Book Title: Bhagavati Jod 06
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 338
________________ १३६ मनुष्य में सर्वार्थ-सिद्ध ना ऊपजै तेहनों यंत्र (४३) गमा २०द्वार नी संख्या उपपात द्वार परिमाण द्वार संघयण द्वार सठाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टिद्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योगद्वार उपयोग अवगाहना द्वार जपन्य उत्कृष्ट । उत्कृष्ट उत्कृष्ट संध्याता | असंघयणी हाथ १शुक्ल ३नियमा ओधिक न ओधिक ओधिक जघन्य ओधिक नै उत्कृष्ट | १पृथकवा | कोडपूर्व १पृथक् पृथक्वई १कोडपूर्व | कोडपूर्व | अंगुल नों असंख भाग २ ३ सगीरंत याणव्यंतर में ५ ठिकाणा ना ऊपजै-असन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय १, तिथंच युगलियो २. संख्याता वर्ष ना सन्नी तिर्यच ३. मनुष्य युगलियो ४. संख्याता वर्ष ना सन्नी मनुष्य ५। १४० वाणव्यंतर में असन्नी तिर्यंच पंचेंद्रिय ऊपजै तेहनों यंत्र (9) गमा २०द्वार नी संख्या उपपात द्वार परिमाण द्वार संघयण द्वार अवगाहना द्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योगद्वार जघन्य उत्कृष्ट जपन्य १मिथ्या २वय ओधिक नै ओधिक १० हजार वर्ष |पल्यनों असंखभाग ओधिक न जघन्य १० हजार वर्ष हजार वर्ष |ओधिकनै उत्कृष्ट पल्प नों असंखभाग पल्यनों असंख भाग १२० ऊप असंख ऊपरी २ आंगुलनी असंखभाग उमेटी १हजार योजन हुंडक पहली नियमा २वच जघन्य नै ओधिक १० हजार वर्ग पल्य नो असंखभाग जघन्य न जघन्य १० हजार वर्ग १० हजार वर्ष जघन्य नै उत्कृष्ट पल्यनों असंख भाग पाल्य नों असंय भाग १२३ ऊपजै असंख ऊपजे आंगुल असंख भाग प्रवेटो योजन पहली नियमा १हजार मिथ्या २वच उत्कृष्ट नै ओधिक १० हजार वर्ष पत्य नों असंख भाग उत्कृष्ट नै जघन्य १० हजार वर्ष १० हजार वर्ष उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट पल्य नौ असंख भाग पल्य नों असंख भाग १.२.३ ऊपजे असंख ऊपजे आंगुलनों असंख भाग वेटो नियमा काय १४१ वाणव्यंतर में तिर्यंच युगलियो ऊपजै तेहनों यंत्र (२) संघयण द्वार अवगाहनाद्वार संठाण द्वार लेश्या द्वार | दृष्टि द्वार ज्ञान-अज्ञान द्वार योग द्वार गमा २० द्वार नी संख्या अन तेइनां नाम उपयोग उपपात द्वार जघन्य उत्कृष्ट परिमाण द्वार उत्कृष्ट ओधिकनै ओधिक ओधिक जघन्य ० हजार दर्व हजार वर्ष १२.३ पृथकधनुष्य संख्याता ऊपना १० हजार वर्ष ऋतमनाराष समचौरंस पहली नियमा ओधिक नै उत्कृष्ट १पल्य १पल्य संख्याता पृथक धनुष्य ऋभनाराच १मिथ्या पहली समचौरस नियमा - १मिथ्या जघन्य नै ओधिक जघन्य नै जघन्य जघन्य नै उत्कृष्ट - १० हजार वर्ष हजार वर्ष संख्याता उपजे ० हजार वर्ष | पृथक घनुष्य नाम नाराच १हजार धनुष्य जाझी समधीरंस नियमा 23 राख्याता पृथकघनुष्य | उत्कृष्ट नै औधिक १० हजार वर्ष उत्कृष्ट जयन्य | १० हजार वर्ष | उत्कृष्ट नै उत्कृष्ट | १पल्य १बज झगम नाराच गाऊ समचौरस पहली नियमा १० हजार वर्ष १पल्य ३२४ भगवती-जोड (खण्ड-६) Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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