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प्रार्थिक, मानसिक और आध्यात्मिक गरीवी कैसे हटे
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रोग का सही निदान :
भगवान् महावीर ने रोग का सही निदान किया और अपरिग्रह के सिद्धांत पर उतना ही जोर दिया जितना अहिंसा पर । अहिंसा व आध्यात्म-विकास के लिए मन में आसक्ति एक बहुत बड़ी वाधा है । स्वेच्छा से धन संग्रह पर सीमा लगाने व इसका सदुपयोग जन-कल्याण में करने पर भगवान महावीर ने अत्यधिक बल दिया। गांधी ने इसी को ट्रस्टीशिप के सिद्धांत में परिवर्तित किया । परन्तु समय के बहाव में अहिंसा पर वारीकी से अमल हुया और अपरिग्रह पर जोर कम हो गया । अहिंसा की बारीकी चींटी, मच्छर व छोटे-छोटे कीटाणुओं की दया तक पहुँच गई परन्तु मोटाई में मनुष्य के प्रति दया भी लुप्तप्रायः हो गई । यदि अपरिग्रह के सिद्धांत पर पूरा जोर दिया होता तो आज समाज में इतनी विषमता और वैमनस्य को स्थान नहीं मिलता ।
स्वेच्छा से सिद्धांतों पर अमल वहत कम दिखाई देता है । आर्थिक गरीवी सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था के दोषों का परिणाम है । इन दोषों को दूर करने के लिए ही सरकार ने सीलिंग कानून पास किए हैं । काले धन की धर पकड़ चल रही है और समाजवाद का नारा जोर पकड़ रहा है । इन कानूनों से सच्चा समाजवाद आ जायगा, अभी यह एक प्रश्न ही है और उत्तर समय के अांचल में निहित है। समय की चेतावनी को पहचाने :
कानून से समाजवाद आये या न आये लेकिन अधिकाधिक धन संचय करने वालों के लिए कानून अवश्य अमल में पायेगे । सीलिंग से अधिक सम्पत्ति राज्य सरकार के पास जायेगी और जहां काला धन पकड़ा जाएगा वहां सजा भी भुगतनी पडेगी। इस दृष्टिकोण से यह प्रश्न दिमाग में बार बार आता है कि समय की इस चेतावनी से सचेत हो क्या धनी वर्ग समाजवाद के कानून के अमल में आने से पूर्व ही अपरिग्रह अथवा ट्रस्टीशिप के सिद्धांतों को स्वयं अमल में लायेगे ? अभी तक तो समाज में ऐसा कोई आन्दोलन नजर नहीं आता जिससे यह स्पष्ट हो कि इस वर्ग ने समय की चेतावनी को पहिचान लिया है अथवा अपरिग्रह के सिद्धांत को अपनाकर भगवान महावीर के सिद्धांतों पर चलने का नियम लिया है । यदि समता का दृष्टिकोण अपना लिया जाय और कानूनी सीमा के वजाय स्वेच्छा से धन-संग्रह पर सीमा लगायें तो अतिरिक्त धन स्वतः ही समाज के उन वर्गों के लिए काम में लिया जा सकता है जिनको अत्यधिक जरूरत है। इससे एक ओर आर्थिक गरीबी दूर होगी और दूसरी ओर आध्यात्मिक गरीबी भी।
भारत में अहिंसा की नींव बड़ी मजबूत वतायी जाती है । शायद यही कारण है कि यहां इतनी गरीवी होते हुए भी जनता में समाजवाद के लिए अभी कोई आन्दोलन प्रस्फुटित नहीं हुआ है । शायद यही कारण है कि जहां समाजवाद सबसे जरूरी है वहीं पर समाजवाद की मांग सबसे कमजोर है । परन्तु गजबूत दीवारें भी गिरती देखी गई हैं । किस दिन यह गढ़ ढह जाय कोई नहीं कह सकता। दान परिपाटी नहीं दायित्व बोध :
समाज में धर्म व परोपकार के दृष्टिकोण से कुछ व्यक्ति दान आदि में पैसा लगाते