Book Title: Bhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Author(s): Narendra Bhanavat
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 360
________________ परिचर्चा हेतु प्रयुक्त करें ? शादी व्याह या पारिवारिक उत्सवों पर होने वाले अपव्यय को रोककर यदि हम उस राशि को अधिकतम जन-कल्याण हेतु प्रयुक्त करें तो श्रेष्ठ होगा। राष्ट्र या विश्व के नाम कोई संदेश देने से तो मैं यही बेहतर समभूगा कि इस महोत्सव के समय हम स्वयं महावीर के सिद्धान्तों पर अमल करना प्रारंभ करें। अंधविश्वासों के दायरे से ऊपर उठकर हम अपने आचरण में क्षमा, अपरिग्रह एवं सत्य को किस सीमा तक उतार पाते हैं, यही भगवान् महावीर के प्रति हमारी वास्तविक श्रद्धा का प्रतीक होगा । (८) डॉ० रामगोपाल शर्मा : १. भगवान् महावीर भारतवर्ष के उन महापुरुषों में अग्रणी हैं जिन्होंने इस देश के चिन्तन तथा इतिहास को एक नई दिशा प्रदान की। भारत के सांस्कृतिक विकास में उनका योगदान अद्वितीय है । वैदिक संस्कृति जव जनसाधारण की धार्मिक एवं सामाजिक आकांक्षाओं की पूर्ति करने में असफल रही तो भगवान् महावीर ने सबके लिए सरल एवं सुवोध धर्म का उपदेश देकर युग की मांग को पूरा किया। उन्होंने हिंसक वैदिक कर्मकाण्ड, वेद-प्रामाण्य तथा जन्म पर आधारित वर्ण व्यवस्था का तीव्र विरोध किया और सामाजिक समता के अादर्श का उद्घोष किया । उन्होंने धर्म के द्वार विना किसी प्रकार की ऊंच नीच के, भेद-भाव के, सभी लोगों के लिए खोल दिए। इस प्रकार भगवान महावीर युगद्रष्टा एवं सामाजिक क्रान्ति के सूत्रधार वने । भगवान् महावीर ने मानव-जीवन के अन्तिम ध्येय के रूप में मोक्ष का आदर्श रखा और उसे प्राप्त करने का व्यावहारिक मार्ग सुझाया । उन्होंने इस शाश्वत सत्य का उद्घाटन किया कि दुःख का कारण मनुष्य की कभी तृप्त न होने वाली तृष्णा है तथा दुःख एवं तृष्णा का निरोध सम्यक् ज्ञान एवं सम्यक् आचरण द्वारा संभव है। उनके द्वारा निर्दिष्ट त्रिरत्न (सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान तथा सम्यक् चारित्र) में सम्यक् चारित्र जैन साधना का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग है । जो श्रद्धापूर्वक मान्य हो चुका और जाना जा चुका, उसे कर्म में परिणत करना ही सम्यक् चारित्र है। इस सम्यक् चारित्र के अन्तर्गत पंच महाव्रतों का विधान है। भगवान महावीर ने इन महाव्रतों में एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण ब्रह्मचर्यव्रत का समावेश किया । इन महाव्रतों में अहिंसा का भी प्रधान स्थान है । यद्यपि अहिंसा भारतवर्ष का एक प्राचीन सिद्धांत है, किन्तु जैनधर्म ने जिस प्रकार इसे आचार-संहिता में समाविष्ट किया, वह निश्चय ही महत्वपूर्ण है । जैन मत सव चराचर जगत् पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, कीड़े-मकोड़े, यहां तक कि मिट्टी के कण-करण में भी जीव का निवास मानता है और मन-वचन एवं कर्म से किसी की हिंसा न करने का निर्देश करता है । जैन धर्म में अहिंसा केवल एक निषेधात्मक सिद्धांत ही नहीं, बल्कि एक विधेयात्मक आदर्श है जो व्यक्ति को मानव-कल्याण में निरन्तर संलग्न रहने की शिक्षा देता है । इस प्रकार जैन मत में नीति के सामाजिक पक्ष की अवहेलना नहीं की गई है। भगवान महावीर ने व्यावहारिक जीवन में साधना-पद्धति का निर्देश किया। उन्होंने मानव के लिए विशुद्ध तपोमय जीवन-विन्यास की प्रतिष्ठा की। उन्होंने सामाजिक

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