगं मोएइ ' त्ति पात्रकंपिठरकविशेषं मुञ्चति सिक्कके उपरिकृतं सत्तस्मादवतारयतीत्यर्थः, 'जहा विजयस्स' त्ति यथा इहैव - इह शते विजयस्य वसुधारायुक्तं एवं तस्या अपि वाच्यमित्यर्थः, 'बिलमिवे' त्यादि 'बिले इव' रन्ध्रे इव ‘पन्नगभूतन ' सर्पकल्पेन, ' आत्मना' करणभूतेन, 'तं' सिंहानगारोपनीतमाहारं 10 शरीरकोष्ठके प्रक्षिपतीति, 'हटे' त्ति — हृष्टः निर्व्याधिः, 'अरोगे' त्ति निष्पीडः, 'तुझे हटे जाए'त्ति 'तुष्ट: ' तोषवान्, 'हृष्टः' विस्मितः, कस्मादेवम् ? इत्याह—'समणे' इत्यादि, 'हटे 'त्ति नीरोगो जात इति। 'भारग्गसो य' त्ति भारपरिमाणतः, भारश्च-भारकः पुरुषोदहनीयो विंशतिपलशतप्रमाणो
वेति, 'कुंभग्गसो य'त्ति कुम्भो-जघन्य आढकानां षष्टया, मध्यमस्त्वशीत्या, 15 उत्कृष्टः पुनः शतेनेति, ‘पउमवासे य रयणवासे य वासे वासिहिइ'
त्ति वर्षः । वृष्टिवर्षिष्यति, किंविधः ? इत्याह - 'पद्मवर्षः । पद्मवर्षरूपः, एवं रत्नवर्ष इति, ‘सेए ' त्ति श्वेतः, कथंभूतः ? – 'संखदलविमलसन्निगासे' त्ति शङ्खस्य यद्दलं - खण्डं तलं वा तद्रूपं विमलं तत्संनिकाशः - सदृशः यः स
तथा, प्राकृतत्वाच्चैवं समासः, 'आउसिहिइ' त्ति आक्रोशान् दास्यति, 20'निच्छोडेहिइ ' त्ति पुरुषान्तरसम्बन्धितहस्ताद्यवयवाः कारणतो ये श्रमणास्तां
स्ततो वियोजयिष्यति, 'निन्भत्थेहिइ' ति आक्रोशव्यतिरिक्तदुर्वचनानि दास्यति, ‘पमारेहिइ ' त्ति प्रमारं- मरणक्रियापारम्भं करिष्यति प्रमारयिष्यति, 'उद्दवहिइ' त्ति अपद्रावयिष्याति, अथवा पमारिहिइ ' त्ति मारयिष्यति, 'उद्दवेहिइ ' त्ति उपद्रवान् करिष्यति, 'आच्छिंदिहिइ 'त्ति ईषत् छेत्स्यति,
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पञ्चदशं गोशालकाख्यं शतकम् 'विच्छिदेहिइ ' त्ति विशेषेण विविधतया वा छेत्स्यति, 'भिंदिहिइ ' त्ति स्फोटयिष्यति पात्रापेक्षमेतत्, ‘अवहरिहिइ 'त्ति अपहरिष्यात-उद्दालयिष्यति, 'निनगरे करेहिइ' त्ति 'निर्नगरान्' नगरनिष्क्रान्तान् करिष्यति, ‘रज्जस्सव' त्ति राज्यस्य वा, राज्यं च राजादिपदार्थसमुदायः, आह च- “ स्वाम्यमात्यश्च राष्ट्रं च, कोशो दुर्ग बलं सुहृत्। सप्ताङ्गमुच्यते राज्यं, बुद्धिसत्त्वसमाश्रयम् ॥१॥"5 राष्ट्रादयस्तु तद्विशेषाः, किन्तु राष्ट्र - जनपदैकदेशः, 'विरमंतु णं देवाणुप्पिया! एयस्स अट्ठस्स अकरणयाए ' त्ति विरमणं किल वचनाद्यपेक्षयाऽपि स्यादत उच्यते - अकरणतया - करणनिषेधरूपतया। 'विमलस्स' त्ति विमलजिनः किलोत्सपिण्यामेकविंशतितमः ‘समवाये' दृश्यते, स चावसर्पिणीचतुर्थजिनस्थाने प्राप्नोति तस्माच्चार्वाचीनजिनान्तरेषु बहवः सागरापेम-10 कोटयोऽतिक्रान्ता लभ्यन्ते, अयं च महापद्मो द्वाविंशतेः सागरोपमाणामन्ते भविष्यतीति दुःखगममिदं, अथवा यो द्वाविंशतेः सागरोपमाणामन्ते तीर्थकृदुत्सपियां भविष्यति तस्यापि 'विमल' इति नाम संभाव्यते, अनेकाभिधानाभिधेयत्वान्महापुरुषाणामिति, 'पउप्पए ' त्ति शिष्यसन्तानः, 'जहा धम्मघोसस्स वण्णओ' त्ति यथा धर्मघोषस्य- एकादशशतैकादशोद्देशका-15 भिहितस्य वर्णकस्तथाऽस्य वाच्यः, स च ‘जाइसंपन्ने कुलसंपन्ने बलसंपन्ने' इत्यादिरिति, 'रहचरियं ' ति रथचर्चा, ‘नोल्लावेहिइ ' त्ति नोदयिष्यति -प्रेरयिष्यति, सहितमित्यादय एकार्थाः । (सू. ५५७ - ५५९)
सू. ५६० गोशालकस्य संसारे भ्रमणम् । 'सत्थवज्झे' त्ति शस्त्रवध्यः सन्, 'दाहवक्कंतीए 'त्ति दाहोत्पत्त्या कालं 20 कृत्वोत योगः, दाहव्युत्क्रान्तिको वा भूत्वेति शेषः, इह च यथोक्तक्रमेणैवासज्ञिप्रभृतयो रत्नप्रभादिषु यत उत्पद्यन्त इत्यसौ तथैवोत्पादितः, यदाह“ अस्सण्णी खलु पढमं दोच्चं च सिरीसिवा तइय पक्खी। सीहा जात
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम्
चउत्थिं उरगा पुण पंचमि पुढविं ॥ १॥ छटुिं च इत्थियाओ मच्छा मणुया सत्तमि पुढविं॥” [ असज्ञिनः खलु प्रथमां द्वितीयां च सरिसृपाः तृतीयां पक्षिणः । सिंहा यान्ति चतुर्थी पञ्चमी पुनः पृथ्वीमुरगाः ॥ १॥ षष्ठीं च स्त्रियो मत्स्या मनुष्याश्च सप्तमी पृथ्वीम् ॥ ] इति, ‘खहचरविहाणाई। ति इह 5 विधानानि-भेदाः, 'चम्मपक्खीणं' ति वल्गुलीप्रभृतीनां, ‘लोमपक्खीणं' ति हंसप्रभृतीनां, ‘समुग्गपक्खीणं' ति समुद्गकाकारपक्षवतां मनुष्यक्षेत्रबहिर्वर्त्तिनां, ‘विययपक्खीणं' ति विस्तारितपक्षवतां समयक्षेत्रबहिवर्तिनामवेति, 'अणेगसयसहस्सखुत्तो' इत्यादि तु यदुक्तं तत्सान्तरमवसेयं, निरन्तरस्य
पञ्चेन्द्रियत्वलाभस्योत्कर्षतोऽप्यष्टभवप्रमाणस्यैव भावात् , यदाह- 'पंचिंदिय10 तिरियनरा सत्तटुभवा भवग्गहेण ' त्ति, [ पञ्चेन्द्रियतिर्यग्नराः सप्ताष्टभवाः भवग्रहणैः] इति 'जहा पन्नवणापए ' त्ति प्रज्ञापनायाः प्रथमपदे, तत्र चैवमिदं'सरडाणं सल्लाण' मित्यादि, 'एगखुराणं' ति अश्वादीनां, 'दुखुराणं' ति गवादीनां, ‘गंडीपयाणं' ति हस्त्यादीनां, ‘सणहप्पयाणं' ति
सनखपदानां सिंहादिनखराणां, 'कच्छभाणं' ति इह यावत्करणादिदं 15 दृश्यं - 'गाहाणं मगराणं पोत्तियाणं' इत्यत्र ‘जहा पनवणापए
त्ति अनेन यत्सूचितं तदिदं- 'मच्छियाणं मसगियाण' मित्यादि, 'उवचियाणं' इह यावत्करणादिदं दृश्यं - 'रोहिणियाणं कुंथूणं पिविलियाण' मित्यादि, 'पुलाकिमियाण' मित्यत्र यावत्करणादिदं दृश्यं - 'कुच्छिकिमियाणं गंडूलगाणं गोलोमाण' मित्यादि, ‘रुक्खाणं' 20 ति वृक्षाणामेकास्थिकबहुबीजकभेदेन द्विविधानां, तत्रैकास्थिकाः निम्बाम्रादयः, बहुबीजाः - अस्थिकतिन्दुकादयः, 'गुच्छाणं' ति वृन्ताकीप्रभृतीनां, यावत्करणादिदं दृश्यं - 'गुम्माणं लयाणं वल्लीणं पव्वगाणं तणाणं वलयाणं हरियाणं ओसहीणं जलरुहाणं' ति तत्र ‘गुल्मानां ' नवमालिकाप्रभृतीनां, 'लतानां ' पद्मलतादीनां, 'वल्लीनां ' पुष्पफलीप्रभृतीनां, ‘पर्वकाणाम् । इक्षु
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प्रभृतीनां, ‘तृणानां' दर्भकुशादीनां, 'वलयानां' तालतमालादीनां, 'हरितानाम् ’ अध्यारोहक तन्दुलीयकादीनाम्, 'औषधीनां ' शालिगोधूमप्रभृतीनां, ' जलरुहाणां कुमुदादीनां, 'कुहणाणं ति कुहुणानाम्, आउकायप्रभूतिभूमी' स्फोटानाम्, ‘ उस्सन्नं च णं ' ति बाहुल्येन पुनः, 'पाईणवायाणं ति पूर्ववातानां यावत्करणादेवं दृश्यं - 'पडीणवायाणं दाहिणवायाण' मित्यादि, 'सुद्धवायाणं ' ति मन्दस्तिमितवायूनाम् 'इंगालाणं' इह यावत्करणादेव दृश्यं - ' जालाणं मुम्मुराणं अच्चीण' मित्यादि, तत्र च ' ज्वालानाम् ' अनलसम्बद्धस्वरूपाणां, 'मुर्मुराणां' फुम्फुकादौ मसृणानिरूपाणाम्, 'अर्चिषाम्' अनलाप्रतिबद्धज्वालानामिति । 'ओसाणं' ति रात्रिजलानाम्, इह यावत्करणादिदं दृश्यं - 'हिमाणं महियाणं ' ति, 'खाओदयाणं ' ति खातायां - भूमौ 10 यान्युदकानि तानि खातोदकानि, 'पुढवीणं' ति मृत्तिकानां, 'सक्कराणं ' ति शर्करिकाणां, यावत्करणादिदं दृश्यं - 'वालुयाणं उवलाणं' ति, ' सूरकंताणं ' ति मणिविशेषाणां, ' बाहिं खरित्ताए ' त्ति नगरबहिर्वर्तिवेश्यात्वेन, प्रान्तजवेश्यात्येनेत्यन्ये, 'अंतोख रियत्ताए ' त्ति नगराभ्यन्तरवैश्यात्वेन, विशिष्टवेश्यात्थेनेत्यन्ये । (सू. ५६० )
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सू. ५६१ दारिकासम्यक्त्वचरणयुता भवा दृढप्रतिज्ञभवश्च ।
पडिरूवएणं सुक्केणं ' ति ' प्रतिरूपकेन ' उचितेन शुल्केन - दानेन, 'भंडकरंडगसमाणे ' त्ति आभरणभाजनतुल्या आदेयेत्यर्थः, ' तेल्लकेला इव सुसंगोविय' त्ति तैलकेला इव तैलाश्रयो भाजन विशेषः सौराष्ट्रप्रसिद्धः, सा च सुष्ठु संगोपनीया भवत्यन्यथा लुठति ततश्च तैलहानिः स्यादिति, 'चेल - 20 पेडा इव सुसंपरिगहिय ' त्ति चेलपेडावत् - वस्त्रमञ्जूषेव सुष्ठु संपरिवृत्ता ( गृहीता ) – निरुपद्रवे स्थाने निवेशिता । ' दाहिणिल्लेसु असुरकुमारेसु देवेसु देवत्ताए उववज्जिहिइ ' त्ति विराधितश्रामण्यत्वादन्यथाऽनगाराणां
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम् वैमानिकेष्वेवोत्पत्तिः स्यादिति, यच्चेह दाहिणिल्लेसु' त्ति प्रोच्यते तत्तस्य क्रूरकर्मत्वेन दक्षिणक्षेत्रेष्वेवोत्पाद इतिकृत्वा, ‘अविराहियसामण्णे' त्ति आराधितचरण इत्यर्थः, आराधितचरणता चेह चरणप्रतिपत्तिसमयादारभ्य मरणान्तं यावन्निरतिचारतया तस्य पालना, आह च-"आराहणा य एत्थं चरण5 पडिवत्तिसमयओं पभिई । आमरणंतमजस्सं संजमपरिपालणं विहिणा ॥१॥” इति [आराधना चात्र चारित्रप्रतिपत्तिसमयत आरभ्य । आमरणान्तमजस्रं विधिना संयमपरिपालना ॥ १॥] एवं चेहू यद्यपि चारित्रप्रतिपत्तिभवा विराधनायुक्ता अग्निकुमारवर्जभवनपतिज्योतिष्कत्वहेतुभवसहिता दश अविराधनाभवास्तु यथोक्तसौधर्मादिदेवलोकसर्वार्थसिद्धयुत्पत्तिहेतवः सप्ताष्टमश्च सिद्धिगमनभव इत्येव10 मष्टादश चारित्रभवा उक्ताः , श्रूयन्ते चाष्टैव भवांश्चारित्रं भवति तथाऽपि न विरोधः, अविराधनाभवानामेव ग्रहणादिति, अन्ये त्वाहुः - “ अट्र भवा उ चरित्ते' [चारित्रेऽष्टौ भवाः । इत्यत्र सूत्रे आदानभवानां वृत्तिकृता व्याख्यातत्वात् चारित्रप्रतिपत्तिविशेषिता एव भवा ग्राह्याः, नाराधनाविराधनाविशेषणं कार्यम् ,
अन्यथा यद् भगवता श्रीमन्महावीरेण हालिकाय प्रव्रज्या बीजमिति 16 दापिता तन्निरर्थकं स्यात्, सम्यक्त्वमात्रेणैव बीजमात्रस्य सिद्धत्वात् , यत्तु
चारित्रदानं तस्य तदष्टमचारित्रे सिद्धिरेतस्य स्यादिति, विकल्पादुपपन्नं स्यादिति, यच्च दशसु विराधनाभवेषु तस्य चारित्रमुपवर्णितं तद्र्व्यतोऽपि स्यादिति न दोष इति, अन्ये त्वाहुः- न हि वृत्तिकारवचनमात्रावष्टम्भोदवाधिकृतसूत्रमन्यथा व्याख्येयं भवति, आवश्यकचूर्णिकारेणाप्याराधनापक्षस्य समर्थितत्वादिति । 20 एवं जहा उववाइए' इत्यादि भावितमेव अम्मडपरिव्राजककथानक इति । पञ्चदशं शतं वृत्तितः समाप्तमिति ।
श्रीमन्महावीरजिनप्रभावाद् गोशालकाहङ्कतिवद्गतेषु । समस्तविघ्नेषु समापितेयं वृत्तिः शते पञ्चदशे मयति ॥१॥
॥ इति श्रीमदभयदेवसूरिवर्यविहितविवरणयुतं पञ्चदशं 25 गोशालाख्यं शतकं समाप्तम् ॥
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॥ प्रथमं परिशिष्टम् ॥ [श्रीमत्सूत्रकृताङ्गे द्वितीयः श्रुतस्कन्धः षष्ठं अध्ययनम् ]
गोसालेपुराकडं अद्द इमं सुणेह मेगन्तयारी समणे पुरासी। से भिक्खुणो उवणेत्ता अणेगे आइक्खपण्हि पुढो वित्थरेणं ॥१॥ साजीविया पट्ठवियाथिरेणं सभागओ गणओ भिक्खुमज्झे। आइक्खमाणो बहुजनमत्थं न संधयाई अवरेण पुव्वं ॥२॥ एगन्तमेवं अदुवा वि एण्हि दोवन्नमन्नं न समेइ जम्हा ।
अद्देपुत्विं च एपिंह च अणागयं वा एगन्तमेवं पडिसंधयाइ ॥३॥ समिच्च लोग तसथावराणं खमंकरे समणे माहणे वा। आइक्खमाणो वि सहस्समज्झे एगंतयं सारयई तहच्चे ॥४॥
धम्मं कहंतस्स उ नत्थि दोसो खंतस्स दंतस्स जिइंदियस्स।
भासाय दोसे य विवज्जगस्स . गुणे य भासाय निसेवगस्स ॥५॥ महव्वए पंच अणुव्वए य तहेव पंचासव संवरे या विरई इह स्सामणियम्मि पुण्णे लवावसकी समणे त्ति बेमि ॥६॥
गोसालेसीओदगं सेवउ बीयकायं आहायकम्मं तह इत्थियाओ। एगन्तचारिस्सिह अम्ह धम्मे तवस्सिणो नाभिसमेइ पावं ॥७॥
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम् अद्देसीओदगं वा तह बीयकायं आहायकम्मं तह इत्थियाओ। एयाइं जाणं पडिसेवमाणा अगारिणो अस्समणा भवन्ति ॥ ८॥ सिया य बीओदग इत्थियाओ पडिसेवमाणा समणा भवंतु । अगारिणो वी समणा भवंतु सेवंति ऊ तं पि तहप्पगारं॥९॥ जे यावि बीओदगभोइ भिक्खू भिक्खं विहं जायइ जीवियट्ठी। ते नाइसंजोगमविप्पहाय कायोवगा णंतकरा भवंति ॥१०॥
गोसालेइमं वयं तु तुम पाउकुव्वं पावाइणो गरिहसि सव्व एव ।
अद्देपावाइणो पुढो पुढो किट्टयन्ता सयं सयं दिट्ठि करेन्ति पाउ ॥११॥ ते अन्नमन्नस्स उ गरहमाणा अक्खंति भो समणा माहणा य। सओयअत्थी असओय नत्थि गरहामु दिह्रिन गरहामु किंचि॥१२॥ न किंचि स्वेणऽभिधारयामो सदिट्टिमग्गं तु करेमु पाउं। मग्गे इमे किट्टिए आरिपहिं अणुत्तरे सप्पुरिसेहि अंजू ॥१३॥ उहूं अहेयं तिरियं दिसासु तसा य जे थावर जे य पाणा। भूयाहिसंकाभि दुगुंछमाणा नो गरहइ बुसिमं किंचि लोए॥१४॥
गोसालेआगन्तगारे आरामगारे समणे उ भीए न उवेइ वासं। दक्खा हु संती बहवे मणुस्सा ऊणाइरित्ता य लवालवा य ॥ १५ ॥ मेहाविणो सिक्खिय बुद्धिमंता सुत्तेहि अत्थेहि य निच्छयना। पुच्छिसु मा णे अणगार अन्ने इइ संकमाणो न उवेइ तत्थ ॥ १६ ॥
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प्रथमं परिशिष्टम्
73 अद्देनाकामकिच्चा न य बालकिच्चा रायाभिओगेण कुओ भएणं। वियागरेज्ज पसिणं न वा वि सकामकिच्चोणिह आरियाणं ॥१७॥ गंता च तत्था अदुवा अगंता वियागरेज्जा समियासुपन्ने । अणारिया दसणओ परित्ता इइ संकमाणो न उवेइ तत्थ ॥१८॥
गोसालेपण्णं जहा वणिए उदयट्ठी आयस्स हेउं पगरेइ संगं । तऊवमे समणे नायपुत्ते इच्चेव मे होइ मई वियको ॥१९॥
अद्देनवं न कुज्जा विहुणे पुराणं चिच्चामई ताइ य साह एवं । एयावया बंभवइ त्ति वुत्ता तस्सोदयट्ठी समणे त्ति बेमि ॥२०॥ समारभंते वणिया भूयगामं परिग्गहं चेव ममायमाणा। ते नाइसंजोगमविप्पहाय आयस्स हेउँ पगरेंति संगं ॥२१॥ वित्तेसिणो मेहुणसंपगाढा ते भोयणट्ठा वणिया वयंति। वयं तु कामेसु अज्झोववन्ना अणारिया पेमरसेसु गिद्धा ॥२२॥ आरंभगं चेव परिग्गहं च अविउस्सिया निस्सिय आयदंडा। तेसिं च से उदए जं वयासी चउरंतणंताय दुहाय नेह ॥२३॥ नेगति नच्चंति य ओदए सो वयंति ते दो विगुणोदयम्मि । से उदए साइमणंतपत्ते तमुदयं साहयइ ताइ नाई ॥२४॥ . अहिंसयं सव्वपयाणुकंपी धम्मे ठियं कम्मविवेगहेउं । तमायदंडेहिं समायरंता अबोहिए ते पडिरूवमेयं ॥२५॥
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|| द्वितीयं परिशिष्टम् ॥
[ दीघनिकायस्थसामञ्ञफल सूत्रात् ]
१९. एकमिदाहं भन्ते समयं येन मक्खलिगोसालो तेनुपसंकार्म । उपसंकमित्वा मक्खलिगोसालेन सद्धि संमोदि, संमोदनीयं कथं 5 साराणीयं वीतिसारेत्वा एकमन्तं निसीदिं । एकमन्तं निसिन्नो खो अहं भन्ते मक्खलिगोसालं एतदवोच । “यथा नु खो इमानि भो गोसाल, पुथुसिप्पायतनानि सेय्यथीदं हत्थारोहा... पे... सक्का नु खो भो गोसाल एवमेव दिट्ठेव धम्मे संदिट्ठिकं सामञ्ञफलं पञ्ञापेतुं ?” ति ॥
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२०. एवं वृत्ते भन्ते मक्खलिगोसालो मं एतदवोच । 'नत्थि 10 महाराज हेतु, नत्थि पच्चयो सत्तानं संकिलेसाय, अहेतु अपच्चया सत्ता संकिलिस्सन्ति । नत्थि हेतु, नत्थि पच्चयो सत्तानं विसुद्धिया, अहेतु अपच्चया सत्ता विसुज्झन्ति । नत्थि अत्तकारे, नत्थि परकारे,
[ सुमङ्गलविलासिनीनाम्न्याः दीघनिकायटीकायाः ]
१९. एत्थ पन मक्खलीति तस्स नामं, गोसालाय जातत्ता गोसालो ति 15 दुतियं नामं । तं किर सकद्दमाय भूमिया तेलघटं गहेत्वा गच्छन्तं ' तात, मा खलि ” इति सामिको आह । सो पमादेन खलित्वा पतित्वा सामिकस्स भयेन पलायितुं आरद्धो । सामिको उपधावित्वा दसाकण्णे अग्गहेसि । सो साटकं छड्डेत्वा अचेलको हुत्वा पलायि ॥
२० मक्खलिवादे पच्चयो हेतुवचनमेव । उभयेनापि विज्जमानमेव काम20 दुच्चरितादिं संकिलेसपच्चयं, कायसुचरितादिं च विसुद्धिपच्चयं पटिक्खिपति । अत्तकारे ति अत्तकारो । येन अत्तना कतकम्मेन इमे सत्ता देवत्तं पि मारत्तं पि ब्रह्मत्तं पि सावकबोधिं पि पच्चेकबोधिं पि सब्बञ्जतं पि पापुणन्ति,
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द्वितीयं परिशिष्टम् नत्थि पुरिसकारे, नत्थि बलं, नत्थि विरियं, नत्थि पुरिसथामो, नत्थि पुरिसपरक्कमो। सब्बे सत्ता सब्बे पाणा सब्बे भूता सब्बे जीवा अवसा अबला अविरिया नियतिसंगतिभावपरिणता छस्सेवाभिजातिसु सुखदुक्खं पटिसंवेदेन्ति । चुद्दस खो पनिमानि योनिपमुखसतसहस्सानि सर्टिं च सतानि छ च सतानि, पञ्च च कम्मुनो सतानि पश्च 5
तं पि पटिक्खिपति। दुतियवादेन यं परकारं परस्स ओवादानुसासनिं निस्साय ठपेत्वा महासत्तं अवसेसो जनो मनुस्ससोभग्यतं आदि कत्वा याव अरहत्तं पापुणाति, तं परकारं पटिक्खिपति । एवमयं बालो जिनचक्के पहारं देति नाम । नत्थि पुरिसकारे ति येन पुरिसकारेन सत्ता वुत्तप्पकारसंपत्तियो पापुणन्ति तं बलं पटिक्खिपति । नत्थि विरियं ति आदीनि सब्बानि पुरिसकार. 10 वेवचनानेव 'इदं नो विरियेन इदं पुरिसत्थामेन इदं पुरिसपरक्कमेन पवत्तं ति, एवं पवत्तवचनपटिक्खेपकरणवसेन पनेतानि विसु आदियति । सब्बे सत्ता ति ओटुगोणगद्रभादयो अनवसेसे परिगण्हाति । सब्बे पाणा ति एकिन्द्रियो पाणो दिइन्द्रियो पाणो तिआदिवसेन वदात। सब्बे भूता ति अण्डकोसवत्थिकोसेसु भूते संभूते संधाय वदति । सब्बे जीवा ति सालियवगोधूमादयो 15 संधाय वदति। तेसु हि सो विरूहनभावेन जीवसी । अवसा अबला अविरिया ति तेसं अत्तनो वसो वा बलं वा विरियं वा नत्थि । नियतिसंगतिभावपरिणता ति । एत्थ नियती ति नियत्ता, संगती ति छन्नं अभिजातीनं तत्थ तत्थ गमनं, भावो ति सभावो येव । एवं नियतिया च संगतिया च भावेन च परिणता नानप्पकारतं पत्ता। येन हि यथा भवितब्बं 20 सो तथैव भवति, येन न भवितब्बं सो न भवतीति दस्सेति। छस्सेवाभिजातिस ति छसु एव अभिजातिसु ठत्वा सुखं च दुक्खं च पटिसंवेदेन्ति । अचा सुखदुक्खभूमि नीति दस्सेति योनिपमुखसतसहस्सानीति पमुखयोनीनं
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम् च कम्मानि तीणि च कम्मानि कम्मे च अढकम्मे च, ट्टि पटिपदा, द्वट्ठन्तरकप्पा, छळभिजातियो, अट्ठ पुरिसभूमियो, एकूनपत्रास आजीवसते, एकूनपास परिव्वाजकसते, एकूनपास नागावाससते, वीसे इन्द्रियसते, तिंसे निरयसते, छत्तिस रजोधातुयो, सत्त 5 सञिगब्भा, सत्त असजिगब्भा, सत्त निगण्ठिगब्भा, सत्त देवा, उत्तमयोनीनं चुद्दससतसहस्सानि अझानि न सट्ठिसताति, अञानि च छसतानि, पञ्च च कम्मुनो सतानाति पञ्च कम्मानि चाति केवलं तक्कमत्तकेन निरत्थकं दिद्धिं दीपेति । पञ्च च कम्मानि तीण च कम्मानीति
आदिसु पि एसेव नयो । केचि पनाहु-पश्च कम्मानीति पश्चिन्द्रियवसेन 10भणात, तीणी ति तीणि कायकम्मादिवसेनाति । कम्मे च अड्डकम्मे चाति,
एत्थ पनस्स कायकम्मं च वचीकम्मं च कम्मं ति लद्धि, मनोकम्मं उपड़कम्म ति । द्वट्टि पटिपदा ति दासट्रि पटिपदा ति वदति । द्वट्ठन्तरकप्पा ति एक्तस्मिं कप्पे चतुसटि अन्तरकप्पा नाम होन्ति । अयं पन अझे द्वे
अजानन्तो एवमाह । छळभिजातियो ति कण्हाभिजाति नीलाभिजाति 15 लोहिताभिजाति हलिद्दाभिजाति सुक्काभिजाति परमसुक्काभिजाति इति इमा छ
अभिजातियो वदति । तत्थ ओरब्भिका सूकरिका साकुन्तिका मागविका लुद्दा मच्छघातका चोरा चोरघातका बन्धनागारिका ये वा पनञ पि केचि कुरूरकम्मन्ता, अयं कण्हाभिजातीति वदति । भिक्खू नीलाभिजातीति वदति ।
ते किर चतुसु पञ्चयेसु कण्टके (कन्दके) पक्खिपित्वा खादन्ति । भिक्खू च 20 कण्टक (कन्दक ) वुत्तिका ति अयं हिस्स पालि येव । अथवा कण्टकवुत्तिका
एष नाम एके पब्बजिता ति वदति । इमे किर पुरिमेहि दीहि पण्डरतरा। गिही ओदातवसना अचेलकसावका हलिद्दाभिजातीति वदति । अयं अत्तनो पच्चयदायके निगण्ठे हि पि जेटकतरे करोति । आजीविका आजीविनियो अयं
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द्वितीयं परिशिष्टम्
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सत्त मानुसा, सत्त पेसाचा, सत्तं सरा, सत्त पदुवा, सत्त पदुवासतानि, सत्त पपाता सत्त पपातसतानि, सत्त सुपिना सत्त सुपिनसतानि, चुल्लासीति महाकप्पुनो सतसहस्सानि यानि बाले च पण्डिते च संधावित्वा संसरित्वा दुक्खस्सन्तं करिस्सन्ति। तत्थ नत्थि-इमिनाहं सीलेन वा वतेन वा तपेन वा ब्रह्मचरियेन वा 5
सुक्काभिजातीति वदति । ते किर पुरिमेहि चतूहि पण्डरतरा । नन्दो वच्छो, किसो संकिच्चो मक्खलिगोसालो परमसुक्काभिजातीति वदति । ते किर सब्बेहिं पि पण्डरतरा। अट्ठ पुरिसभूमियो ति, मन्दभूमि खिड्डाभूमि विमंसनभूमि उजुगत. भूमि सेखभूमि समणभूमि जिनभूमि पन्नभूमीति इमा अट्ठ पुरिसभूमियो ति वदति । तत्थ जातदिवसतो पटाय सत्तदिवसे संबाधठानतो निक्खन्तत्ता सत्ता मन्दा 10 होन्ति मामूहा । अयं मन्दभूमीति वदति । ये पन दुग्गतितो आगता होन्ति, ते अभिण्हं रोदन्ति चेव विरवन्ति च, सुगतितो आगता तं अनुस्सरित्वा अनुस्सरित्वा हसन्ति । अयं खिड्डाभामि नाम । मातापितुनं हत्थं वा पादं वा मञ्चं वा पीठं वा गहेत्वा भूमियं पदनिक्खमनं पन वीमंसाभूमि नाम | पदसा गन्तुं समत्थकालो उजुगतभूमि नाम । सिप्पानि सिक्खनकालो सेख-15 भूमि नाभ । घरा निक्खम्म पब्बजनकालो समणभूमि नाम । आचरियं सेवित्वा विजाननकालो जिनभूमि नाम । भिक्खु च पन्नको जिनो न किंचि आहाति एवं अलाभिं समणं पन्नभूमीति वदति । एकूनपञ्ञास आजीवसते ति एकूनपास आजीववुत्तिसतानि । परिबाजकसते ति परिब्बाजकपब्बज्जासतानि । नागावाससते ति नागमण्डलसतानि । वीसे इन्द्रियसते ति वीसं 20 इन्द्रियसतानि । तिंसे निरयसते ति तिंस निरयसतानि । रजोधातुयो ति रजओकिण्णटानानि हत्थपीठपादपीठानि संधाय वदति । सत्त सञ्चिगब्भा ति ओटुगोणगद्रभअजपसुमिगमहिसे संधाय वदति । असन्त्रिगन्भा ति
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श्रीमद्भगवतीसूत्रम्
अपरिपक्कं वा कम्मं परिपाचेस्सामि, परिपक्कं वा कम्मं फुस्स फुस्स व्यन्तिकरिस्सामि इति । हेवं नत्थि दोणमिते सुखदुक्खे परियन्तकटे संसारे, नत्थि हायनवडूने नत्थि उक्कंसावकंसे । सेय्यथापि नाम सुत्तगुळे खित्ते निब्बेठियमानमेव फलेति, एवमेव बाले च पण्डिते
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5 सालियवगोधूममुग्गकंगुवरककुसके संधाय वदति । निगण्ठिगभा ि गण्ठिम्हि जातगब्भा, उच्छुवेळुनाळादयो संधाय वदति । सत्त देवाति बहू देवा, सो पन सत्ता ति वदति । मानुसा पि अनन्ता, सो सत्ता ति वदति । सन्त पिसाचा ति पिसाचा महन्तामहन्ता सत्ता ति वदति । सराति महासरा । कण्णमुण्डरथकार अनोतत्तसीहप्पपाततियग्गळमुचलिन्दकुणालदहे 10 गत्वा वदति । पचुटा (2) ति गण्ठिका । पपाता ति महापपाता । पपातसतानीति खुद्दकपातसतानि । सुपिना ति महासुपिना व । सुपिनसतानाति खुद्दक सुपिनसतानि । महाकप्पुनो ति महाकप्पानं । तत्थ एकम्हा महासरा वस्ससते कुसग्गेन एकं उदकबिन्दुं नीहरित्वा सत्तक्खत्तुं तहिं सरे निरुदके कते एको महाकप्पो ति वदति । एवरूपानं महाकप्पानं 15 चतुरासीतिसत सहस्सानि खेपेत्वा बाले च पण्डिते च दुक्खस्सन्तं करोन्तीति अयमस्तं लद्धि । पण्डितो पि किर- अन्तरा सुज्झितुं न सक्कोति, बालो पि ततो उद्धं न गच्छति । सीलेन वा ति. अचेलकसीलेन वा अञ्ञेन वा येन केन चि । वतेनाति तादिसेनेव । तपेना ति तपोकम्मेन । अपरिपक्कं परिपाचेति नाम, यो ‘ अहं पण्डितो 'वि' अन्तरा विसुज्झति । परिपक्कं 20 फुस्स फुस्स व्यन्तिकरोति नाम यो अहं बालो' ति वृत्तपरिमाणं कालं अतिक्कमित्वा याति । हेवं नत्थीति एवं नत्थि, तं हि उभयं पि न सक्का कातुं ति दीपेति । दोणमिति दोणेन मिते, दोणेन मितं विय । सुखदुक्खे ति सुखं दुक्खं । परियन्तकटे ति वृत्तपरिमाणेन कालेन कटपरियन्ते । नत्थि
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द्वितीयं परिशिष्टम् च संघावित्वा संसरित्वा दुक्खस्सन्तं करिस्सन्तीति"। इत्थं खो मे भन्ते मक्खलिगोसालो संदिष्टिकं सामञ्ञफलं पुट्ठो समानो संसारविसुद्धिं व्याकासि॥
हायनवड्डने ति नत्थि हायनवडनानि । न संसारो पण्डितस्स हायति, न बालस्स वडतांति अत्थो।उक्कंसावकंसे ति उक्कंसावकंसानि, हायनवडनानेमेवेतं वेवचनं 5 इदानि तं अत्थं उपमाय साधेन्तो सेय्यथापि नामा ति आदिमाह । तत्थ सुत्तगुळे ति वेठेत्वा कत्तसुत्तगुळं । निब्बेठियमानमेव फलेतीति पब्बते वा वा रुक्खग्गे वा ठत्वा खित्तं सुत्तप्पमाणेन निब्बेठियमानमेव गच्छति, सुत्ते खीणे तत्थेव तिटुति न गच्छति । एवमेवं वृत्तकालतो उद्धं न गच्छतीति दस्सेति ॥
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Errata (त्रुटिशोधनम्)
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Incorrect Correct इंदभूइ इंदभूई मंखालस्स मंखलिस्स अस्सादेत्ति अस्सादेंति अस्सादेति अस्सादेति 2त्त
2त्ता पुरिसहस्सवाहिणिं पुरिससहस्सवाहिणि आकट्टविकढेि आकट्ठिविकढेि
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3
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वंदइ सव्वाणुभूई नामं पूर्वेण
25 वदइ 36 13 & 16 सवाणु ईनाम
6 पूवर्णे (introductory portion )
भोमं 17
तेजोलेश्या दहिमळू
भौम तेजोलेश्या । दीहमद्धं
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भवती
भवता जयतीति
जयताति
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ARDHAMĀGADHĪ AND PRAKRIT WORKS
Edited By Prof. N. V. VAIDYA, M. A.
Fergusson College, POONA 4 ( India ) * (1) ANTAGADADASÃO &
ANUTTAROVAVĀLYADASÃO: Out of print * (2) BAMBHADATTA & AGADADATTA: Out of print * (3) RAYAPASENAIJJASUTTAM: The Second Upānga of the Jain Canon
Out of print (4) NAYADHAMMAKAHAO: The Sixth Anga of the Jain Canon. Complete Text only
7-8-0 Critically Edited for the first time. * (5) NAYADHAMMAKAHAO:
Chapters IV-VIII & IX & XVI-Two Volumes 7-o-o * (6) PAUMACARIYA of Vimalasūri : Chapters I-IV 4-0-0 * (7) SAMARAICCAKAHĀ Of Haribhadrasūri: Chapter VI
Out of print * (8) DASAVEYALIYASUTTAM: The Socond Mülasūtra of the Jain Canon : Chapters I-VI
2-0-0 * (9) USANIRUDDHAM: BY
CANTOS I & II 2-4-0 RĀMA PĀNIVĀDA: *(10) NALAKAHĀ & VARUNAKAHĀ From
KUMĀRAPĀLAPRATIBODHA (11) UTTARADHYAYANASUTRAM: The First Mülasūtra Of The Jain Canon : Complete Text Only.
Edited By R. D. Vadekar & N.V. Vaidya
2-0-0 Fergusson College, Poona-4 * Text Edited with English Translation, Notes and Introduction.
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________________ JAINISM IN GUJARAT (1100 A, D. To 1600 A. D.) By C. B. SHETH, M. A., L.L. B. Some Opinions With great interest, I read your book' Jainism in Gujarat '. It is a very helpful work, being a mine of information which you have put together with great industry. Please accept my greetings. Dr. A. N. Upadhye Vice-Principal, Rajaram College, Kolhapur * Jainism in Gujarat' is an original work on the history of Gujarat. It was written at the invitation of the University of Bombay. It fills up a gap in the Literature on the history of Gujarat that has not taken adequate account of the unique contributions made by Jainism to the history and culture of Gujarat. This work dealing with a rich and glorious beritage preserved by Jainism in Gujarat will be very useful to students of Indian History, (Agian') I have read with great interest the comprehensive and well-documented narrative of the Jain contribution to the history and culture of Gujarat and Saurashtra written by Mr. Chimanlal B. Sheth in English. The writer has consulted all available literature which is extant in Sanskrit, Prakrit and Gujarati on the subject and he has tried his utmost to connect it with the relevant Persian literature on that period. The treatment is lucid and balanced. K, H, Kamdar Professor of History and Politics, Vallabh Vidyanagar