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कायसंवेध विषे ओधिक में ओधिक ५६. *काल आश्रयी जघन्य थी, पल्य नों अष्टम भागो जी।
अंतर्महत अधिक ही, बे भव अद्धा मागो जी ।। ५७. उत्कृष्ट पल्य लक्ष वर्ष ही, चंद्र विमाण नां देवो जी ।
सहस्र वर्ष वावीस महि, इतरो काल सेवेवो जी ।।
५६. कालादेसेणं जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमं अंतोमुहुत्त
मन्भहियं.
५८. इमहिज शेष पिण अठ गमा, भणवा वरं विशेखो जी।
सुर स्थिति नै काल आश्रयी, ते कहिवं करि लेखो जी ।।
५७. उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्सेणं बावीसाए
वाससहस्सेहिं अभहियं, एवतियं कालं सेवेज्जा,
एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। ५८. एवं सेसा वि अट्ठ गमगा भाणियव्वा, नवरं-ठिति कालादेसं च जाणेज्जा १-९ ।
(श० २४१२१५)
सोरठा ५९. द्वितीय तृतीय गमकेह, जघन्य पल्योपम भाग अठ। उत्कृष्टो इम लेह, पल्य लक्ष वर्षाधिक ।।
आठ गमा रो कायसंवेध ६०. द्वितोये गमे जघन्य, भाग अष्टमो पल्य तणों ।
अंतर्महत जन्य, बिहुं भव अद्धा जघन्य स्थिति ।। ६१. उत्कृष्ट अद्धा ताय, पल्योपम लक्ख वर्ष जे।
चंद्र तणी अपेक्षाय, अंतर्महत अधिक महि । ६२. तृतोय गमे संवेह, जघन्य अद्धा जे पल्य नों।
भाग अष्टमो लेह, वर्ष सहस्र बावीस फुन ।। ६३. उत्कृष्ट अद्ध जगीस, पल्योपम लक्ख वर्ष जे।
वर्ष सहस्र बावीस, बिहुँ भव नी उत्कृष्ट स्थिति ।। ६४. चउथे गमे संवेह, जघन्य अद्धा जे पल्य नों।
भाग अष्टमो लेह, अंतर्महत अधिक ही ।। ६५. उत्कृष्ट काल जगीस, भाग अष्टमो पल्य नों। ____ वर्ष सहस्र बावीस, ए पुढवी उत्कृष्ट स्थिति ॥ ६६. पंचम गमे संवेह, जघन्योत्कृष्टज पल्य नों।
भाग अष्टमो लेह, अंतर्महुर्त अधिक फुन ।। ६७. षष्ठम गम इम माग, जघन्य अने उत्कृष्ट अद्ध ।
पल्य नों अष्टम भाग, वर्ष सहस्र बाबीस फुन ।। ६८. सप्तम गमे विमास, जघन्य थकी अद्धा इतो।
एक पल्य लक्ष वास, अंतर्मुहूर्त अधिक फुन । ६९. उत्कृष्ट अद्ध जगीस, एक पल्य ने वर्ष लक्ख ।
वर्ष सहस्र बावीस, अद्धा ए बिहुं भव तणुं ।। ७०. अष्टम गमेज तास, जघन्य अने उत्कृष्ट अद्ध ।
पल्योपम लख वास, अंतर्मुहूर्त अधिक फुन ।। ७१. नवमे गमे प्रकाश, जघन्य अने उत्कृष्ट अद्ध ।
एक पल्य लक्ष वास, वर्ष सहस्र बावीस महि ।।
पृथ्वीकाय में वैमानिक ऊपजे ७२. 'जो वैमानिक देव थी, पुढवी में उपजतो जी।
तो स्यूं कल्पवासी थकी, के कल्पातीत थी हुतो जी ? *लय : कर जोड़ी आगल रहे
६८. सप्तम -
वास, अतर
वर्ष लक्ख ।
७२. जइ वेमाणियदेवेहितो उववज्जति–कि कप्पोवा
वेमाणियदेवेहितो? कप्पातीतावमाणियदेवेहितो।
श. २४, उ.१२, ढा० ४२३ ११५
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