Book Title: Bhagavati Jod 06
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 228
________________ ५ दूजी नरक में संख्याता वर्ष नों सन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (२) गमा २०द्वार नी संख्या उपपात द्वार परिमाण द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार |सठाणद्वार लेण्याद्वार । ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार उपयोग जघन्य जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट सागर ३सागर पृथक ओधिकन ओधिक | ओधिक जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट १२३ ऊप ४ भजना ३भजना संख्याता उपजे सागर १२.३ ऊपजै ४भजना | भजना | जघन्य नै ओधिक | अधन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १सागर १सागर ३सागर सागर १सागर सागर संख्याता ऊपजै पृथक हाथ पृथक हाथ १२३ऊपजै उत्कृष्ट नैं ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य | उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट सागर १सागर ३सागर ३सागर १सागर ३सागर संख्याता ऊपजे ५० अनुष्य ४भजना ३भजना तीजी नरक वालुकाप्रभा में रठिकाणां ना ऊपजे-संख्याता वर्ष नां सन्नी तिथंच पंचेदिय १, संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य। ६तीजी नरक में संख्याता वर्ष नां सन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (१) गमा २०द्वार नी संख्या उपपात द्वार परिमाण द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार संताण द्वार लेश्या द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योगद्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट ओधिक ओधिका ३सागर ओधिक जघन्य सागर ओधिक नै उत्कृष्ट ७सागर सागर सागर ५ पहिला संख्याता या असंख्याता ऊपजै अंगुल नो असंख्यातमो १२३ ऊपजे भजना हजार योजन सागर माग पृथक २नियमा |जघन्य नै ओधिक |जघन्य नै जघन्य । जघन्य नै उत्कृष्ट ३सागर ३सागर सागर सागर सागर १.२.३ रूप संख्याता या । | ५ पहिला असंख्याता उपजै अंगुल नो असंख्यातमो भाग ३ पहिली १मिथ्या उत्कृष्ट ओधिक उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट ३सागर ३सागर सागर संख्याता या असंख्याता सागर सागर १२.३ ऊपजे ५ पहिला अंगुतनो असंख्यातमो भाग हजार योजन ३मजना | भजना । ३ । ७ तीजी नरक में संख्याता वर्ष नां सन्नी मनुष्य ऊपजै तेहनों यंत्र (२) गमा २० द्वार नी संख्या उपपात द्वार परिमाण द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार | संठाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञानदार योग द्वार जघन्य जघन्य उत्कृष्ट जपन्य उत्कृष्ट | संख्याता ५ पहली पृथक ४भजना ३भजना | ओधिक नै ओधिक ३सागर ओधिक जघन्य ३सागर ओधिक नै उत्कृष्ट सागर. ७सागर सागर ससागर १.२.३. ऊपजे ५सी धनुष्य মি | ४ सख्याता पृथक १२.३. ऊपरी ४भजना | भजना। ३ जघन्य नै ओधिक सागर |जघन्य नै जघन्य ।३सागर जघन्य नै उत्कृष्ट!७सागर । सागर ३सागर सागर | ५पहली ३भजना | उत्कृष्ट नै ओधिक ३सागर | उत्कृष्ट नै जघन्य ३सागर उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट सागर ७सागर ३सागर ७सागर १२.३. ऊपजे सख्याता ऊपजे घनुष्य | २१४ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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