Book Title: Bhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Author(s): Narendra Bhanavat
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 351
________________ भगवान् महावीर द्वारा प्रतिष्ठापित मूल्य निवेदन में कहा है कि यदि हमें अपना अस्तित्व बनाये रखना हो तो संयम को अपनाना होगा । ३२७ भौतिक समृद्धि से सम्पन्न राष्ट्रों में आज बड़ी वैचेनी दिखाई पड़ती है । वहां के लोग भौतिक सुख-सुविधा और साधनों से ऊब कर शांति की खोज में लगे हुए हैं । वे भारत की ओर बड़ी प्राशा से देख रहे हैं। यहां से कोई भी जाकर उन्हें योग या मनः शान्ति के उपाय सुझाता है तो वे उसे कोई शांति का मसीहा समझ कर उसके पीछे पागल हो जाते हैं । इन सब बातों को देखकर लगता है कि जो धर्म वुद्धि को सन्तोप दे सके, जिसमें अंधश्रद्धा या चमत्कार को स्थान न हो, जो ग्रात्म-विश्वास व स्वावलम्वन पर आधारित हो, जिसमें साम्प्रदायिकता न हो और प्रारणी मात्र के कल्याण की क्षमता हो ऐसे धर्म को अपनाने के लिये संसार उत्सुक है । जैन धर्म में ये सभी विशेषताएं हैं । पर हमने उसे मंदिर, उपाश्रय, स्थानक तथा ग्रपने तक ही सीमित बना रखा है । हमें इसी में जैन धर्म की सुरक्षा लगती है । यदि यही स्थिति रही तव न हम उसका विश्व में प्रसार कर सकते है और न ही उसका विश्व कल्याणकारी रूप संसार के समक्ष रखा जा सकता है । मेरा उन लोगों से नम्र विनय है कि जो जैन धर्म को विश्व कल्याणकारी मानते है, वे उठें और इस महान् कार्य के लिये अपने आपको समर्पित करें। इस अवसर पर सारे विश्व को भगवान् महावीर का, उनके उपदेशों का सम्यक् परिचय करा कर संसार को नाश से बचाने के महान कार्य में अग्रसर हों । वे यह न समझें सकेंगे ? भगवान् महावीर ने बताया कि हम में भगवान् बनने की क्षमता है । हम अपनी सुप्त शक्ति को जागृत कर बहुत कुछ कर सकते हैं । उस आत्म-विश्वास को लेकर वे आगे बढ़" । सफलता निश्चित है । कि वे केले क्या कर (३) गणपति चन्द्र भण्डारी : १. महावीर द्वारा स्थापित जो भी मूल्य माने जाते है उनमें स्याद्वादी दृष्टि को मैं सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मानता हूँ। हो सकता है भापायी ग्रभिव्यक्ति की अपूर्णता को ही देख कर महावीर ने अनाग्रह के इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया हो । किसी भी सत्य को विभिन्न दृष्टियों से देखा जा सकता है । किसी भी दार्शनिक के सिद्धान्तों का विवेचन करते समय यदि यह दृष्टि अपनाई जाय तो मत-भेद भले ही हो, मन भेद होने की गुन्जाइश नहीं रहती । आपके इस प्रश्न की भाषा बड़ी अटपटी है । प्रोग्राम लेकर महावीर ने दीक्षा ली और फिर उन कोई ग्रान्दोलन चलाया या संघर्ष किया । श्रापका प्रश्न से ग्रसित है । मेरे विचार से महावीर केवल ग्रन्तः प्रेरणा लिए ही दीक्षित् हुए, किसी सामाजिक लक्ष्य को लेकर नही अपने से ही किया और सच पूछा जाय तो शायद उन्हें ऐसा लगता है जैसे कोई सुधार का मूल्यों की स्थापना के लिए उन्होंने गांधीवादी ग्रान्दोलनों की छाया से सम्यक् ज्ञान की प्राप्ति के और संघर्ष तो शायद उन्होंने अपने से भी संघर्ष करने की

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