Book Title: Bhagavati Jod 06
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 336
________________ १३६ मनुष्य में बारहवें अच्युत देवलोक ना ऊपजै तेहनों यंत्र (४०) गमा २० द्वार नी संख्या 2 परिमाण द्वार | संघयण द्वार अव० भवधारणी जघन्य । उत्कृष्ट ६ | जघन्य | उत्कृष्ट । अव० उत्तर वै० संठाण लेश्या द्वार दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार उपपात द्वार जघन्य | उत्कृष्ट योग द्वार | उपयोग। जघन्य | उत्कृष्ट मूल वैक्रिय | १२३ | आंगुलनों संख्याता | असंघयणी ऊपजै ३हाथ आंगुल नों । असंखभाग ओधिक नै औधिक पृथकवर्ष | १कोडपूर्व ओधिक नै जघन्य अपृचवर्ष पृथकदर्य ओधिक उत्कृय कोळपूर्व १कोडपूर्व १लाख योजन नाना प्रकार १शुक्ल । ३ ३नियगा | | ३नियमा । समचौरस हाथ आगुलना संख्याता । असंधयणी ऊपज जघन्य नै ओधिक |१पृथकवर्ष जघन्य नै जघन्य १पृथक्वर्य जान्य नै उत्कृष्ट कोडपूर्व आंगुलनों । असंखभाग काळपूर्व । १२.३ १पृथवर्ष १कोडपूर्व १लाख योजन १ शुक्ल । ३ नाना प्रकार नियमा | ३ नियमा संख मगचौरस भाग १२.३ । संख्याता । असंघयणी हाथ आंगुल नों १शुक्ल ३ नियमा ३ नियमा ३ । उत्कृष्ट नै ओधिक पृथक वर्ष | १कोडपूर्व उत्कृष्टन जघन्च | पृथकवर्ष पृथकवर्व उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १ कोडपूर्व कोडपूर्व आंगुलनों असखभाग संख योजन समचौरंस प्रकार १३७ मनुष्य में नौ ग्रैवेयक नां ऊपजै तेहनों यंत्र (४१) परिमाण द्वार संघषण द्वार अवगाहना द्वार सठाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टि द्वार झान-अज्ञानद्वार योग द्वार उपयोगा गमा २० द्वार नी संख्या अन तेहनां नाम उपपात द्वार जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट ૧૨૩ असंघवनी २हाथ १शुक्ल ३नियमा अधिक ओधिक ओधिक न जयन्य ओधिक नै उत्कृष्ट | ३नियमा १पृथकवर्ष १पृथकवर्ष १कोहपूर्व १कोडपूर्व १पृथकवर्ष १कोडपूर्व आंगुलनो असंखभाग संख्याता ऊपजै सगचौरंग बहुलपर्व३ जीवाभिगम के अनुसार२ | असंघयणी २हाथ १२.३ ऊप जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट संख्याता ऊप नियमा । १पृथकदर्य | १कोहपूर्व १पृथक्व १पृथक्वर्ण १कोडपूर्व १कोडपूर्व | आंगुल नो असंख भाग नियमा । रामचौरंस बहुलपणे३ | जीवाभिगम के अनुसार २ संख्याता | असंधवणी । र हाथ १शुक्ल नियमा ૧૨૩ ऊपज उत्कृष्ट नै ओधिक | १पृथक वर्ष १कोडपूर्व उत्कृष्ट नै जघन्य | पृथकवर्ष | १पृथकवर्ष उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट | १कोडपूर्व | १कोडपूर्व आंगुलनो असंख भाग नियमा समचौरंग बटुलपणे जीवाभिगम के अनुसार२ १३८ मनुष्य में चार अनुत्तर विमान नां ऊपजै तेहनों यंत्र (४२) राधयण द्वार - अवगाहना द्वार सघयण द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार | दृष्टिद्वार ज्ञान-अडान दार गमा २० द्वार नी संख्या अन तेहना नाम | सठाणार | लेश्या द्वार | दृष्टिद्वार | ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार | उपयोग उपपात द्वार जयन्य परिमाण द्वार जघन्य उत्कृष्ट अवगाहना द्वार जघन्य १ १२.३ संख्याता असंघयणी १शुक्ल । १ समदृष्टि नियमा ओधिक नै ओधिक ओधिक नै जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट १पृथकवर्ष १कोडपूर्व | १पृथकवर्ष | १पृथकवन १कोडपूर्व १कोहपूर्व आगुल नो असंख माग ऊपजै समचौरंस संख्याता | असंघवणी १शुक्ल । १समदृष्टि नियमा जघन्य नै ओधिक जपन्य जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट १पृथकवर्ष १पृथवर्ष १कोडपूर्व कोटपूर्व | पृथकूद १कोडपूर्व आंगुल नों असंखभाग समचौरस संख्याता | असंघयणी हाथ १शुक्ल समदृष्टि । ३ नियमा उत्कृष्ट ओधिक उत्कृष्ट नै जघन्य | उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट १पृथक् वर्ष | १कोजपूर्व १पृथकवर्ष पृथक्वर्ग १कोडपूर्द कोडपूर्व ૧૨૩ ऊपजै | आंगुल नों असंखभाग समधीरंस ३२२ भगवती-जोड़ (खण्ड-६) Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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