Book Title: Bhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Author(s): Narendra Bhanavat
Publisher: Motilal Banarasidas

View full book text
Previous | Next

Page 308
________________ २८४ सांस्कृतिक संदर्भ सामाजिक मूल्यों की प्रतिष्ठा : ___ महावीर इस श्रेणी विभक्त, ऊंच-नीच, छ्या-छूत और दमन के ऊपर आधारित सामाजिक व्यवस्था के विरोधी थे। वे मानव मात्र की ओर से वोलते हैं, किसी एक वर्ग की ओर से नहीं-जिसे तू मारना चाहता है, वह तू ही है, जिसे तू शासित करना चाहता है, वह तू ही है, जिसे तू परिताप देना चाहता है, वह तू ही है।' अहिंसा का यह सामाजिक, सार्वजनिक मूल्य किसे अस्वीकार्य हो सकता है ? गौर से देखें तो हिंसा के लिए उत्तरदायी वर्गों को ही यहां सम्बोधित किया गया है क्योंकि दूसरों को शासित करने वाले लोग उच्च वर्ग के ही होते है। तत्वदर्शी समग्र प्राणिजनों को अपनी आत्मा के समान, देखता है ।२ जीवन अनित्य है, क्षण भंगुर है, फिर क्यों हिंसा में आसक्त होते हो। यह नहीं कि साधारण या शासित जन हिंसा नहीं करते परन्तु उनके सामने आदर्श या प्रारूप (माडल) उच्च वर्ग के भद्रजनों का होता है, यथा राजा तथा प्रजा। अतएव उत्तरदायित्व उन पर ही है जो समाज के प्रमुख व्यक्ति होते हैं। महावीर के उपदेशों की चोट, इसी "भद्र समाज' पर है, उन अकिंचनों पर नहीं जो विवशता, अज्ञान या आदत से हिंसा करते हैं। मूल्यों की सापेक्षता: दूसरी बात जो महावीर के तत्वज्ञान को प्रासंगिक बनाती है, वह है मूल्यों की सापेक्षता यानी धर्म का देश, काल और पात्र को ध्यान में रखकर प्रयोग । सम्प्रदाय के रूप में महावीर मत को देखने वाले इस तथ्य की उपेक्षा कर धर्म की निरपेक्षता का प्रचार करते हैं। वर्म का मूल आधार, मनुष्य का कल्याण है। यदि किसी धर्म या मूल्य से, मानव का अकल्याण होता है तो वह त्याज्य है। सत्य धर्म है परन्तु यदि वह संयम या अनुशासन का विरोधी है तो उसकी कोई सार्थकता नहीं। सत्य भी यदि संयम का घातक हो तो नहीं बोलना चाहिए। ऐसा सत्य भी न बोलना चाहिए जिससे किसी प्रकार के पाप का आगमन होता हो। और यह सत्य किस प्रकार उपलब्ध होता है ? अपनी आत्मा द्वारा, यानी सत्य इस गवेपणा पर निर्भर है कि सत्यशोधक, अपने को उसका निकप बनाता है या नहीं । जिस वात या कम से अपने को कष्ट या अकल्याण होता हो, वह दूसरों के लिए धर्म कैसे हो सकता है ? अतएव महावीर मूल्य की निरपेक्षता के विरोधी थे। वे मानवता १. प्राचारांग २. मूत्रकृतांग ३. उत्तराध्ययन ४. प्रश्न व्याकरण २।२ ५. दशवकालिक, ७११

Loading...

Page Navigation
1 ... 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375