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श्रीमद्भगवती सूत्रम्
समणघायए जाव छउमत्थे चेव कालगए । तम्मूलगं च णं अहं अज्जो, अणाईयं अणाईयं अणवदग्गं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकंतारं अणुपरियट्टिए । तं मा णं अज्जो तुब्भं केइ भवउ आयरियपडिणीयए, उवज्झायपडिणीए, आयरियउवज्झायाणं अयसकारण अवण्णकारए 5 अकित्तिकारए । मा णं से वि एवं चेव अणाईयं अणवद्ग्गं जाव संसारकंतारं अणुपरियट्टिहिइ जहा णं अहं । तए णं ते समणा निग्गंथा दृढप्पइन्नस्स केवलिस्स अंतियं एयमट्ठे सोच्चा निसम्म भीया तत्था तसिया संसारभउव्विग्गा दृढप्पइन्नं केवलिं वंदिहिंति नमसिहिंति, २ तस्स ठाणस्स आलोइए हिंति निंदिहित जाव पडिवज्जिर्हिति । तए णं 10 से दृढप्पइन्ने केवली बहूई वासाई केवलपरियागं पाउणिहिइ, २ अप्पणो आउसेसं जाणेत्ता भत्तं पच्चक्खाहिइ, एवं जहा उववाइए जाव सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ॥ ( सू० ५६० )
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'सेवं भंते! सेवं भंते ' त्ति जाव विहरइ ॥ तेयनिसग्गो समत्तो ।
समत्तं च पन्नरसमं सयं एक्कसरयं ॥