Book Title: Bhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Author(s): Narendra Bhanavat
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 361
________________ भगवान महावीर द्वारा प्रतिष्ठापित मूल्य ३३७ जीवन में सदाचार के आदर्श की सर्वोपरि प्रतिष्ठा की ओर न केवल संन्यासियों के लिए, वल्कि गृहस्थों के लिए भी कठोर आचरण का निर्देश किया। उन्होंने न अकेले ज्ञान पर और न अकेले पाचरण पर, बल्कि दोनों पर ही समान रूप से जोर दिया। उन्होंने अपने उत्कृप्ट चारित्र द्वारा देश में साधु चारित्र का सर्वप्रथम आदर्श उपस्थित किया। उनके चारित्र ने मानव के पूर्ण विकास का वह उदाहरण प्रस्तुत किया था जिसमें अहिंसा, क्षमा, तितिक्षा, त्याग जैसे उदात्त मानवीय गुणों की उत्कृष्टतम अभिव्यक्ति हुई थी । भगवान् महावीर ने संन्यास तथा तप की विचारधारा को लोकप्रिय बनाया और निवृत्ति के उस उदात्त आदर्श की प्रतिष्ठा की जिसने प्रवृत्तिपरक वैदिक संस्कृति के स्वरूप को ही बदल डाला। भगवान महावीर ने अनेकांतवाद अथवा स्याद्वाद के महत्वपूर्ण सिद्धांत की स्थापना की जो वस्तु के ज्ञान सम्बन्धी विभिन्न दृष्टिकोणों की सत्यता को स्वीकार करता है । यह सिद्धांत तत्वदर्शन के प्रत्येक प्रयत्न को सापेक्ष सत्यता प्रदान करता है। इस सिद्धांत में समन्वय, सह-अस्तित्व एवं सहनशीलता के आदर्शों की उत्कृष्टतम अभिव्यक्ति हुई है। २. भगवान महावीर ने जिन मूल्यों की प्रतिष्ठा की थी, आज का समाज उनके प्रति निष्ठावान नहीं है और धर्म के बाह्य संस्थागतरूप की ओर ही अधिक आकृष्ट है। आज हम भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित आध्यात्मिक एवं नैतिक मूल्यों की अपेक्षा भौतिकवादी दृष्टिकोण एवं अर्थलोलुपता से अधिक प्रभावित हैं । येन केन प्रकारेण अर्थ का संचय एवं भोग ही जीवन का लक्ष्य बन गया है और यही आध्यात्मिक साधना के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है। ३. जैन तत्वचिन्तन में अणु-सिद्धांत का सबसे प्राचीनतम रूप मिलता है । जैन दर्शन अणु-सिद्धांत के माध्यम से भौतिक जगत् की रचना की पूर्ण व्याख्या प्रस्तुत करता है और इसके लिए ब्रह्म अथवा ईश्वर नामक किसी आलौकिक सत्ता को नहीं स्वीकार करता । अनेकांत के जैन सिद्धांत तथा पाश्चात्य दार्शनिक हेगेल एवं कार्ल मार्क्स के विरोधविकास पद्धति के सिद्धांत में भी कुछ समानता है । सापेक्षवादी जैन मत तथा आइन्स्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत के बीच भी समानता दीख पड़ती है। महात्मा गांधी की वर्गविहीन अहिंसक समाज की कल्पना तथा सत्याग्रह, अहिंसा, अपरिग्रह एवं ब्रह्मचर्य की धारणा भी भगवान् महावीर के द्वारा निर्दिष्ट अहिंसा आदि महाव्रतों के अनुरूप है । ४. आज हमारे समाज के समक्ष जो भयावह और नैतिक संकट उपस्थित है, उसका परिहार भगवान् महावीर की शिक्षाओं द्वारा संभव है । स्वार्थ तिमिर से आच्छादित आज के समाज में सदाचार का नितान्त अभाव है। ऐसी स्थिति में भगवान महावीर द्वारा निर्दिष्ट पंच महाव्रतों का परिपालन अत्यन्त हितकर हो सकता है, क्योंकि स्वार्थ के धरातल से ऊपर उठकर ही मानव लोक कल्याण का माध्यम बन सकता है । अनैतिक जीवन भोग-विलास एवं धन-लोलुपता की सामाजिक बुराइयों का परिहार सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह ग्रादि महाव्रतों के परिपालन से सर्वथा संभव है। देश की निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख

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