Book Title: Bhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Author(s): Narendra Bhanavat
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 359
________________ भगवान् महावीर द्वारा प्रतिष्ठापित मूल्य व्यावहारिक जीवन में स्वयं जैन वन्धु कितने सहिष्णु हैं, स्याद्वाद को कितना मानते हैं, यह बताने की आवश्यकता नहीं है । भगवान् महावीर ने चतुर्विध संघ की स्थापना की परन्तु ग्राज श्रावक व श्राविकाएं कितने सजग एवं मननशील हैं यह बताने की भी में आवश्यकता नहीं समझता । ग्राज सामाजिक जीवन में नाम व उपाधियों की लिप्ता तथा पारस्परिक रागद्वेष बढ़ते जा रहे हैं । जैन समाज भी इससे अछूता नहीं है । परिणाम स्वरूप श्राचरण में शिथिलता ग्राना स्वाभाविक है । ३३५ ३. मेरी दृष्टि में महात्मा गांधी को छोड़कर भगवान् महावीर की विचारधारा एवं मावर्स, आइंस्टीन व सात्र के विचारों में तनिक भी समानता नहीं है । इन दार्शनिकों के विचार आधुनिक समस्याओं के सन्दर्भ में उभर कर सामने आए। मार्क्स ने पूंजीवाद .. के बढ़ते हुये प्रभाव को समाप्त करने हेतु हिंसात्मक तरीकों से भी साम्यवाद की स्थापना का आह्वान किया परन्तु वे समाज को भौतिकता से मुक्त करने सम्बन्धी कोई सुझाव नहीं दे सके । ग्राइंस्टीन भौतिकवाद के बढ़ते हुए प्रभावों से चिन्तित अवश्य प्रतीत होते हैं परन्तु महावीर की जितनी गम्भीरता एवं गहनता से उन्होंने मानवीय समस्यात्रों के निराकरण में श्रात्मवल के योगदान को महत्व नहीं दिया । इन दार्शनिकों ने कर्मों को नियति का निर्धारक नहीं माना और न ही किसी प्रकार पुनर्जन्म आदि के विषय में विस्तृत विवेचना को । भविष्य के विषय में आइंस्टीन बहुत दूर की नहीं सोच सके जबकि भगवान् महावीर ने पंचम धारा के विषय में जो भविष्यवाणियां की वे ग्राज सही होती प्रतीत होती हैं | महात्मा गांधी की ग्रहिंसा से हमें श्राततायी के प्रति भी सहिष्णुता व समभाव रखने की प्रेरणा मिलती है । ४. नवीन समाज की रचना में सर्वाधिक योगदान भगवान् महावीर का अपरिग्रह सिद्धान्त दे सकता है। स्वयं को बड़ा मानने व भौतिक सुखों के साधन केवल स्वयं को प्राप्त हों, इसी भावना के वशीभूत होकर कार्य करने के कारण, आज सम्पन्न व्यक्ति येनकेन प्रकारेण धन का संचय करता है । उसे समाज व देश के लोग भले ही सम्मान दें परन्तु the दूसरे लोगों को हेय समझ कर उनकी उपेक्षा करने की भावना ने ग्राज छोटे समूहों को ही नहीं, सम्पूर्ण विश्व को विघटित कर दिया है । जिस क्षण हम भगवान् महावीर के जीवन से प्रेरणा लेकर सहिष्णुता एवं जियो व जीने दो के सिद्धान्त पर अमल करने लगेंगे, हमारा पारस्परिक वैमनस्य समाप्त हो जायेगा एवं वहीं से नवीन समाज की संरचना प्रारम्भ होगी 1 P ५.. भगवान् महावीर के २५०० वें परिनिर्वाण के प्रवसर पर में प्रत्येक नागरिक से यह अनुरोध करूंगा कि वह स्व हित तथा हठधर्मिता की प्रवृत्ति को छोड़ कर समाज व समूचे देश के हितार्थ कुछ न कुछ योगदान अवश्य करे। जैन बन्धुत्रों से मेरा विनम्र निवेदन है कि वे भगवान् महावीर के आदर्शो का पालन करते हुए सम्प्रदायवाद से ऊपर उठकर एक रूप में संगठित हों । क्या यह महावीर के आदर्शो के अनुकूल नहीं होगा कि जमाखोरी व मुनाफाखोरी की प्रवृत्ति को छोड़कर अपनी लोगो को रोजी देने या प्रभाव पीड़ित लोगों को उनकी संचित पूंजी का एक भाग बेकार न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति

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