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अनैतिकता के निवारण में महावीर वाणी की भूमिका
भौतिकता, जिसके पीछे ग्राज का मानव मात्र पागल सा हो गया है, हमारा जीवन लक्ष्य या साध्य को कमी नहीं रही । वह केवल सायन रूप में ही मान्य रही है । भौतिक समृद्धि हो हुए भी हमने श्राव्यात्मिकता को ही प्रधानता दी । इसी कारण बड़े-बड़े राजा-महाराजा और चक्रवर्ती सम्राट् तक भी समय आने पर भौतिक सुखों को तिलांजलि देकर वानप्रस्थ या संन्यास की दीक्षा ले लेते थे । अन्य गृहस्व भी परिग्रह परिमाण में प्रास्या रखकर अतिरिक्त धन का दान देकर वितरण कर देते थे, धन-धान्य का संचय करके आज के लोगों की भांति जनता के लिए विषम परिस्थितियां उत्पन्न नहीं करते थे । फलतः उस युग में देश के भीतर अपराधवृत्ति अपेक्षाकृत बहुत कम थी ।
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नैतिकता का ह्रास :
किन्तु मुगलकालीन शासन से भारत जहां विदेशियों की दासता श्रृंखला में निगड़बद्ध हुआ, तभी से भारत में अध्यात्म का ह्रास होने लगा, यद्यपि भौतिक उन्नति श्रवश्य हुई । शासकों में भोग विलास की प्रवृत्ति ने अपना सुदृढ़ अधिकार कर लिया था । वह सामन्ती युग नुरा और सुन्दरो में दिन प्रति दिन निमग्न होता गया । कहा जाता है कि एकएक हरम (अन्तःपुर) में रानियों और वेगमों की संख्या हजारों तक पहुँच गई थी, जिसका बड़ा भयंकर परिणाम श्रपराववृत्ति के रूप में सामने आया ।
पाश्चात्य संसर्ग में थाने के पश्चात् तो देश की भौतिक समृद्धि में जहां बड़ी तीव्रता के साथ हात प्रारम्भ हुआ वहीं लोगों की विचारधारा में भी परिवर्तन होने लगा । लोगों में प्राध्यात्मिक प्रवृत्ति लीग होने लगी और भौतिकता को प्रमुखता दी जाने लगी। मंत्रों के प्रचार और प्रसार ने अनेक प्रकार को सुविधाएं देते हुए भी लोगों को प्रमादी बना दिया और श्रम के महत्त्व को कम कर दिया । एक वर्ग में धन की प्रचुरता होने लगी श्रीर दूसरा वर्ग धनाभाव के कारण पहले वर्ग का मुखापेक्षी बनता गया । इस अर्थ - विषमता के फलस्वरूप एक वर्ग धन का अपव्यय करने में जुट गया और दूसरा वर्ग जीविकोपार्जन के लिए भी लालायित रहने लगा । इस कारण एक चोर धन का दुरुपयोग होकर उस वर्ग के लोगों में नाना प्रकार के दुर्व्यसन अपना घर बनाने लगे और दूसरी ओर लोग अपने भरणपोपण करने के लिए अनेक प्रकार के अपराध करने को विवश हो गए। इस प्रकार दोनों वर्गों में अनैतिकता, सदाचार और भ्रष्टाचार श्रादि की अपराधवृत्ति तीव्रता से पनपने लगी । इसका परिणाम यह हुआ कि लोगों की धार्मिक भावना लुप्त सी होकर श्राध्यात्मिकता समाप्त होने लगी ।
नये अपराधों का जन्म :
विज्ञान की उत्तरोत्तर उन्नति भी अध्यात्म के स्थान पर भौतिकवाद के विकास में योगदान करने लगी । इससे लोगों में नास्तिकता और अनीश्वरवादिता की प्रवृत्ति बढ़ने लगी । इसी भौतिकता की होड़ में न केवल हमारे देश में ग्रपितु सम्पूर्ण विश्व में नए प्रकार के अपराध जन्म लेने लगे, नए-नए रोगों का संक्रामक रूप सामने ग्राने लगा, जिसके परिणामस्वरूप पापाचार, कदाचार, अनाचार, भ्रष्टाचार श्रादि अनेक अवांछनीय तत्त्व समाज में प्रवेश पाने लगे । ये अवांछनीय तत्त्व विश्व शान्ति के लिए बड़े बाधक और घातक