Book Title: Bhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Author(s): Narendra Bhanavat
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 310
________________ सांस्कृतिक संदर्भ इसी प्रकार महावीर लोभ को चोरी मानते हैं । ग्रहिंसा और सत्य से भी अधिक, महावीर संग्रह पर बल देते हैं क्योंकि संग्रह के लिए असत्य बोलना पड़ता है । हिता करनी पड़ती है । २८६ 'मूल्यों की सापेक्षता के सिद्धान्त के प्रावार पर ही, गृहस्थों और वैरागियों के आचार-विचारों को अलग-अलग किया गया है। गृहस्थ, मुनि की तरह नहीं रहता । यदि रहता है तो वह परिवार या प्रजापालन रूप धर्म को भली प्रकार नहीं निभा पाता । ऐतिहासिक योगदान : मानवता को महावीर का ऐतिहासिक योग यह है कि ब्राह्मणवादी समाज में, धर्म या मूल्य का अनुसरण, लोभपरक या दम्भोन्मुख था । उसमें आडम्बर, मंत्र और प्रदर्शन का भाव था । कारण, यज्ञ-हिंसा होती थी । श्रकारण, श्रमिक वर्ग को नीच माना जाता था । भेदभाव बहुत था । स्त्रियों और शूद्रों की दुर्दशा चरम सीमा पर थी । 'ब्राह्मणों' ने, अपनी जमात को एक सुविधाप्राप्त वर्ग के रूप में संगठित कर लिया था । धर्म को व्याख्या का एक मात्र अविकार केवल ब्राह्मणों को था । वे धर्म ग्रन्थों - वेद-पुराणों की मनमानी व्याख्या इस प्रकार करते थे कि यथास्थिति बनी रहे, वे सब लाभ उन्हें मिलते रहें जो उन्हें रूढ़िवादी समाज में मिलते या रहे थे । इस पौराहित्य ने मूल्यमीमांसा को इतना लचीला वना दिया कि सब कुछ जायज था । इस हिंसक, संग्रहशील, प्रदर्शनप्रिय और अंधविश्वास ग्रस्त, समाज को आमूल बदलने के लिए महात्मानों ने संघर्ष किया । उन्होंने उच्चवर्गीय भोग विलास के विरुद्ध वातावरण बनाया । नैतिक नियमों को कठोर बनाया और घोषित किया कि मनुष्य मात्र का हित ही धर्म है । ब्राह्मण धर्म जगत् को ब्रह्ममय मान कर भी, व्यवहार में सामान्य लोगों के प्रति दंभपूर्ण रवैय्या अपनाता था । रक्त की शुद्धता की नामकधारणा के कारण ब्राह्मण धर्मशास्त्रियों ने रक्त की शुद्धता, पवित्रता और जन्मजात श्रेष्ठता की नींव पर एक ऐसे समाज की रचना की थी जिसमें सामाजिक और मानव न्याय के लिए कोई जगह नहीं थी । करोड़ों शोषितों को जन्मजात हीनभावना में रहना पड़ता था । अपने ग्रार्य अहंकार आकंठ निमग्न, सवर्ण वर्ग के लोग, सामान्य जनों को नीच और पशुवत् मानते थे और उस प्रकार की मानसिकता के नैरन्तर्य के कारण, आज भी गांवों में सवर्ण जातियों के लोग करोड़ों श्रमजीवियों के प्रति अंदर ही अंदर घृणा करते हैं । महावीर ने इस मानव विरोधी व्यवस्था को देखा था । वे सवर्ण थे मगर अपने मानवता प्रेम के कारण उन्होंने अपने को वर्ग मुक्त किया । संन्यास लिया यानी उस समाज को हो छोड़ दिया जिसे वे बाहर जाकर, ग्राउट साइडर होकर ही सुधार सकते थे । गौतम वुद्ध और महावीर तथा अन्य ब्राह्मणवादी व्यवस्था के विरोधी विचारक (योगी, आगमानुयायी, व्रात्य, सिद्ध ग्रादि) दरअसल, उस सामाजिक संरचना के विरुद्ध विद्रोह कर रहे थे 1. जो मनुष्य को मनुष्य का दास बनाने के लिए विवश करती है । जो असमानता, न्याय

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